गर्भाशय विकसित नहीं हुआ तब भी लड़की एकदम सामान्य है उसे अपराधबोध में न डालें

गर्भाशय विकसित नहीं हुआ तब भी लड़की एकदम सामान्य है उसे अपराधबोध में न डालें

अगर किसी लड़की को गर्भाशय नहीं है और वह बच्चे नहीं पैदा कर सकती है, तब भी वह सामान्य है. सब कुछ कर सकती है, जो सामान्य लड़की करती है.  लेकिन परिवार और समाज उनमें अपराध बोध भर देता है. इससे बचने की जरूरत है, बता रही हैं जानी मानी चिकित्सक दिव्या रंजना पाण्डेय…

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दृश्य-स्थल :- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश, रेडियोलोजी-विभाग, सोनोग्राफी-कक्ष।
तक़रीबन सोलह-सत्रह साल की एक लड़की अपना नंबर आने पर भी लाइन में जाँच के लिए आगे नहीं बढ़ती , पीछे खड़े लोगों को आगे आने देती है ।
बहुत देर तक चलते इस सिलसिले को देख मैंने उसे पास बुलाकर पूछा – “क्या हुआ जाँच नहीं करवानी?”
मेरे सवाल का जवाब पर्दों को चीरता हुआ आया “मैडम , आपसे बात करनी थी ।”- एक प्रौढ़ा का मद्धम स्वर था वह ।
” बोलिए ! ” मरीज़ देखते-देखते मैंने कहा।
“वह ज़रा अकेले में ,मैडम”- उन्होंने चारों तरफ आँखे घुमाते हुए इच्छा ज़ाहिर की ।
“नहीं हो सकता , आँटी । बहुत मरीज़ है ।” – भीड़ का सैलाब मुझे किसी भी हाल में काम छोड़कर उठने की इजाज़त नहीं देता।
“आप लोग पर्दे के पीछे खड़े हो जाइए ! अब जिसको आवाज दी जाए , सिर्फ़ वही आए ।” -उनके चेहरे के निरीह भाव ने मुझसे वह अनुशासन-वाक्य कहलवा ही दिया ।
“कामिनी नाम है ? आप मम्मी हैं इसकी?” – उस सुचिन्ता में ममता स्पष्ट झलक रही थी ।
“जी , मैडम ।” – उनका जवाब सपाट था ।
“क्या दिक़्कत है बच्ची को ? आप इस तरह घबराई हुई क्यों हैं ?”- वह सवाल जो बहुत देर से मन में उछल-कूद मचा रहा था , मौका देखते ही निकला ।
“मैडम, सत्रह साल की हो गई है , अभी तक महीना शुरू नहीं हुआ। इसकी छोटी बहन को दो साल पहले ही माहवारी शुरू हो चुकी है।”- वह बात जिसे बताने के लिए एक माँ पूर्ण एकाँत चाहती थी।
बच्ची का एक बार आँखों-ही-आँखों में फ़िजिकल-एग्जामिनेशन करते हुए मैंने उसे लेटने को कहा ।
“इसकी बगल के बाल और छाती का उभार कैसा है ?” – कुछ ज़रूरी सवाल , जो मुझे पूछने थे।
“मैडम बिल्कुल भी उभार नहीं आया इसे और बाल भी मामूली ही।”-उनका गला रुँधने को हुआ ।
इस क्लीनिकल-हिस्ट्री के साथ दो मुख्य संभावनाएँ दिमाग़ में उभरीं – पहली , कि मासिक धर्म तो अपने समय से शुरू हो गया हो लेकिन योनि में पाई जाने वाली एक मोटी झिल्ली ( हाइमन) ने उसका रास्ता रोक रखा हो , और दूसरी कि महावारी के लिए ज़िम्मेदार हार्मोनों की रणभूमि यानी गर्भाशय ही न बना हो उसके शरीर में ।
जैसे ही प्रोब मैंने कामिनी के गर्भाशय के स्थान पर रखा डायग्नोसिस सामने थी , कामिनी के शरीर में गर्भाशय नहीं था हालाँकि अंडकोष और योनि सुविकसित मालूम होते थे ।
“मैडम सब ठीक तो है न।”- मानो मेरे चेहरे पर सब ठीक न होने का भाव उन्होंने पढ़ लिया था ।
“बाकी सब ठीक है , लेकिन इसके शरीर में गर्भाशय नहीं बना ।”- मेरी संवेदनशीलता जो कि ढ़ेरों मरीजों और बद से बदतर बीमारियों से हर रोज़ दो-चार होने की वज़ह से शायद उन्हें कम लगी हो ।
वे लड़खड़ाईं और कामिनी के बैड पर एक कोने में टिक गईं ।
“तो मैडम ऑपरेशन से दूसरा गर्भाशय लगवा सकते हैं न इसे ?”-शायद मरीज़ों की भीड़ को देखते हुए उन्होंने कम समय में मुझसे कुछेक सवाल पूछने ज़रूरी समझे।
“इसके शरीर में दूसरा गर्भाशय लगा पाना कल कितना सम्भव हो पाएगा , यह कह पाना आज बेहद मुश्किल है। आप इसे न ही मानकर चलें तो बेहतर ।”- गर्भाशय-प्रत्यारोपण के इक्के-दुक्के सफल प्रयोग मेरे ज़हन में उभरे और साथ-ही-साथ उनकी पहुँच और ख़र्च की सीमाएँ भी।
“जिस कमी से यह जूझ रही है उसे ‘मेयर-रॉकिटेंस्की-कुस्टर-हाउज़र-सिंड्रोम ‘कहते हैं , इसमें मुलेरियन नामक नलिकाओं के न बन पाने से स्त्री-जननांगों का विकास पूरी तरह नहीं हो पाता। ‘अंडकोष एवं योनि’ के विकास को सही-सही बता पाने के लिए कुछेक जाँचें और भी करनी पड़ेंगी ताक़ि ज़रूरत पड़ने पर वैजाइनोप्लास्टी और सरोगेसी की संभावनाओं पर काम किया जा सके। “- मैंने सबकुछ एक साँस में बता देना चाहा।
“तो फिर कामिनी कभी माँ नहीं बन सकती ?” – उन्हें मुझसे इसका समाधान चाहिए था ।
“हाँ , कामिनी को कभी गर्भ नहीं ठहर सकता लेकिन इसके अलावा उसे कोई और दिक़्कत नहीं आएगी । बाकी हर मामले में वह किसी दूसरी सामान्य लड़की जितनी ही क़ाबिल है । ” – रिपोर्टिंग में कामिनी के बाक़ी अँगों का सामान्य-विवरण देते हुए मैंने कहा।
“मैडम , जो लड़की माँ ही न बन सके, उसकी बाक़ी क़ाबिलियत का क्या ? मुझे जिस बात का डर था वही हुआ ।”
कामिनी को काउच से उठकर बाहर इंतज़ार करने को कहा मैंने।
“माँ ही न बन सके ?” -ज़हर बुझे तीर से लगे मुझे ये शब्द । आंटी से समझदारी की उम्मीद करना शायद मेरी ही ग़लती थी।
“आप के ये शब्द उसके लिए गर्भाशय न होने से कहीं अधिक ख़तरनाक हैं । किसी भी औरत के लिए माँ बनना बड़ी चीज़ है लेकिन उसका अस्तित्व सिर्फ़ और सिर्फ़ माँ बनने तक ही सीमित कर देना उसके लिए दुर्घटना से अधिक कुछ नहीं। कामिनी जितना अच्छा चाहे पढ़-लिख सकती है , अपनी रुचि का कोई और काम भी कर सकती है बिल्कुल उसी योग्यता से जितनी एक स्वस्थ गर्भाशय रखने वाली कोई और लड़की । अब ज़िम्मेदारी आप पर है कि आप कामिनी को उसकी कमी किस तरह बताते हैं ! उसकी इस अक्षमता को उसकी क्षमताओं पर हावी न होने देना आपकी ज़िम्मेदारी है और रही बात माँ बनने की तो आपके सामने यह जो मरीजों की लाइन बैठी है न इसमें न जाने कितनी ऐसी महिलाएँ हैं जो गर्भाशय-अंडकोष रखती हैं लेकिन फिर भी गर्भ नहीं ठहरता। किसी को हॉर्मोन्स की दिक़्कत है , किसी को इन्फेक्शन की तो किसी-किसी के पति के सीमन में शुक्राणु कम हैं और न जानें क्या-क्या ! कितनी ही महिलाओं को चार-पांच बार गर्भवती होने के बाद भी जीवन भर निःसंतान रहना पड़ता है, बार-बार होते गर्भपात की वज़ह से। इसलिए वह गर्भाशय जो नहीं बन पाया उसके चलते वह बहुत कुछ जो उसके भीतर है , उसे व्यर्थ न जाने देना अब आपके हाथ में है ।” – रिपोर्ट पर सील लगाकर उन्हें थमाते हुए इंतज़ार में बैठी कुछ और कहानियों का रुख़ किया मैंने।
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( संलग्न चित्र :- ‘मेयर-रॉकिटेंस्की-कुस्टर-हाउज़र-सिंड्रोम’ में अल्पविकसित स्त्री-जननांग )
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