भगवान कृष्ण की रासलीला पर लिखित ग्रंथ गीतगोविंदम् के पहले सर्ग में चुंबनों की भरमार

भगवान कृष्ण की रासलीला पर लिखित ग्रंथ गीतगोविंदम् के पहले सर्ग में चुंबनों की भरमार

चुंबन या चुम्मा लेना बहुत आम है. यह प्रेमी-प्रेमिका के बीच विशिष्ट स्थान रखता ही है और इसकी वजह से सेक्स सिंड्रोम जाग जाते हैं. वहीं बाप-बेटे, मां बेटे का भी चुंबन अहम है. बच्चे जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, चुंबन की प्रक्रिया कम और खत्म होती जाती है. जब बच्चे छोटे रहते हैं तो उनके मां बाप उन्हें खूब चूमते हैं. उसमें कोई सेक्स की अनुभूति नहीं होती है… फिर भी चुंबन तो चुंबन होता है. शादियों में दुलहा को चूमने की प्रथा पता नहीं कितने दशक से चली आ रही है, यह अलग बात है कि उसमें उस तरह होठों से नहीं चूमा जाता है जैसे प्रेमी-प्रेमिका, पति पत्नी या मां-बाप अपने बच्चे को चूमते हैं.

एक नजर इधर भीः सेक्स और भोजन की तलाश में घूमता है मनुष्य

भारत के क्लासिकल साहित्य में चुंबन का अद्भुत वर्णन है. खजुराहो के आर्ट को छोड़ भी दें तो प्राचीन साहित्य में चुंबन के ऐसे दृश्य वर्णित हैं कि उसे पढ़कर ही रोमांच होता है. देह में सुरसुरी सी पैदा हो जाती है. इसी तरह का एक अनुपम साहित्य है गीत गोविंद.

एक नजर इधर भीः नाचना गाना नैचुरल है महिलाओं पर न थोपें अपने कुंठा वाले नियम

बंगाल के संस्कृत के विद्वान जयदेव ने गीत गोविंद की रचना की. उसी में राधा और कृष्ण की रासलीला का वर्णन है. राधा और कृष्ण आम जनमानस में जयदेव के श्री गीत गोविंदम् नाम की पुस्तक से सामने आए, जिसमें राधा व कृष्ण की रासलीला के बारे में बताया गया है.

गीत गोविंद के प्रथम सर्ग का पहला श्लोक यहीं से शुरू होता है, जब राधा यमुना के किनारे स्थित निकुंज वन में कृष्ण के साथ रासलीला करने जाती हैं. अभी वृंदावन में एक स्थान है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वही जगह है, जहां राधा और कृष्ण रासलीला करते थे. रात में उस वन में जाने को अभी किसी को अनुमति नहीं होती और कहा जाता है कि अभी भी वहां राधा और कृष्ण रासलीला करते हैं और रात में कोई बाधा डालता है तो वह मर जाता है.

गीत गोविंद में कृष्ण के विविध अवतारों में बुद्धावतार का भी वर्णन है…

निन्दसि यज्ञविधेरहहश्रुतिजातम्
सदयहृदयदर्शितपशुघातम्
केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे.

इसका अर्थ है…. आपने ही जीवों पर दया करने के हेतु युद्ध रूप धारण करके पृथ्वी में जितने पशु संहार समेत यज्ञ योजनादिक कर्म होते थे, उनके निंदाकारी आप ही हुए.. हे बुद्ध रूप धारी भगवन, आपकी जय हो.

खैर.. गीत गोविंद के चुंबन पर आते हैं.

श्रितकमलाकुचमण्डल धृतकुण्डल ए।
कलितललितवनमाल जय जय देव हरे।
हे भगवन. आपने लक्ष्मी के दोनों स्तन पकड़ रखे हैं. आप कर्णभूषण से शोभायमान हैं. आपके कण्ठ में बनमाला अत्यन्त सुशोभित हो रही है. हे कमलाकांत… आपकी जय हो, जय हो, जय हो.

एक नजर इधर भीः क्या बुद्धिज्म के अहिंसा के प्रचार के चलते भारत गुलाम बना?

वंदना के बाद दूसरे प्रबंध में लिखा गया है…
पद्मापयोधरतटीपरिरम्भमग्न- काश्मीरमुद्रितमुरो मधुसूदनस्य।
व्यक्तानुरागमिल खेलदनंगखेद- स्वदाम्बुपूरमनुपूरयतु प्रियं वः।

श्रृंगार रस में लग्न राधाजी के स्तनद्वय में लगे हुए केसर से लिप्त हो गया है श्रीकृष्णचन्द्र का हृदय सादृश्य केसर की शोभायुक्त वृंदावन विहारी का हृदय आप लोगों का मंगल करे.

वसन्ते वासन्तीकुसुमसुकुमारैरवयवै भ्रर्मंतीं कांतारे बहुविहितकृष्णानुसरणाम
अमन्दं कंदर्पज्वरजनितचिंताकलतया चलद्वाधां राधां सरसमिदमूचे सहचरी।
वसन्त ऋतु में कामदेव के उग्र वाण से पीड़ित श्रीकृष्णचंद्रजी से मिलने के लिए काम से पीड़ित राधा पुष्पषों से परिपूर्ण खिलने वाले वन के मध्य भ्रमण करती हुई गईं. उस समय श्रीवृषुभानुनंदिनी राधा की कोई प्रिय सहेली उदासीन राधा को देखकर कहने लगी….

एक नजर इधर भीः वैज्ञानिक प्रगति ने हमको बम, हाइड्रोजन बम, परमाणु बम, मिसाइल आदि आदि दिया है, छोटे मोटे लोग बंदूक, रिवाल्वर का लाइसेंस पाकर भी धन्य

इसके बाद पूरे वातावरण का वर्णन है कि बसंत ऋतु किस तरह से प्रेमी प्रेमिकाओं को तड़पाता है. आम के पेड़ चमेली से लिपटे हैं. कितना खूबसूरत दृश्य रहता है और कामेच्छा जगती है. तीसरे प्रबंध में भी प्रकृति का वर्णन है कि किस तरह से पेड़ पौधे प्रेम में मग्न हैं और वह वातावरण को काममय बना रहे हैं. इसी समय श्रीकृष्णचन्द्र जी के कुंज में विविध दृश्यों का वर्णन है कि वहां क्या क्या होता है. उनके आकर्षक सौंदर्य का वर्णन है. इसी में किसी गोपवधू का वर्णन राधा की सखियां करती हैं…
पीनपयोधरभारभरेण हरिं परिरभ्य सरागम्
गोपवधूरनुगायति काचिदुदंचितपंचमरागम् हरिरिह।

हे राधे… कोई बड़े स्तनों वाली गोप बधू प्रेम से उन्मत्त होकर कृष्णजी को आलिंगन करके पंचम राग में गीत गाती है.

कापि विलासविलोलविलोचनखेलनजनित मनोजम्
ध्यायाति मुग्धवधूरधिकं मधुसूदनवदनसरोजम् हरिरिह।

श्रीकृष्णजी के भ्रूभंग से मोहित होकर कोई-कोई गोपकामिनी उनके मदनविकसित मुखकमल को भ्रमर के सदृश्य चुंबन करके बहुत ही आनंद को प्राप्त होती हैं.

इसके बाद का श्लोक भी चुंबन से जुड़ा है. एक गोपांगाना ने गुप्तवार्ता कहने के बहाने कृष्ण जी के गान के नजदीक मुंह ले जाकर आनंदपूर्वक चूम लिया. सातवें श्लोक में लिखा है…

श्लिष्यति कामपि चुम्बति कामपि रमयति रामाम्

पश्चति सस्मितचारु परामपरामनुगच्छति वामाम् हरिरिह.

एक नजर इधर भीः धर्म को यूरोप की चर्च के माध्यम से समझेंगे तो बड़ी दिक्कत होगी, मार्क्स ने उसी को धर्म समझा

श्रीकृष्णचन्द्रजी महराज किसी गोपीका आलिंगन करते हैं, किसी के मुख का चुंबन करते हैं. किसी गोपी के संग काम क्रीडा करते हैं. और किसी हो हंसकर मनोहर दृष्टि से देखते हैं और किसी-किसी गोपीके संग पीछे चलते भी हैं.

इसके बाद गीत गोविंद का चौथा प्रबंध आता है… उसका पहला श्लोक है…

विश्वेषामनुरंजनेन जनयन्नानन्दमिन्दीवर श्रेणीश्मलकोलैरुपनयन्नंगैरनंगोत्सवम्
स्वच्छन्दंब्रजसुंदरीभिरभितःप्रत्यंगमालिलिंगितः श्रृंगारः – सखिभूर्तिमानिव मधौ मुग्धो हरिः क्रीडति.

हे राधे… वृजकामिनियों के आलिंगन से श्रीकृष्णचंद्र आपही श्रृंगार रस स्वरूप हो गए हैं. और बसंत ऋतु में सर्वत्र ब्रज नारियों की इच्छा पूर्ण करते हैं. भगवानके नील बदन में काम भोग का अनुभव करके समस्त वृज नारियां क्रीड़ा कौतुक में मग्न हो गई हैं.

रासोल्लासभरेणविभ्रममृतामाभीरवामभ्रुवामभ्यर्णपरिरभ्य निर्भरमुरः प्रेमांधया राधया।
साधुत्वद्वदनं सुधामयमिति व्याहृत्य गीतस्तुतिव्र्याजादुभ्दट चुम्बितः स्मित मनोहारी हरिः पातु वः

यह सुनकर राधाजी के प्रेम से व्याकुल होकर समस्त गोपियों के सामने ही श्रीकृष्णचंद्र से आलिंगन प्रदान किया और श्रीकृष्ण जी से कहा कि हे भगवान… आपका मुख कमल अमृत पूर्ण है. यह कहकर राधाजी ने उनका बदन चुंबन कर लिया है. इससे श्रीकृष्णजी का वही मुखकमल सर्व जीवों का मंगल करे.

(श्री गीत गोविन्दम् नाम के काव्यग्रंथ की रचना श्री पंडित जयदेव कवि ने की थी. मूल रूप से संस्कृत के इस काव्य ग्रंथ की हिंदी भाषा में टीका पंडित महराज दीन दीक्षित ने की. इसका प्रकाशन बाबू बैजनाथ प्रसाद बुकसेलर, राजा दरवाजा, बनारस सिटी ने सन 1951 में की थी।)

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *