सीमेंट कारोबारी चाहता है कि ईमानदारी से करें काम, लेकिन GST समझना उसके लिए मुश्किल
शक्ति सिंह
गोरखपुर-कुशीनगर राजमार्ग पर स्थित हाटा कस्बे में राधेश्याम जायसवाल एक छोटी सी बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान चलाते हैं. वह सरकार के वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लेकर परेशान हैं. वह समझ नहीं पा रहे कि धंधा करें, पेट पालें कि अधिकारियों के चक्कर लगाएं. कर को लेकर न उनकी दुविधा खत्म हो रही है न दिक्कतें.
1 जुलाई 2022 को GST लागू हुए पूरे 5 साल हो गए. आज भी अधिकारी समेत छोटे ग्रामीण व्यापारियों में इसके प्रति तमाम दुविधाएं है. सबसे बड़ी दुविधा तो इसी बात को लेकर है कि GST के तहत किसे रजिस्ट्रेशन कराना हैं और किसे नहीं. मेरे पास आने वाले तमाम व्यापारी केवल इसलिए GST पंजीकरण करा लेते हैं, क्योंकि बैंक बिना इसके करंट अकाउंट नहीं खोलते, और न ही लोन देते हैं. हालांकि मुद्रा लोन केवल विज्ञापनों में बिना गारंटी का होता है. व्यापारी बताते हैं कि मुद्रा लोन में 10% कमीशन चलता है. साथ ही बैंक वाले व्यापारी की पूरी हैसियत गिरवी लेने के बाद ही लोन देते है.
कहने को सालाना 40 लाख रुपये तक टर्नओवर वालों को GST नहीं लेना होता है, मगर सरकार कान घुमाकर पकड़ती है. राधेश्याम जायसवाल बोले, ‘सर मैं GST लूं या नहीं.’
जायसवाल का कुल मिलाकर भी पूरे वर्ष की बिक्री 15 लाख से ज्यादा नहीं है. छोटे दुकानदार हैं.
मैने बोला, लेना पड़ेगा. तो जायसवाल बोले कि 20 लाख रुपये तक छूट है ना. उन्हे अभी 20 लाख रुपये ही पता था, जबकि इसे घटाकर 15 लाख रुपये किया जा चुका है.
उनसे मैंने कहा कि आप जब खरीदारी करने जाएंगे तो कितने का सामान खरीदना पड़ेगा?
जायसवाल बोले कि एक ट्रॉली समान तो लेंगे ही, वर्ना सारा मुनाफा भाड़े में निकल जाएगा.
देखने में एक ट्रॉली सामान मतलब कुछ बोरियां सीमेंट की, और कुछ सरिया. मतलब 1.5 से 2 लाख रुपये का सामान. बड़ा दुकानदार 50 हजार रुपये से ऊपर का सामान बिना GST पंजीकरण के देगा नहीं. और अगर बिना बिल लेकर आए तो रास्ते में पकड़े जाने का डर. मैंने जायसवाल से कहा कि ऐसे में आप सोचिए कि 40 लाख रुपये सालाना बिक्री 50 हजार रुपये के खरीद से संभव हो सकता है क्या. मतलब साफ है कि ये 15 लाख का लिमिट बस कागजी है.
यह सुनकर राधेश्याम को पसीना आने लगा. वह बोले कि साहब गांव के ठाकुर साहब से 5% महीना ब्याज पर पैसा लेकर धंधा शुरू कर रहे है. अब 5 लाख रुपये के पूंजी से सामान खरीदेंगे कि आपको महीने का 500 या हजार रुपये फीस देंगे? दुकान का किराया अलग. उन्होंने कहा कि साहब कौनो साल भर वाला जीएसटी हो तो कर दीजिए, महीने वाला तो बहुत मुश्किल हैं, दुनिया भर का पेनाल्टी लगता है.
उसके बाद मैंने उनको सरकार का समाधान स्कीम समझाया. इसमें व्यापारी को तिमाही रिटर्न भरना होता है और पेनाल्टी भी नही लगता. राधे भइया बहुत खुश हुए और अपने जांघिया वाले जेब सब गोल लपेटा हुआ 100-100 रुपये का नोट निकालकर मुझे देने लगे.
मैंने उनको रोका. और बोला कि रुकिए, इसमें भीं एक झोल हैं. आपको बिक्री का 1% GST जमा करना पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि मैं खरीदी के समय सीमेंट पर 28% GST देता हूं, और टीवी वाले बता रहे थे कि आपको बस एक ही बार टैक्स देना हैं.
यकीन मानिए उनकी बातें सुनकर मेरा दिल पसीजा जा रहा था. वो कैसे भी करके GST कर को सही साबित करना चाह रहे थे. वो ईमानदारी से दुकानदारी भी करना चाह रहे थे. मगर उन्हें इन पचड़ों के बारे में क्या बताएं. समाधान छोटे व्यापारियों के लिए समाधान कम समस्या ज्यादा है.
मैं आपको उदाहरण से समझाता हूं. अगर आप नॉर्मल स्कीम में हैं तो आपको मुनाफे या मार्जिन पर GST देना हैं. लोग 5 रुपये बोरे पर मार्जिन रखकर सीमेंट बेचते हैं. अब नॉर्मल वाला 5 रुपये का 28% मतलब 90 पैसा प्रति बोरी GST देगा, मगर यही समाधान वाला 450 का 1% मतलब 4.5 रुपया GST देगा.
अब आप तुलना करिए कि बड़ा दुकानदार, जो दिन में 1,000 बोरी तक सीमेंट बेच देता हैं उसे 90 पैसे प्रति बोरी GST टैक्स देना है. मगर एक छोटा दुकानदार, जो दिन में मुश्किल से 10 बोरी सीमेंट बेचता है, उसे 4.5 रुपये प्रति बोरी सीमेंट के हिसाब से GST देना है. छोटा दुकानदार रेट बढ़ा नहीं सकता, क्योंकि बड़ा दुकानदार 2 रुपये प्रति बोरी सस्ते में सीमेंट देने को तैयार है.
अब आप लोग सोचेंगे कि ये भी महीना वाला GST क्यों नहीं ले लेता? दरअसल ये ऑप्शन लेना बहुत महंगा हैं. हर महीने GST रिटर्न का फीस दो, हिसाब किताब रखने के लिए किसी अकाउंटेंट को 5000 रुपये दो। थक-हारकर राधेश्याम ने तीन महीने वाला GST ले लिया. उन्होंने कहा, 1% देंगे साहब, क्या करेंगे ये एक एक बिल का हिसाब रखना तो संभव नही हैं, आए दिन छापे पड़ रहे है.
मुझे ऐसे लोगों पर बहुत दया आती है. ऐसे नियमों से घिरकर छोटे कारोबारी कैसे बड़े लोगों से कंपटीशन करेंगे? बड़े कारोबारियों को 10% सालाना दर पर बैंक लोन देता है, वहीं छोटे कारोबारियों को इलाके के किसी सूदखोर से 5% महीना मतलब 60% सालाना ब्याज पर लोन लेना पड़ता है.
मेरे पास सैकड़ों ऐसे व्यापारियों का जीएसटी है, जो बेचारे शुरू-शुरू में कहीं से पैसा लाकर धंधा शुरू किए, आज उनका धंधा और जीएसटी दोनो बंद पड़ा है. रोज आते हैं और कहते हैं कि साहब कहीं से लोन दिलवा दीजिए, मोदी जी बोले थे कि मुद्रा लोन मिलता है.
अब उनको क्या समझाऊं की लोन मोदी जी नहीं, बैंक वाले देते है. और लोन उन्ही को मिलता है जिनको इसकी बहुत ज्यादा जरूरत नहीं होती, या जिनकी चुकाने की नीयत नहीं होती.
इस कहानी का निष्कर्ष यही है कि अगर आपके व्यवसाय का टर्नओवर 20 लाख से कम है, तो आधार पर खरीद करके जीएसटी रजिस्ट्रेशन से बचा जा सकता है. अगर बिना जीएसटी काम नही चल रहा है तभी जीएसटी लीजिए.
अगर आपके सामान का वैल्यू कम है और मार्जिन ज्यादा है तो समाधान के तरफ जाएं. और अगर एमआरपी ज्यादा और मार्जिन कम है तो नॉर्मल स्कीम के तहत रहें.
कोशिश करके 5% प्रति महीने ब्याज लेने वाले सूदखोरों से बचें. बैंक लोन देने से मना करता है तो जागरूक नागरिक की तरह बैंकिंग ombudsman को शिकायत करें। मुद्रा लोन बिना किसी गारंटी मिलता है, पीएमईजीपी, केवीआईसी जैसे छूट वाले लोन का लाभ उठाएं.
(शक्ति सिंह पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं. यह उनका कारोबारियों के साथ निजी अनुभव है.)
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