रघुराम राजन ने जब कहा कि भारत हिंदू ग्रोथ रेट (Hindu rate of growth) के बेहद करीब है, तबसे यह खोजा जाने लगा कि हिंदू ग्रोथ रेट क्या है, आइए जानते हैं कि क्या है पूरा मामला….
हिंदू ग्रोथ रेट (Hindu rate of growth) क्या है? भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस शब्दावली का इस्तेमाल कर एक बार फिर इसे चर्चा में ला दिया है. राजन ने निजी क्षेत्र का निवेश घटने, ब्याज दरें बढ़ने और वृद्धि की रफ्तार सुस्त पड़ने का हवाला देते हुए कहा कि भारत ‘हिंदू रेट’ पर पहुंच गया है.
हिंदू ग्रोथ रेट (Hindu rate of growth) क्या है
Hindu rate of growth शब्द का इस्तेमाल भारत की सुस्त आर्थिक वृद्धि दिखाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जब लंबे समय तक वृद्धि दर सुस्त रहती है तो उसे हिंदू ग्रोथ रेट कहते हैं. सिर्फ लंबे समय तक सुस्ती हिंदू ग्रोथ रेट नहीं कहलाती, बल्कि हिंदू ग्रोथ रेट के लिए जरूरी यह भी है कि देश की जनता उसी वृद्धि दर पर संतुष्ट हो जाए.
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सबसे पहले Hindu rate of growth शब्द का इस्तेमाल किसने किया
Hindu rate of growth शब्द का इस्तेमाल पहली बार जाने माने अर्थशास्त्री और Delhi School of Economics (DSE) के लेक्चरर रहे राज कृष्णा ने 1978 में किया था. उन्होंने उदारीकरण के पहले की सुस्त आर्थिक वृद्धि का हवाला देते हुए इस टर्म का इस्तेमाल किया. समाजवादी आर्थिक राजनीति के खिलाफ कृष्णा ने इसकी व्याख्या की थी. दिल्ली स्कूल आफ इकनॉमिक्स में पढ़ाने में भी उन्होंने इसका इस्तेमाल किया.
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किस स्थिति में सुस्त वृद्धि को Hindu rate of growth कहते हैं
हिंदू ग्रोथ रेट शब्द का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान रखने की जरूरत है कि सुस्त वृद्धि दर को तभी हिंदू वृद्धि दर कहते हैं, जब यह वृद्धि दर लगातार बनी रहती है और प्रति व्यक्ति जीडीपी कम रहती है. इसमें आबादी में वृद्धि भी एक वजह होती है.
हिंदू रेट आफ ग्रोथ का सबसे नजदीकी उदाहरण 1980 के दशक का है. पीवी नरसिम्हाराव के आर्थिक सुधार के पहले भारत की आबादी में सालाना वृद्धि 2 प्रतिशत से ज्यादा थी और प्रति व्यक्ति जीडीपी वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत थी. कृष्णा इसका ठीकरा समाजवादी राजनीति पर फोड़ते हैं, जहां सरकार का नियंत्रण होता है और आयात एक विकल्प होता है.
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आर्थिक सुस्ती को हिंदू वृद्धि दर ही क्यों कहते हैं
इसकी वजह भाग्यवाद मानी जाती है. कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ‘हिंदू’ शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया गया क्योंकि सुस्त वृद्धि दर को कर्म और भाग्य के भरोसे से जोड़ा गया है. हालांकि बाद के अर्थशास्त्रियों और इतिहासकारों ने इस संबंध को खारिज कर दिया. पॉल बैरोच ने कहा कि सुस्त वृद्धि दर उस समय की सरकारों की संरक्षणवादी और हर काम में हस्तक्षेप करने की नीतियों की वजह से थी.
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रघुराम राजन ने हिंदू ग्रोथ रेट की बात क्यों कही
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 1950 से लेकर 1980 के दशक तक 4 प्रतिशत के निचले स्तर पर रही थी, जिसे ‘हिन्दू वृद्धि दर’ भी कहा जाता है. राजन ने कहा कि राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) ने पिछले महीने राष्ट्रीय आय के जो अनुमान जारी किए हैं, उनसे तिमाही वृद्धि में क्रमिक नरमी के संकेत मिलते हैं. एनएसओ के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर घटकर 4.4 प्रतिशत रह गयी जो दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में 6.3 प्रतिशत और पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 13.2 प्रतिशत थी. पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत रही थी. समाचार एजेंसी पीटीआई से साक्षात्कार में राजन ने हिंदू वृद्धि दर की चर्चा को जीवित किया. राजन का कहना है कि आशावादी लोग निश्चित ही पिछले जीडीपी आंकड़ों में किए गए सुधार की बात करेंगे लेकिन मैं क्रमिक नरमी को लेकर चिंतित हूं. निजी क्षेत्र निवेश करने का बिल्कुल मन नहीं बना रहा है. रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ाता जा रहा है और वैश्विक वृद्धि के आने वाले समय में और धीमा पड़ने के आसार हैं. ऐसे में मुझे नहीं मालूम कि वृद्धि किस तरह रफ्तार पकड़ेगी.
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