उन लबों की याद आई
गुल के मुस्कुराने से
जख्म ए दिल उभर आई
फिर बहार आने से…
तीन काल होता है। भूत, वर्तमान और भविष्य। भूत तो भूत है, उसमें फंसे तो वह प्रेत बाधा है। वो भी क्या दिन थे, वह कहते हुए जिएं या यह कहकर जियें कि वो भी क्या नारकीय व्यवस्था थी! लेकिन भूत पकड़ लिया तो कोई बाबा फकीर आपको बचा नही सकता। गर्व या शर्म में फेचकुर फेंकते वर्तमान बर्बाद होगा।
रही बात भविष्य की। उसका कोई पता नहीं होता कि कल क्या होगा। हम जितने ख्वाव देखते हैं उसका 90% तो पूरा ही नहीं होता। या तो उससे अच्छा हो जाएगा या बुरा हो जाएगा। सोचने के मुताबिक कट टू कट जिंदगी में कुछ भी नहीं होता। चाहे आप अपनी जिंदगी देख लें या आपके नजदीक जो महान लोग लगते हैं, उनसे बात करके उनकी जिंदगी के बारे में देख लें। मेरे परिचित में कोई नरेंद्र मोदी राहुल गांधी अखिलेश यादव वगैरा टाइप बड़ा तो नहीं है। लेकिन बड़े साहित्यकार, आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर टाइप लोग हैं। उनको भी मिड लेवल का बड़ा मान सकते हैं। सबकी जिंदगी के बारे में बात हुई। किसी का सोचा हुआ कभी नहीं होता। हां, भौतिक चीजें एक हद तक हो जाती हैं, जैसे नदी पर पुल बना देना, किसी की हड्डी टूटी तो जोड़ देना, वाल में ब्लॉकेज है तो दुरुस्त कर लेना। लेकिन उनकी पत्नी या उनके पति भविष्य किस तरह व्यवहार करेंगे, यह तक पता नहीं होता। जिंदगी के बारे में बड़े प्लान तो भूल ही जाएं।
अब आते हैं वर्तमान पर। वर्तमान में वह खोजकर जीना शुरू कर दीजिए, जो आप कहने वाले हैं कि यार वो भी क्या दिन थे! जिंदगी हमेशा यह मौका दिए रहती है।
मसला नज़रिया का है कि कैसे आप जीते हैं जिंदगी के
नज़र ऊंची कर दी दुआ बन गई
नज़र नीची कर दी हया बन गई
नज़र तिरछी कर दी अदा बन गई
नज़र फेर ली तो कज़ा बन गई!