वनस्पतियों में भी जीव है। संवेदना है। भावना है। जाने माने वनस्पति विज्ञानी जगदीश चंद्र बसु का इस पर व्यापक काम है। मानव ने सबसे ज्यादा अत्याचार निरीह फलों और सब्जियों पर किए हैं। फलों, सब्जियों, अनाजों को खा जाना कोई अत्याचार नहीं है। यह तो मध्यमार्ग है। आपके जिंदा रहने के लिए ये वेजिटेबल्स, स्टेपल्स, फ्रूट्स खुशी खुशी कुर्बानी देते हैं और अपना परलोक सुधारते है।
असल अत्याचार यह है कि मनुष्यों ने किसी भी शाकाहारी पौधे को उसके मूल स्वरूप में रहने ही नहीं दिया। आम, टमाटर, बैगन, मिर्च, पालक, नेनुआ, सरपुतिया, घेवड़ा, लौकी, कोहड़ा कुछ भी मूल रूप में नहीं छोड़ा। इसका जीन उसमें उसका जीन उसमें डालकर उसका स्वरूप ही बदल डाला। टमाटर ऐसा कर दिया कि उसमें रस नहीं होता, छिलका मोटा होता है। 30 साल पहले जिन लोगों ने टमाटर खाया है, वह आज के टमाटर से तुलना करके देख ले कि टमाटर की क्या गति की जा चुकी है।
मटर की भी बड़ी दुर्गति की गई। अब लोग मीठी मटर खाते हैं, देसी छिम्मी गायब है।
आप कल्पना करें कि किसी दूसरे जीव के विकसित प्राणी आप मनुष्यों को बदलकर अपने मुताबिक करने लगें तो क्या गति होगी? ये क्या तरीका है कि संतरे का रस खत्म करके किन्नू बना दिया जाए! हर अनाज, फल, सब्जी को बर्बाद किया जा चुका है। उनमें अन नेचुरल खाद डालकर अपरिपक्व अवस्था मे जवान किया जाता है, जो फल स्लिम ट्रिम थे उन्हें मोटा करके आधे आधे किलो का कर दिया! कितना बुरा लगता होगा उन्हें!
खाने तक तो बेरहमी में कोई दिक्कत नहीं है। किसी को मोटा बना दिया, किसी को ओवरवेट कर दिया, किसी को पतला कर दिया। मिर्च को कम या ज्यादा तीखा कर दिया, बैगन को बगैर बीज के कर दिया, टमाटर का रस खत्म कर दिया। यह सब हाइब्रिड तकनीक, जीन संवर्धन से किया गया। यह सब तो उन्हें विकृत करने का काम है।
यह सब पाप मानव बहुत धड़ल्ले से कर रहा है। पता नहीं कितना फायदेमंद है यह मनुष्यों के लिए!