ईश्वर की तरह तरह से व्याख्याएं की जाती रही हैं. महात्मा गांधी के लिए सत्य ही ईश्वर है. ईश्वर के होने या न होने को लेकर निरंतर हजारों साल से बहस चल रही है. ईश्वर का रहस्य क्या है, बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस…
ईश्वर को लेकर मनुष्य बहुत चिंतित रहते हैं। वह है कि नहीं। खारिज करता हूँ या स्वीकार करता हूँ, लेकिन धरती के हर कोने पर ईश्वर मौजूद है किसी न किसी नाम और रूप में। आस्तिकों के लिए अलग रूप है और नास्तिकों के लिए अलग रूप। एक उसके अस्तित्व को मानकर स्वीकार करता है, एक उसके अस्त्तित्व को खारिज करके उसे याद करता है। महात्मा गांधी के लिए सत्य ही ईश्वर था। किसी के लिए रोटी ईश्वर हो सकता है। किसी प्रेमी के लिए उसकी प्रेमिका या प्रेमिका के लिए उसका प्रेमी ईश्वर हो सकता है।
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भारत के संदर्भ में बात करें तो ऋग्वेद का उल्लेख करना संदर्भ के अनुकूल होगा। यह तमाम ऋषियों की लिखी ऋचाओं या कहें कि कविताओं का संकलन है। ऋषि लोग पीढ़ी दर पीढ़ी गाते हुए इसे ट्रांसफर कर रहे थे फिर उसे 4 पार्ट में संहिताबद्ध करके वेद नाम दे दिया गया। 1400 ईसवी के आसपास की ऋग्वेद की कॉपी मिलती है। तमाम प्रतियों का जिक्र पूर्व की किताबों में मिलता है लेकिन एक दो संहिता ही बच पाई।
ऋग्वेद में बाढ़, महामारी, भूकम्प, तूफान आदि जैसी समस्याओं से बचाने के लिए देवताओं को बुलाया जाता था। इंद्र को बुलाने के लिए कहा जाता था कि हे देव, मेरे पास आएं, यह उच्च गुणवत्ता का सोमरस पियें। मेरे दुश्मनों का विनाश करें
अग्नि, वरुण आदि देवताओं को भी वही सोमरस दिखाकर बुलाया जाता है कि आकर हमें बचाएं।
बाद के दौर में शिव, विष्णु और राम कृष्ण भी जुड़ते गए।
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यही परंपरा अभी कायम है। लोग भगवान की पूजा करते हैं। अपने ज्ञान के मुताबिक भगवान को ऑफर देकर लुभाने की कोशिश करते हैं कि वह आएं और हमारी रक्षा करें। हमें धन धान्य से भरपूर करें।
बहुत सीधा सा फंडा है कि इंसान दुखों से छुटकारा पाना चाहता है और वह इसके लिए प्रभु का आह्वान करता है। इसके साथ नैतिक नियम जोड़ दिए गए हैं कि आप जरूरत से ज्यादा संचय करेंगे तो पापी हैं। किसी को क्षति पहुँचाएगे, दुखी करेंगे तो ईश्वर आपसे नाराज हो जाएगा।
और इस क्रम में ईश्वर की तलाश कई हजार साल से जारी है कि यह कहां है, कहाँ पाया जाता है। सबके ईश्वर के अपने अपने रूप हैं। कई केसेज में कोई इंसान एक ईश्वर स्थापित करता है और बड़ी आबादी उसे मान लेती है तो वह धर्म या पंथ का रूप ले लेता है। बड़ी संख्या में लोग उसी रूप में ईश्वर देखने लगते हैं जैसा वह व्यक्ति दिखा गया होता है। दुनिया के हर धर्म में ऐसा एक व्यक्ति होता है। हिंदुइज्म या सनातन धर्म इसका अपवाद है, इसका कोई प्रवर्तक नहीं है।
असल में मामला यह है कि हमारा भौतिक विज्ञान अभी घण्टा है। हम लोग कुछ भी नहीं जानते। अपने शरीर के बारेमें नहीं जानते कि यह कब कैसे रिएक्ट कर दे। हमको नहीं पता होता है कि कोई कब डर जाए, या हमको अतिरिक्त उत्साह आ जाए। दूसरे मनुष्य के बारे में जानना तो दूर की कौड़ी है।
जबकि इस धरती पर चलते फिरते हजारों जीव हैं। जिनके बारे में हमको मोटा मोटी भी नहीं पता होता है, उनके बुद्धि विवेक या ज्ञान के बारे में जानना तो दूर की कौड़ी है।
यहीं से ईश्वर शुरू होता है, जब हम रहस्यों को जानने की कोशिश करते हैं। सोचते हैं कि हम क्यों इस गोले पर आए हैं? क्यों मर जाएंगे? क्यों बच्चे पैदा करते हैं। इसी क्यों पर केनोपनिषद केंद्रित है जिसमें क्यों का रहस्य बताया गया है।
कई बार बहुत सतही लोग सवाल उठाते हैं कि वह डॉक्टर होकर ईश्वर को मानता है, वह बहुत अमीर है फिर भी इतना आस्तिक है। दरअसल एक किसी अच्छे डॉक्टर को तो रोज ईश्वर याद आते हैं जब उसके पास कोई मजबूर पेशेंट आता है और डॉक्टर बेचारा कुछ नहीं कर पाता! या कोई गम्भीर केस आता है और पेशेंट ठीक होकर चला जाता है ओर कोई छोटा सा बुखार के मरीज की लाश उसके हॉस्पिटल से निकलती है।उसी तरह से कोई अति धनाढ्य व्यक्ति पाता है कि उसके पास तो सर्वाधिक अमीरी है और वह कितना बेबस है! उसके पास ऑप्शन ही नहीं होता कि काश मैं थोड़ा और बड़ा डॉक्टर या थोड़ा और पैसे वाला होता तो दिक्कत न होती! वह रोज ईश्वर के साक्षात्कार करता है!
हमको छोटी सी बात नहीं पता कि फेंकू मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री क्यों बने और वह इतने लोकप्रिय क्यों हैं? मफलरमैन मुख्यमंत्री क्यों बन गए? हम चाहे जितनी बौद्धिक कसरत कर लें उसकी वजह गिना लें लेकिन वह वजह डालकर किसी दूसरे व्यक्ति को पीएम या सीएम क्या, सभासद भी नहीं बना सकते। जबकि हम बड़े ज्ञानी होते तो जान जाते कि इस बन्दे के पीएम या सीएम बनने की यह वजहें हैं और उसी फार्मूले से दूसरे को भी बना पाते! जो बना बैठा है उस बेचारे को भी नहीं पता कि वह कैसे बन गया! तो वह मन मे यही मान लेगा कि हनुमान जी की कृपा है!
अब आप इससे ज्यादा मुझसे ईश्वर से जानने की कोशिश न करें। मेटावर्स की तरह फील करें तो हर जगह अनुभव कर पाएंगे। इस सब में मेरा कोई हाथ नहीं है कि मैं ईश्वर और उसकी मोडस ऑपरेंडी बता पाऊंगा! फालतू का टाइम खोटा न करें मेरा