विनोद कोचर

कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने साल 2010-11 में देशभर में आर्थिक-सामाजिक और जातिगत जनगणना करवाई थी लेकिन इसके आंकड़े अभी तक फाइलों में ही दबे पड़े हैं!

इसी तरह साल 2015 में कर्नाटक में भी जातिगत जनगणना करवाई गई थी, लेकिन इसके आंकड़े भी अभीतक सार्वजानिक नहीं किए गए हैं।

और अब, भारत की 26 प्रमुख विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ ने मंगलवार 18 जुलाई को बेंगलुरु में बैठक के बाद एक साझा बयान जारी करके,फिरसे एकबार, देश में जातिगत जनगणना कराने की मांग कर दी है।

संघी/भाजपाई, सवर्ण, विशेष रूप से ब्राह्मण वर्चस्ववाद पर टिका, हिन्दूराष्ट्रवादी परिवार ,जातिगत जनगणना की मांग से थर थर कांपने लगता है। उसे डर लगता है कि इससे अगड़ी जातियों के उसके वोटर नाराज़ हो सकते हैं, और बीजेपी का परंपरागत हिन्दू वोट बैंक इससे बिखर सकता है।

वहीं विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ,सामाजिक न्याय के नाम पर साल 2024 के चुनावों में जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाकर बीजेपी पर दबाव बनाने और दलित, पिछड़े वोट को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है।

कांग्रेस, इंडिया’ का सबसे प्रमुख घटक है जिसने अभी हाल ही के चुनाव में भाजपा को बुरी तरह से धूल चटा कर कर्नाटक में अपनी सरकार बनाई है।अब उसे चाहिए कि वह 2015 में कराई गई जातिगत जनगणना के दबे पड़े आंकड़ों को बाहर निकाल कर उन्हें सार्वजनिक करे ।

इसका असर पूरे देश की राजनीति में, किसी क्लस्टर बम के विस्फोट से कम नहीं होगा।

पिछले लगभग दस सालों की सवर्ण वर्चस्व वादी दलित/आदिवासी/मुस्लिम/ईसाई विरोधी, हिन्दूराष्ट्रवादी राजनीति का लावा इतना गर्म हो चुका है कि बस अब वह फूट पड़ने के मुहाने पर ही पहुंच गया है।

जातिगत जनगणना अगर हो गई और सार्वजनिक भी हो गई तो देश की राजनीति मे एक क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है।

लेकिन यक्ष प्रश्न तो यही है ना, कि क्या विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ क्या अपने घोषित उद्देश्य के प्रति ईमानदार रहेगा?

सत्ता लोलुपता और सिद्धांतवाद के बीच की खाई बहुत गहरी है.

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