लोगों के दुःख में दुखी होने के बजाय उन पर तंज कसने में सुख पाते हैं!

अश्विनी कुमार श्रीवास्तव

बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु या जीवन के अन्य अवश्यंभावी दुखों से कोई नहीं बच सका है और दुनिया की सारी दौलत जुटाकर भी इनमें से किसी एक पर भी इंसान काबू नहीं पा सकता है।

कोविड काल में बड़े बड़े धनवानों और सूरमाओं को हमने इसी तरह रोग और मृत्यु के सामने लाचार देखा भी है। फिर भी यदि कोई इंसान यह सोचता है कि धन- दौलत, संपत्ति, ताकत या तरक्की से हर बार उसके जीवन में सुख ही आएगा, तो उसकी इस मूर्खताभरी सोच पर केवल हंसा ही जा सकता है।
इसलिए कई बार हम देखते हैं कि धन, संपत्ति और तरक्की की भूख बढ़ने और उसमें कामयाबी हासिल होने के बावजूद किसी इंसान के जीवन में दुखों का दौर शुरू हो गया है। यदि उस इंसान ने धन- दौलत, जमीन- जायदाद, तरक्की या अन्य सुख सुविधाओं को पाने के लिए किसी के साथ दगाबाजी करने, उसे नुकसान या दुख पहुंचाने की भी परवाह नहीं की होती है तो उसके दुख पर लोग तरस खाने की बजाय तंज भी कसते हैं।
कहते हैं कि “देखा, जिस धन दौलत, संपत्ति, तरक्की हासिल करने के लिए इसने कितनों को दुख पहुंचाया है, सताया है या धोखा दिया है लेकिन अब यही धन- दौलत, ताकत या तरक्की इसके काम नहीं आ रही। आज इसका दुख इसकी दौलत, संपत्ति या ताकत दूर नहीं कर पा रही।”
हालांकि यहां जीवन के संघर्ष और दुखों में अंतर करना बड़ा जरूरी है। कई बार अच्छे इंसान यानी साफ नीयत के साथ केवल ईमानदारी और मेहनत के रास्ते पर चलने वाले इंसान भी गहरे संघर्षों में घिर जाते हैं। उनके दुख और संघर्ष उनके जीवन में ऐसा डालते हैं कि उनकी तमाम ईमानदारी या साफ नीयत के बावजूद लोग उन्हें कुछ समय के लिए बेईमान या धोखेबाज भी समझ बैठते हैं। लेकिन संघर्षों के दौर से बाहर आते ही वे खुद को फिर से साबित करने में कामयाब हो ही जाते हैं।
लिहाजा अच्छे इंसानों को भी अपने बुरे वक्त में कुछ समय के लिए अपने-परायों के ताने सुनने पड़ते हैं।मगर सफलता वापस पाने के बाद संघर्ष का वह दौर भी उनके लिए एक यादगार दौर बन जाता है, जिसमें उन्होंने जीवन के तमाम कटु सत्यों को समझा, तमाम सबक सीखे और अपने – पराए रिश्तों की पहचान की।
वैसे, मेरा निजी अनुभव यही है कि अच्छाई के रास्ते पर चलना बहुत कठिन होता है इसलिए लोग धोखेबाजी, चालबाजी और धूर्तता आदि का सहारा लेकर धन- दौलत, संपत्ति या तरक्की हासिल करने का शॉर्ट कट लेते हैं और ऐसे लोगों को सही राह पर चलने के लिए कोई प्रेरित भी नहीं कर सकता। कई बार तो जीवन का कोई दुख – दर्द भी उन्हें यह एहसास नहीं करा पाता कि उनकी सोच में कहीं कोई खामी है।
जिन्हें ईश्वर पर भरोसा होता है, अगर वे कर्म फल जैसे सिद्धांत पर भी भरोसा करते हैं तो वे अपने दुख- संघर्ष से उबरने के लिए खुद में सुधार या अपनी गलतियों के प्रायश्चित का रास्ता अपनाते हैं। जबकि जो ईश्वर को माने या न मानें लेकिन कर्म सिद्धांत पर भरोसा नहीं करते अथवा ईश्वर के नाम पर किसी कर्मकांड को करके अपने हर गलत काम के लिए भी ईश्वर अथवा कर्म दंड से खुद को सुरक्षित मानते हैं, वे फिर चाहे उनका जीवन बद से बदतर हो जाए, किसी भी तरह का प्रायश्चित या सुधार का रास्ता नहीं अपनाते।

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