जंक फूड खाने वाले और आलसी बच्चों को हो रही है पित्ताशय की पथरी

अगर आपका बच्चा जंकफूड का शौकीन है, लगातार मोबाइल और लैपटॉप पर बना हुआ है तो उसके पेटदर्द की स्थिति में अलर्ट हो जाएं। उसे पित्ताशय की पथरी हो सकती है।

जो बीमारी कभी सिर्फ वयस्कों से जुड़ी थी, वह अब बच्चों में तेजी से फैल रही है, जिससे स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंतित हैं। पित्ताशय की पथरी, जिसे आमतौर पर मध्य आयु वर्ग के लोगों की समस्या माना जाता था, अब भारत में छोटे बच्चों को भी प्रभावित कर रही है। छह साल तक के बच्चों में भी इसके मामले देखे गए हैं, जो एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का संकेत है। खासकर जंक फूड और तलाभुना खाने और गैजेट व टीवी के सामने अधिक बिताने की वजह से शारीरिक निष्क्रियता होने से पित्ताशय की पथरी के मामले बढ़ रहे हैं।
‘इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स’ (आईएपी) द्वारा पांच बड़े शहरों में हाल में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि पेट दर्द की शिकायत लेकर पहुंचने वाले लगभग हर 200 में से एक बच्चे में पित्त की पथरी की शिकायत पाई गई। यह समस्या खासकर उन बच्चों में अधिक देखी गई है जो आलसी होते हैं और अधिक ‘जंक फूड’ व तला-भुना खाना खाते हैं। ‘

क्यों बढ़ रहे हैं मामले?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों में पित्ताशय की पथरी के बढ़ने के कई कारण हैं। इनमें सबसे प्रमुख है- बदलती जीवनशैली और खान-पान की आदतें।
• जंक फूड और तला-भुना खाना: अत्यधिक वसा और चीनी वाले खाद्य पदार्थ पित्त में असंतुलन पैदा कर सकते हैं, जिससे पथरी बनने का खतरा बढ़ जाता है।
• शारीरिक निष्क्रियता: गैजेट्स और टीवी के सामने अधिक समय बिताने से बच्चों में मोटापा बढ़ रहा है, जो पित्त की पथरी का एक प्रमुख कारण है।
• आनुवंशिक कारण: कुछ बच्चों में यह समस्या आनुवंशिक भी हो सकती है, जिससे वे दूसरों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं।

 

लक्षण और उपचार
बच्चों में पित्ताशय की पथरी के लक्षण अक्सर वयस्कों जैसे ही होते हैं। इनमें शामिल हैं:
• पेट के ऊपरी हिस्से में तेज दर्द, जो पीठ या कंधे तक फैल सकता है।
• मतली और उल्टी।
• पीलिया (आंखों और त्वचा का पीला पड़ना)।
• पाचन संबंधी समस्याएं।
डॉक्टरों के मुताबिक, पित्ताशय की पथरी का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड सबसे सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। उपचार पथरी की स्थिति पर निर्भर करता है:
• दवाएं और जीवनशैली में बदलाव: अगर पथरी छोटी है और लक्षण नहीं हैं, तो डॉक्टर अक्सर दवाओं और खान-पान में बदलाव की सलाह देते हैं।
• सर्जरी: गंभीर मामलों में, जहां पित्ताशय में सूजन या अग्नाशयशोथ (पैनक्रिएटाइटिस) जैसी जटिलताएं होती हैं, सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी (Laparoscopic Cholecystectomy) एक प्रचलित और कम आक्रामक सर्जरी है।

बच्चों में पित्ताशय की पथरी पर वैश्विक शोध
बच्चों में पित्ताशय की पथरी अब एक वैश्विक चिंता बन चुकी है। दुनिया भर में कई शोध इस समस्या के बढ़ते कारणों और बेहतर उपचारों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं:
• मोटापा और पित्त की पथरी का संबंध: अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (AAP) के एक शोध में बताया गया है कि बचपन का मोटापा (childhood obesity) पित्त की पथरी के खतरे को कई गुना बढ़ा देता है। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम से इसे रोका जा सकता है।
• आनुवंशिक और चयापचय संबंधी कारक: अमेरिका में मेयो क्लिनिक (Mayo Clinic) के शोध से पता चला है कि कुछ बच्चों में आनुवंशिक रूप से कोलेस्ट्रॉल या बिलीरुबिन का चयापचय (metabolism) असामान्य होता है, जिससे पथरी बनने की संभावना बढ़ जाती है।
• सिकल सेल एनीमिया और सिस्टिक फाइब्रोसिस: दुनिया भर के शोधों में यह पाया गया है कि कुछ पुरानी बीमारियां, जैसे सिकल सेल एनीमिया (sickle cell anemia) और सिस्टिक फाइब्रोसिस (cystic fibrosis), भी बच्चों में पित्ताशय की पथरी का कारण बन सकती हैं। इन बीमारियों में बिलीरुबिन (bilirubin) का स्तर बढ़ जाता है, जिससे बिलीरुबिन पथरी बनती है।
• लक्षण रहित पित्त की पथरी पर बहस: यूरोप और अमेरिका में बाल रोग विशेषज्ञों के बीच बिना लक्षण वाले बच्चों में पित्ताशय की पथरी के उपचार पर बहस चल रही है। कुछ विशेषज्ञ तुरंत सर्जरी की सलाह देते हैं ताकि भविष्य में होने वाली जटिलताओं से बचा जा सके, जबकि अन्य सिर्फ तब तक इंतजार करने का सुझाव देते हैं जब तक लक्षण दिखाई न दें।
भारत में इस समस्या का बढ़ना एक गंभीर चेतावनी है। विशेषज्ञों का मानना है कि माता-पिता को बच्चों के खान-पान और शारीरिक गतिविधि पर विशेष ध्यान देना चाहिए, ताकि इस गंभीर बीमारी को शुरुआती अवस्था में ही रोका जा सके।

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