कानपुर के थोक बाजार में आग लगने की कई वजहें हैं, सरकारें भी लापरवाह, कारोबारी भी लापरवाह
उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के थोक बाजार में आग लग गई. हमराज कॉमप्लेक्स में 30-31 मार्च की रात लगी आग में 1000 से ज्यादा थोक दुकानें चपेट में आईं और 100 से ज्यादा दुकानें जलकर खाक हो गईं. आग इतनी बेकाबू थी कि सुबह होते ही सेना के जवानों को बुलाना पड़ा. करीब 10 घंटे तक दुकानें एक के बाद एक जलती ही रहीं.
अमूमन थोक बाजार में बड़ी मात्रा में कपड़े होते हैं. इस समय थोक बाजार ईद की तैयारियों में था. आम दिनों की तुलना में दुकानों में ज्यादा ही कपड़े थे. अनुमान लगाया जा रहा है कि करोड़ों का तैयार माल जलकर खाक हो गया.
पुराने थोक बाजार अक्सर आग के शिकार हो जाते हैं. अमूमन दो-चार दुकानों में आग लगने के बाद आग पर काबू पा लिया जाता है. लेकिन कानपुर में उस समय आग लगी, जब कारोबारी अपनी दुकानें बंद करके घर जा चुके थे. जब आग तेज हो गई तो दमकल विभाग को सूचना दी गई, जिसे पहुंचने में भी वक्त लग गया.
क्यों लगती है थोक बाजार में आग
पुराने बाजार पुरानी सहूलियतों के मुताबिक बनते थे. अमूमन बिजली की शॉर्ट सर्किट या ट्रांसफार्मर जलने या स्पार्किंग की वजह से आग पकड़ती है. कभी कभी पूजा पाठ में लापरवाही से भी किसी दुकान में आग पकड़ती है और वह दावानल का रूप ले लेती है. इन इलाकों में बिजली के तार भयानक रूप से बिखरे हुए होते हैं. इसके अलावा तमाम दुकानें पुरानी होती हैं, जिनमें मानकों के मुताबिक वायरिंग नहीं होती और कम कमाई वाले दुकानदार किसी तरह से खींच-तानकर खर्च चला रहे होते हैं, बिजली की स्पार्किंग के बीच दुकान चलाते रहते हैं.
दुकानों की संख्या ज्यादा, खाली जगह कम
थोक बाजारों की हालत यह है कि वहां दुकानें ही दुकानें होती हैं. कहीं कोई पार्क, खाली जगह नहीं होती. साथ ही दुकानदारों का परिवार बढ़ने के साथ दुकानें छोटी होती जा रही हैं. जो आवास हुआ करते थे, उसे भी तोड़कर दुकानदारों ने दुकान बड़ी कर ली है क्योंकि शहर के सेंटर में होने के कारण जिले और दूर दराज के खुदरा कारोबारी वहीं खरीदारी करने जाते हैं. कानपुर की इस होजरी बाजार से पूरे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश व बिहार तक माल जाता है. जिन शहरों में सरकार ने नए थोक बाजार बसाने की कोशिश की, सुविधाएं न मिल पाने के कारण वह कोशिश नाकाम ही रही है.
सड़कें संकरी, पार्किंग और खुली जगह भी नहीं
ज्यादातर थोक बाजार पुराने समय के हैं, जब अक्सर लोग साइकिल से या पैदल चला करते थे. उसके मुताबिक थोक बाजारों में 30-40 फुट की सड़क बनाई गई, जो मौजूदा कारों और अन्य वाहनों की बाढ़ को देखते हुए नाकाफी साबित होती है. पहले की जरूरत के मुताबिक यह सही हुआ करती थी और पर्याप्त खुली जगह मिल जाया करती थी. अब थोक बाजारों में हालत यह होती है कि वहां सड़कें हमेशा जाम रहती हैं. पार्किंग न होने के कारण अलग तरह की समस्याएं आती हैं. अगर इस तरह की खुली जगहें होतीं तो दमकल विभाग या आग को डिस्कनेक्ट करने का दस्ता ज्यादा त्वरित गति से काम कर पाता.
बारिश के समय नर्क बन जाते हैं बाजार
इस तरह के थोक बाजारों में तेज बारिश होने के मौसम में सड़क पर 2 से 3 फुट तक पानी बहने लगता है. कई बाजारों के अब वीडियो वायरल होते हैं, जिनमें इन बाजारों में साइकिल और बाइक तक बहने लगती है. जिस कदर इन बाजारों में कंस्ट्रक्शन और भीड़ है, जल निकासी तक की व्यवस्था नहीं होती है.
बिजली की व्यवस्था बेहद बुरी
कानपुर में 30 मार्च 2023 की देर रात बारिश के बीच हमराज कॉम्प्लेक्स के पास बिजली के ट्रांसफार्मर से चिंगारी उठी और उसने एक दुकान को चपेट में ले लिया. उसके बाद आग पूरे बाजार में फैलने लगी और कुछ ही देर में आग का तांडव नजर आने लगा. आसपास के लोगों ने अग्निशमन विभाग को इसकी जानकारी दी और एक घंटे में दमकल की गाड़ियां पहुंच गईं। आग इतनी तेज थी कि बगल के एआर कांप्लेक्स को भी चपेट में ले लिया.
माल को नुकसान, जान बची
जिला प्रशासन के मुताबिक अग्निशमन विभाग की 35 गाड़ियां आग बुझाने में लगीं. बाद में सेना को भी बुलाया गया. पुलिस के 1000 से ज्यादा जवान लगाए गए. किसी जनहानि की सूचना नहीं है, लेकिन कुछ लोग माल निकालने के प्रयास में झुलसे हैं.
मुख्यमंत्री ने जताया औपचारिक दुख
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अग्निकांड को लेकर दुख जताया है. यह एक फॉर्मल बयान होता है, क्योंकि कोई मुख्यमंत्री इसे सरकारी आतिशबाजी मानकर खुश नहीं हो सकता. जबकि हकीकत यह है कि इस तरह की आगजनी सरकारी आतिशबाजी ही नजर आती हैं. हजार दुकानें जलकर खाक हो गईं. जो पूरी तरह जल गई हैं, उन्हें इस हादसे से उबरने में वर्षों लगेंगे.
सरकार को क्या करने की जरूरत है
सरकार को इस तरह के सभी बाजारों के लिए मास्टर प्लान बनाने की जरूरत है. बाजार इस तरह विकसित किए जाएं, जिनमें सभी आधुनिक सुविधाएं, बिजली की समुचित वायरिंग, अंडरग्राउंड वायरिंग, आग बुझाने की सुविधा, उचित पार्किंग की जगह आदि हों. बेहतर तरीका यह है कि शहर के बाहर थोक बाजार विकसित किए जाएं और कारोबारियों को उन इलाकों में शिफ्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए. बाजार शिफ्ट करने में लंबा वक्त लगता है. तब तक के लिए क्रमबद्ध रूप से पुराने बाजारों को ही आधुनिक रूप दिया जा सकता है. खासकर जो बाजार जल गए हैं, उन्हें नए सिरे से बसाते वक्त आधुनिक सुविधाओं का खयाल रखने की जरूरत है. दिल्ली में शीला दीक्षित कार्यकाल में बड़े पैमाने पर वेंडरों की दुकानों का सुंदरीकरण किया गया था. इस तरह की व्यापक योजना बनाकर थोक बाजारों को भी बेहतर बनाया जा सकता है.