ऋषियों ने मंत्र लिखे और उन्हीं मंत्रों के संग्रह को 4 वेद कहा गया

वेद को लेकर समाज में बड़ा भ्रम पैदा किया जाता है. वेद की ऋचाएं यानी उसके श्लोक विभिन्न ऋषियों ने लिखे और उन ऋषियों की पीढ़ियों ने उसे जिंदा रखा. बाद में उन्हें 4 संहिताओं में संकलित किया गया जिसे ऋग्वेद, सामवेद यजुर्वेद और अथर्ववेद के रूप में जाना जाता है. इन्हीं वैदिक मंत्रों की व्याख्या को ब्राह्मण कहा जाता है, विस्तार से बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस….

 

वेद को लेकर तमाम बंधुओं ने रांद काट दी. तो अब आइए वेद पर भी बात हो जाए.

आप आजकल हिंदी में शब्द देखते होंगे, जो अखबारों में अक्सर लिखा जाता है… विदित हो कि. विदित मतलब ज्ञात. विद से ही वेद शब्द का संबंध है. वेद शब्द का अर्थ है ज्ञान. इसे ईश्वरीय ज्ञान भी कहा गया है, प्राचीन ऋषियों के अध्ययन से उपजा ज्ञान भी कह सकते हैं. संस्कृत के व्याकरणवेत्ता वेद के बारे में कहते हैं कि विद्यते ज्ञायतेअजनेनेति वेदः यानी जिसके द्वारा कोई ज्ञान प्राप्त किया जाए वह वेद है. कौटिल्य के मुताबिक त्रयी विद्या धर्म एवं अधर्म के बीच भेद बताती है. मीमांसकों ने कहा है कि हम प्रत्यक्ष व अनुमान से जिस ज्ञान को नहीं हासिल कर सकते हैं, उसे वेद बता सकता है.

वेद के अंतर्गत मंत्र और ब्राह्मण आते हैं. मंत्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम.

मंत्र उसे कहते हैं जिसका उच्चारण करके यज्ञ याज्ञों का अनुष्ठान किया जाता है औऱ यज्ञ में भाग लेने वाले देवताओं की स्तुति की जाती है. बुद्धिज्म का मंत्र इससे थोड़ा अलग दिखता है, जब उसमें कहा जाता है कि जो मन का त्राण करे. यानी मन को दुख से मुक्ति दिलाए, वह मंत्र है.

यज्ञ के क्रियाकलाप औऱ उनके प्रयोजनों की व्याख्या करने वाले वेद भाग को ब्राह्मण कहते हैं. ब्राह्मण के तीन भाग होते हैं. ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद.

इस तरह से वैदिक वाड्मय को 4 भाग में वर्गीकृत किया जाता है.

  • मंत्र भाग यानी संहिता.
  • ब्राह्मण.
  • आरण्यक.
  • उपनिषद.

वैदिक मंत्र तमाम ऋषियों ने तैयार किए. इसे वाचिक परंपरा का माना जाता है. इसे गेयपद के रूप में लोग पीढ़ी दर पीढ़ी गाते रहे. इसकी शुद्धता का बहुत ध्यान दिया गया और बाद में जब लिखित रूप में सामने आया, तब भी इसकी शुद्धता पर बहुत जोर दिया गया.

इन गाये जा रहे पदों का ठीक उसी तरह संग्रह किया गया है, जैसे आधुनिक काल में कबीरदास के लिखे गए पदों का संग्रह लोगों के गाए गीतों के माध्यम से किया गया है. वैदिक मंत्रों का संग्रह संहिता कहलाता है. इन मंत्रों के मौलिक रूप में परस्पर निकटता है. पाणिनि ने अष्टाध्यायी में संहिता का अर्थ बताते हुए कहा है- परः सन्निकर्षः संहिता.

यह मंत्र विभिन्न ऋषियों के खानदान में बिखरे पड़े थे. विभिन्न ऋषिकुलों में यह पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया जाता रहा था. स्वाभाविक है कि इनका संग्रह बहुत बाद में किया गया है. उद्देश्य, प्राचीनता क्रम आदि को ध्यान में रखकर इसका संकलन किया गया. वैदिक संहिताएं मुख्य रूप से 4 हैं. ऋग्वेद संहिता, यजुर्वेद संहिता, सामवेद संहिता, और अथर्ववेद संहिता.

आइए थोड़ा सा जान लें कि ब्राह्मण क्या है. आपस्तंब के मुताबिक मंत्र भाग और ब्राह्मण भाग दोनों को ही वेद कहते हैं. बाद में मंत्रों के उपयोग की व्याख्या करने के लिए ब्राह्मण का विकास हुआ. ऋग्वेद के दो ब्राह्मण- ऐतरेय ब्राह्मण तथा कौशीतकी (शांड्ख्यायन) ब्राह्मण सामने आए. यजुर्वेद के दो हिस्से हैं शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद. शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ ब्राह्मण है, जिसकी दो शाखाएं माध्यन्दिन और काण्व हैं. वहीं कृष्ण यजुर्वेद का तैत्तिरीय ब्राह्मण है. सामवेद के ब्राह्मणों में पंचविश ब्राह्मण, षड्विंश ब्राह्मण, सामविधान ब्राह्मण, आर्षेय ब्राह्मण, दैवत ब्राह्मण, उपनिषद ब्राह्मण, संहितोपनिषद ब्राह्मण, वंशब्राह्मण,  जैमिनीय ब्राह्मण आते हैं.

अथर्ववेद का ब्राह्मण गोपथ ब्राह्मण है, जो शौनक शाखा से संबद्ध है.

 

 

 

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