भारत की तमाम जातियां हिन्दू/सनातन धर्म की वर्ण व्यवस्था से बाहर हैं। इनमें ओबीसी कही जाने वाली 90% जातियां हैं। इन जातियों को पता ही नहीं है कि वह किस वर्ण में हैं? ये जातियां अपने को ब्राह्मण या क्षत्रिय होने का दावा करती हैं तो ब्राह्मण और क्षत्रिय मिलकर इन जातियों को शूद्र घोषित करने लगते हैं।
उसमें एक अम्बेडकरवादी विचारधारा भी आ जाती है कि ओबीसी कही जाने वाली जातियां शूद्र हैं। समाज में जो अछूत मानी जाने वाली जातियां थीं, उन्होंने अब चिढ़ाने के लिए इन जातियों को शूद्र कहना शुरू कर दिया।
अगर नमूना के तौर पर लें तो ऐसी जातियों में जाट, कुर्मी, अहीर गुर्जर, बढ़ई, लोहार, कुम्हार, कहाँर जैसी जातियां उत्तर भारत में हैं। इसके अलावा मराठा,पटेल, कापू, कम्मा, रेड्डी, नायडू, वोक्कालिगा, खंडायत आदि जातियां हैं। ये जातियां वर्ण व्यवस्था के बाहर हैं। जबरी इनको वर्ण व्यवस्था में डाला गया है, जबकि ये हिन्दू/सनातन वर्ण व्यवस्था का पार्ट नहीं हैं।
इन जातियों का वर्ण व्यवस्था या हिन्दू धर्म से कोई लेना देना ही नहीं है, न ये वेद पुराण की परंपरा वाले हैं। सबके अपने अपने भगवान हैं। कोई कृष्ण को पूजता है और खुद को उनका वंश मानता है, कोई राम को पूजता है और खुद को उनका वंश मानता है। कोई विश्वकर्मा को पूजता है और खुद को उनका वंशज मानता है।
चंद्रगुप्त मौर्य के शासन में एक यात्री आया मेगस्थनीज। उसने इंडिका नामक पुस्तक लिखी। वह 7 जातियों का उल्लेख करता है। दार्शनिक, किसान, शिकारी और पशुपालक, कारीगर, सैनिक, निरीक्षक और गुप्तचर, सभासद और अमात्य। यह जातियां अब बढ़ते बढ़ते 10 हजार हो गई हैं। तमाम राज्यों और इलाकों में एक ही जाति को कई नाम से जाना जाता है, जैसे किसान या कुर्मी जाति हर राज्य में अलग अलग नाम से है। पशुपालक या अहीर हर राज्य में अलग अलग हैं। कारीगर में तमाम बढ़ई, लोहार कुम्हार, भर जैसी हजार जातियां हैं। शिकारी में मछुआरा मल्लाह से लेकर बहेलिया वगैरा जैसी सैकड़ों जातियां हो गई हैं।
पिछले 100 साल के दौरान यह मिलती जुलती जातियां एक बैनर के नीचे आई हैं। यहां तक सही है। लेकिन जैसे ही ये जातियां वर्ण व्यवस्था में शामिल होने की कोशिश करती हैं, इनको बेइज्जत कर दिया जाता है। इसकी वजह यह है कि ये हिन्दू वर्ण व्यवस्था में कभी रही ही नहीं हैं।
यह अलग अलग जातियां अपने आप मे श्रेष्ठ रही हैं। इनमें कभी गैर बराबरी माना ही नहीं गया। यह बुद्ध धर्म के अंगुत्तर निकाय के 16 महाजनपद की जातियां थीं, जिनका श्रमण धर्म था और इनका वैदिक धर्म या वर्ण व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं रहा है।
उस समय 2 धर्म था। श्रमण धर्म और वैदिक धर्म। वैदिक धर्म वाले लोग तरह तरह के यज्ञ, बलि वग़ैरा करते थे और मुसीबत में पड़ने पर अपने देवता को बचाने के लिए पुकारते थे कि आओ, हमारी रक्षा करो। वेद इस तरह की पुकार से भरे पड़े हैं।
वहीं श्रमण धर्म के लोग ईश्वर को नहीं मानते थे। प्रकृति और सामाजिक व्यवस्था को मानते थे। खेती बाड़ी, पशुपालन, निर्माण सहित तमाम काम करते थे, जो मेगस्थनीज की 7 जाति।में।लिखा हुआ है।
अभी भी सेम सिचुएशन है। कोई कुर्मी हो, अहीर हो, बढई, लोहार हो सबकी अपनी पूजा पद्धति, अपने पूज्य हैं और बेसिकली वह पूज्य को अपने वंश का मानते हैं कि वह हमारे वंश के हैं। जैसे कृष्ण को अहीर अपना पूर्वज मानते हैं गुजरात के लेउआ कड़वा पटेल अपने को लव कुश का वंश मानते है, बिहार के अवधिया कुर्मी दशरथ को अपना पूर्वज मानकर पूजते हैं।
ये सभी जातियां पहले भी राजा थीं, बाद के समय में भी सामंत/जमींदार रहीं। अभी लोकतंत्र में भी अपने अपने इलाकों में राज ही कर रही हैं। प्रशासनिक पदों पर नहीं हैं, उसकी लड़ाई चल रही है। केवल इतनी समस्या है कि इन्हें वैदिक धर्म वाला तीन पांच नहीं आता, न ये जातियां किसी को अपना ईश्वर मानती हैं। तीन पांच न जानने की वजह से वैदिक धर्म वाले इनके साथ पिस्सू की तरह चिपक जाते हैं, और इन्हीं की रोटी तोड़कर इन्हीं को नीच घोषित करते हैं।
मुझे लगता है कि जाट, अहीर कुर्मी जैसी हजारों जातियों को वर्ण व्यवस्था में जाने की जरूरत ही नहीं है। वह श्रमण थे, श्रमण हैं और भविष्य में भी उन्हें वैदिक धर्म मे घुसकर ब्राह्मण क्षत्रिय बनने की जरूरत नहीं है। साथ ही उन्हें शूद्र और नीच बनने की भी जरूरत नहीं है। वह श्रमण थे, श्रमण हैं, श्रमण बने रहें। वैदिक व्यवस्था वाले अपनी वर्ण व्यवस्था, अपना ऊंच नीच लेकर अपने मुताबिक जियें। और वो अगर श्रमण परंपरा में हस्तक्षेप करें तो उनके सुधार के लिए, उन्हें गलत राह से सही पर लाने के लिए लपड़ियाया जाता है। श्रमण जातियों के पास यही बेहतर विकल्प है।
अखिलेश यादव को बहुत बहुत धन्यवाद, जो उन्होंने लोगों को मण्डल कमीशन किताब पढ़ने की सलाह दी। यह पोस्ट उन्हीं के लिए है। उनकी रीच ज्यादा है और वह समाज को दिशा दे सकते हैं। यह वक्त की मांग है कि जाति तोड़ो वगैरा नारे छोड़कर हम अपने श्रमण धर्म में बने रहें। अगर वैदिक धर्म के उच्च नीच में फंसेंगे तो हमेशा अकबकाए रहेंगे।
#भवतु_सब्ब_मंगलम

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *