हमारा शरीर ऐसा है कि अगर आपने सोच लिया कि हमको कांस्टीपेशन है तो कांस्टीपेशन हो जाएगा। आप कमोड पर घण्टे भर बैठे रहेंगे, उतरेगी ही नहीं। मैं जब 10-12 साल पहले तम्बाकू खाता था तो एक आदत पड़ गई थी कि बगैर तम्बाकू खाए खुलासा होता ही नहीं था। फिर कई बार देखा कि तम्बाकू मलते मलते ही खुलासा हो गया और मैंने तम्बाकू को कमोड में फेंक दिया। मैंने पाया कि तम्बाकू खाने से लैट्रिन होने या न होने का दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। जबकि तम्बाकू खाने वाले उसकी तमाम वैज्ञानिक वजहें गिना देते हैं, एक्यूप्रेशर तक का हवाला देते हैं कि हाथ के अंगूठे और गदेली के नसों का कनेक्शन शौच से होता है।
इसी तरह से नींद का मसला है। आपने सोच लिया कि नींद नहीं आ रही है, नींद लानी है, 10 बजे तक सो जाना है तो आपको कतई नींद नहीं आ सकती है। थके होंगे, सरदर्द हो जाएगा लेकिन नींद नहीं आएगी। यहां तक कि नींद की गोली खाने पर भी नींद नहीं आती है। अनिद्रा की एक बहुत बड़ी वजह यह सोचना है कि हमको नींद नहीं आती है। इसके बारे में भी मेरा एक अनुभव दिलचस्प है। विपश्यना करने गया था तो वहां 10 बजे रात सो जाना था और 5 बजे रात में सोकर उठ जाना था। 3 दिन तक सो ही नहीं पाया। इस टेंशन में कि सुबह सबेरे आकर घण्टी बजाकर जगा देगा, सो जाना है वरना सोने का मौका नही मिलेगा। लेकिन उसके बाद अपने आप 10 बजे सो जाता था, कभी अलार्म लगाने की जरूरत ही न पड़ी। एक बचपन की भी घटना याद है। अलार्म वाली घड़ी खरीदी गई कि सुबह 6 बजे उठकर पढ़ना है। बगैर नागा किए मेरी नींद पौने 6 बजे खुलती थी और घण्टी बन्द कर देता था कि कहीं अम्मा की नींद खुल गई तो जगाकर पढ़ने को बिठा देंगी।
कुछ चीजें बड़ी अजीब होती हैं। मन पर काबू पाना। इंद्रियों पर काबू पाना। मन मे ऐसे ख्याल न लाना आदि आदि। यह उपरोक्त उदाहरणों जैसा ही है। आप किसी को मंत्र दे दीजिए। उससे कहिए कि यह मंत्र रोज 108 बार जप करो। मन को स्थिर रखना है, मन इधर उधर नहीं भागना चाहिए। जैसे ही मन ठहर गया, आप सिद्ध पुरुष हो जाएंगे।
मन को स्थिर रखने का दायरा तो बहुत बड़ा है। किसी को कह दीजिए कि तमको रोज माला जपना है, मन मे काला कुत्ता नहीं आना चाहिए वरना सिद्धि पूरी नहीं होगी। आप सोचेंगे कि बिल्कुल नहीं आएगा। काला कुत्ता क्या, किसी तरह के कुत्ते का ख्याल मन मे नहीं आता है तो आखिर काले कुत्ते का ख्याल क्यों मन में आएगा? लेकिन आप करके देखें। जैसे ही आप अपने मन मे काले कुत्ते या काली बिल्ली के न आने का ख्याल करेंगे, वह अदबिदाकर आएगा। उसे आप रोक ही नहीं सकते। इस तरह की शर्त बाबाओं द्वारा रखी ही इसलिए जाती है कि आपके मन मे ख्याल आए और वह साबित कर दें कि आप मन स्थिर नहीं कर पाए, इसलिए फेल हो गए वरना उनके फार्मूले में कोई गड़बड़ नहीं थी।
इसी तरह इंद्रियों पर काबू पाने का मसला है। जिस चीज को आप दबाएंगे, वही उभड़कर सामने आएगा। चाहे जिस भी इन्द्रिय को दबाने की कोशिश करके देख लें। जितना कोशिश करेंगे कि फील न हो, उतना ही फील होगा।
सेक्स भी उनमें से एक है। आपको युवा होते ही उसकी खराबियां बताई जाती हैं। उसे दबाने को सिखाया जाता है। यह बताया जाने लगता है कि 40 लीटर खून से एक बूंद वीर्य बनता है और इसे नष्ट किया तो जीवन ही नष्ट हो जाता है। ऋषियों मुनियों की कहानियां सुनाई जाती हैं कि किस तरह से अप्सराएं आकर उनकी तपस्या भंग करती थी और अप्सरा के साथ यौन सम्बन्ध बनाते ही ऋषि महाराज का सब कुछ नास हो जाता था। छोटे छोटे बच्चे बेचारे इंटर में जब सेक्स की पहली फीलिंग पाते हैं तबसे लेकर शादी होने तक अजीब कुंठा में जीते हैं कि वह तो रोज अपना ओज, तेज, वीर्य नष्ट करते हैं और वह किसी काम लायक बचे ही नहीं हैं। उनके दिमाग मे भर जाता है कि वीर्य निकल गया, अब तो सब खत्म ही है।
इतना ही नहीं, पूरी जिंदगी दिमाग मे सेक्सुअल कुंठाएं घूमती रहती है कि कब कौन सा पाप कर दिया! जबकि को एजुकेशन, लड़के लड़की आपस मे बातचीत करने वाले स्कूलों में बच्चो का बेहतर विकास होता है। वह कम सेक्सुअली क्रिमिनल और कम कुंठित होते हैं। सेक्सुअल कुंठा, वीर्य नष्ट होने, पाप और अप्सराओं से इतर उनके पास पढ़ाई लिखाई, प्रतियोगिता आदि के बारे में सोचने के लिए पर्याप्त वक्त होता है। उनको पता होता है कि यह सब शरीर की सामान्य प्रक्रिया है और रोज वीर्य निकल जाने और दसियों साल रोज वीर्य निकल जाने से भी कुछ नहीं होता। वह भी लैट्रिन पेशाब की तरह निकल जाता है, इतना सा मसला है।
मन पर काबू पाना, इन्द्रिय पर काबू पाना यह सब निहायत बकवास बात है। ऐसा करने की कोशिश करने का मतलब है कि आप कभी इन सब चीजों पर काबू नहीं पा सकते हैं। काबू पाने का एक ही तरीका है कि मन और इन्द्रिय पर काबू पाने के बारे में सोचिए ही नहीं। जो कहे कि यह मन बड़ा चंचल है, यह इन्द्रिय बड़ी चंचल है, इस पर काबू पाइए, समझिये कि वह बेवकूफ बना रहा है।
आप यूँ समझिये कि यह सब कहकर आपका लक्ष्य से ध्यान भटकाया जा रहा है कि लक्ष्य छोड़कर आपका ध्यान काले कुत्ते की तरफ जाए, जहां आपका ध्यान था ही नहीं! किसी लक्ष्य की तरफ ध्यान केंद्रित करने का तरीका यह है कि आप लक्ष्य के बारे में सोचें, पढ़े, लिखे, उसी पर बात करें। फिर न तो आपका मन अप्सरा की ओर जाएगा, न वीर्य की ओर न काले कुत्ते की ओर। और फिर आप केंद्रित होकर अपने लक्ष्य पर काम कर पाएंगे।
विश्वामित्र और मेनका की कहानी के दौर से ही आपको सेक्स से ध्यान हटाकर लक्ष्य पर ध्यान देने की बात कही जा रही है। और आपके मस्तिष्क में मेनका ही रहती है। जैसे ही दो पुरुषों को थोड़ा सा वक्त मिलता है, वह सेक्स व महिलाओं पर चर्चा करने लगते हैं। जो जितना ही कुंठित रहता है, वह उतना ही मन मे चर्चा लाता है और चर्चा करता है। उसी में सारी एनर्जी खपी जा रही है। कहीं कुछ बदला क्या?
तो मसला यह है कि मन को फ्री बहने दें। उसे दौड़ने दें जहां दौड़ता है। दौड़ लगाना उसका काम है। इसी तरह सेक्स के बारे में सोचना भी स्वाभाविक है। मन मे विचार या रहा है तो आने दें। इसमें कोई पाप, पुण्य, दुख, शोक की बात ही नहीं है। वैसे भी कहा गया है कि कलियुग में मनसा पाप नहीं लगता, केवल वाचा और कर्मणा पाप लगता है। इसलिए मन के घोड़े को दौड़ने दें, उसे सपनों में जीने दें। और जो काम करना है, उस पर ज्यादा वक्त देंगे तो मन को सेक्स या किसी अन्य कल्पना में जाने से अलग से रोकने की जरूरत नही होगी। आपका मन खुद ब खुद लक्ष्य में ही रम जाएगा।
#भवतु_सब्ब_मंगलम
2024-08-14