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LGBTQIA++ बच्चों के 400 अभिभावकों ने उच्चतम न्यायालय से क्या कहा

LGBTQIA++ के 400 अभिभावकों ने प्रधान न्यायधीश से विवाह में समानता के अधिकार की मांग की है

भारत के करीब 400 अभिभावकों ने देश के प्रधान न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर अपने LGBTQIA++ बच्चों के लिए ‘विवाह में समानता’ का अधिकार मांगा है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए दायर तमाम याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं.

‘स्वीकार- द रेनबो पैरेंट्स’ (Sweekar-The Rainbow Parents) की ओर से लिखा गया पत्र इस मायने में अहम है कि प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में 5 न्यायाधीशों का संविधान पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिनमें समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने का अनुरोध किया गया है.

अभिभावकों समूह ने उच्चतम न्यायालय से अपील में कहा है, ‘‘हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों और उनके जीवनसाथी के संबंधों को हमारे देश के विशेष विवाह अधिनियम के तहत मान्यता मिले. हम उम्मीद करते है कि इस विशाल देश में उतनी ही विशालता से विविधता को स्वीकार किया जाएगा और देश समावेशी मूल्यों के साथ खड़ा होगा. हमारे बच्चों के लिए भी वैवाहिक समानता के कानूनी द्वार को खोलेगा।’’ पत्र में कहा, ‘‘हमारी (अभिभावकों की) उम्र बढ़ रही है. हम में से कुछ की उम्र 80 साल के करीब पहुंच रही है. हमें उम्मीद है कि हम अपने जीवनकाल में अपने बच्चों के सतरंगी विवाह को कानूनी मान्यता मिलते देख सकेंगे.’’

‘स्वीकार-द रेनबो पैरेंट्स’ समूह की स्थापना भारतीय एलजीबीटीक्यूआईए++ बच्चों के माता-पिता ने की है और इसका उद्देश्य अपने बच्चों का पूरी तरह से समर्थन करना और एक परिवार की तरह खुश रहना है.  इस समूह ने पत्र में कहा,‘‘ हम आपसे अपील करते हैं कि विवाह समानता पर विचार किया जाए।’’

इसमें कहा गया है  जेंडर और सेक्सुअलिटी की जानकारी पाने से लेकर हमारे बच्चों की जिंदगी को समझने के बाद हमने उनकी सेक्सुअलिटी को स्वीकार किया है और हम उनकी भावनाओं को समझ पाए हैं.

भारत में एलजीबीटीक्यूआईए++ का बहुत बड़ा समाज है. यह सामान्य लोग होते हैं. उनका यौन संबंध बनाने का रुझान अलग होता है.

इसमें कहा गया है, ‘हमारी उनके साथ सहानुभूति है, जो विवाह में समानता का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि हममें से ही कुछ लोग ऐसे हैं. इस मसले पर अपने एलजीबीटीक्यू बच्चों के साथ बातचीत के बाद हमें महसूस हुआ कि उनकी जिंदगी, उनकी अनुभूतियां और उनकी इच्छाएं सही हैं. इसी तरह से हम उम्मीद करते हैं कि जो विवाह में समानता का विरोद करते हैं, वह भी इसे समझ सकेंगे. हमें भारत के लोगों, संविधान और अपने देश के लोकतंत्र पर भरोसा है.’

इसमें शीर्ष न्यायालय के 2018 के फैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें सहमति के साथ गे सेक्स को अपराध मुक्त कर दिया गया है.

इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया है कि एलजीबीटीक्यूआईए प्लस लोगों के साथ गरिमामय व्यवहार होना चाहिए और उन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए. पत्र में कहा गया है कि समाज बदल रहा है और उसमें बदलाव के गुण हैं. ऐसे में उच्चतम न्यायालय का फैसला समाज में हो रहे बदलाव पर सकारात्म असर डालेगा और इससे लोगों को मदद मिलेगी.

क्या है एलजीबीटीक्यूआईए (LGBTQIA++)

भारत में एलजीबीटीक्यूआईए++ का बहुत बड़ा समाज है. यह सामान्य लोग होते हैं. उनका यौन संबंध बनाने का रुझान अलग होता है. LGBTQIA++ में शुरुआत में लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर यानी एलजीबीटी थे. बाद में तरह तरह के यौन संबंध सामने आने लगे और इसमें प्लस प्लस जुड़ता गया. लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर के अलावा क्यू यानी क्वीर, आई मतलब इंटरसेक्स, ए मतलब असेक्सुअल टी मतलब टू स्पिरिट शामिल हुए. हाल के कुछ वर्षों में अन्य रुझान वालों में एलाई और क्वेश्चनिंग भी शामिल हुए हैं. यानी lesbian, gay, bisexual, transgender, queer, questioning, intersex, pansexual, two-spirit, asexual, and ally किस्म के यौन संबंध बनाने वाले लोग इस समुदाय में शामिल होते गए. इसके लिए पूरी दुनिया में संगठन काम करते हैं. साथ ही ऐसे बच्चों के अभिभावकों के भी समूह बने हुए हैं.

इस तरह के सेक्सुअल रुझान वाले लोगों को समाज सहज तरीके से स्वीकार नहीं करता और इन्हें छिप-छिपाकर रहना पड़ता है. अंग्रेजों के समय में तो इसे भारत में गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था. LGBTQIA++ वाले लोग अपने अधिकारों की मांग को लेकर आंदोलन करते रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में गे सेक्स यानी दो पुरुषों के आपस में यौन संबंध को गैर आपराधिक घोषित कर दिया गया. अब इस समुदाय के लोगों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर आपस में शादी ब्याह करने की इजाजत मांगी है और चाहते हैं कि कोर्ट इसे पुरुष महिला के विवाह की तरह ही मान्यता दे.

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