क्या आप जानते हैं कि सितारों का जन्म कैसे हुआ… आइए जानते हैं कि क्या कहते हैं अब तक के शोध
नवमीत
17 जनवरी 1994 को अमेरिका के दक्षिण कैलिफ़ोर्निया में सुबह सुबह साढ़े 4 बजे लोग अपने घरों में सोए हुए थे. अचानक लोगों को एक तीव्र झटका महसूस होता है. 6.7 रिक्टर स्केल का यह जबरदस्त भूकंप लगभग 20 मिनट तक चला. इसका एपिसेंटर लॉस एंजेलस की सान फ़र्नांडो घाटी में था, जोकि लॉस एंजेलस शहर से 20 मील उत्तर पश्चिम में स्थित है. भूकंप की तीव्रता इतनी अधिक थी कि इसने इमारतों को तो ध्वस्त किया ही, साथ में 57 लोगों की मृत्यु हो गई और 8700 लोग घायल हो गए. लगभग 20 बिलियन डॉलर की संपत्ति का नुकसान हुआ. हजारों लोग बेघर होकर सड़कों पर आ गए.
यह तो हुई भूकंप की बात. लेकिन इसकी वजह से एक घटना और घटी. भूकंप की वजह से लॉस एंजेलस शहर की बिजली भी चली गई.
इस ब्लैकआउट के दौरान जब लोग घरों से बाहर निकले तो उन्होंने एक अद्भुत नजारा देखा. जानते हैं क्या था वह अद्भुत नज़ारा? लॉस एंजेलस में रहने वाले बहुत से लोग ऐसे थे जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी रात्रि आकाश देखा ही नहीं था. इस शहर का प्रकाश प्रदूषण इतना तीव्र था कि यहाँ के निवासियों को रात में आकाश में चमकने वाले सितारे, तारा मंडल और आकाशगंगा दिखाई ही नहीं देते थे. लेकिन जब बिजली चली गई तो लोगों को आकाश के दर्शन हुए. उन्होंने देखा कि आसमान तो सितारों और अन्य खगोलीय पिंडों से भरा हुआ है.
बहुत से लोगों के लिए तो यही once in a lifetime अनुभव था. कुछ ने इसे जादुई अनुभव की संज्ञा दी. कुछ लोगों ने तो यहाँ तक कहा कि उन्होंने टूटते हुए सितारों की वर्षा देखी है. खैर इस घटना ने दो काम किए. एक तो इसने अमेरिका के आपदा प्रबंधन की पोल खोल दी और दूसरा इसने प्रकाश प्रदूषण के मुद्दे पर लोगों में जागरूकता पैदा की. इस घटना ने लोगों को प्रकाश प्रदूषण को कम करने और रात्रि आकाश की खूबसूरती को बचाने के लिए कदम उठाने को प्रेरित किया.
लेकिन हम लोग इस मामले में थोड़ा बेहतर स्थिति में हैं. हममें से अधिकतर लोग रात्रि आकाश की खूबसूरती का आनंद उठा सकते हैं और सितारों का अवलोकन कर सकते हैं.
सितारे हमारे यूनिवर्स के सबसे अद्भुत और आकर्षक वस्तुओं में से एक हैं. जैसे आकाशगंगाएं यूनिवर्स की बिल्डिंग ब्लॉक्स यानि निर्माण खंड हैं, वैसे ही सितारे आकाशगंगाओं के निर्माण खंड हैं. ये यूनिवर्स के पॉवर हाउस यानि शक्ति गृह हैं और यही उन सभी तत्वों के स्रोत हैं जिनसे हम और हमारी पृथ्वी व इसकी तमाम संपदाएँ बनी हुई हैं. कार्ल सेगन का प्रसिद्ध कथन आपको याद ही होगा? “we are made of star stuff.” लेकिन क्या आपको पता है कि सितारों का भी एक जीवन चक्र होता है, वे पैदा होते हैं, बड़े होते हैं, बूढ़े होते हैं और अंत में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं. इस पोस्ट में हम सितारों की जीवन यात्रा में सहभागी बनेंगे. तो पहनिए अपना स्पेस सूट और स्पेस हेलमेट, बांधिए अपनी कुर्सी की पेटी. कॉफ़ी का प्याला भर लीजिए. हम चल रहे हैं सितारों की जगमग दुनिया की सैर करने. चलें?
यह सब शुरू होता है एक बादल से. अन्तरिक्ष में तैरता हुआ गैस और धूल का बहुत बड़ा बादल. इस बादल को मॉलिक्यूलर क्लाउड यानि आणविक बादल कहा जाता है. ये अधिकतर हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से बने होते हैं, लेकिन इनमें अन्य भारी तत्व जैसे कार्बन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन भी होते हैं. ये तमाम गैसें गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा आपस में जुडी रहती हैं, लेकिन सिर्फ ये गैसें ही सितारे के बनने के लिए जिम्मेदार नहीं होती, साथ में कुछ अन्य कारक जैसे सुपरनोवा विस्फोटों से निकलने वाली शॉक वेव्स और दूसरे सितारे से आने वाले विकिरण भी इसपर असर डालते हैं. तब जाकर सितारे के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है.
अच्छा बताइए मॉलिक्यूलर क्लाउड कितना बड़ा हो सकता है? नहीं पता?
आणविक बादल का साइज़ सैकड़ों प्रकाश वर्ष तक बड़ा हो सकता है. इतना बड़ा होगा तभी तो सभी गैसों को जोड़े रखने योग्य ग्रेविटी पैदा हो पाएगी. लेकिन यह ग्रेविटी इतनी शक्तिशाली होती है कि आणविक बादल इसके प्रभाव में आकर खुद में संकुचित होना शुरू हो जाता है. जैसे जैसे यह संकुचित होता है, इसके केंद्र में मौजूद गैस संघनित और अत्यधिक गर्म होना शुरू कर देती हैं. अंततः तापमान और दबाव इतना अधिक हो जाता है कि यहाँ नाभिकीय संलयन प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
नाभिकीय संलयन क्या है?
नाभिकीय संलयन यानि Nuclear Fusion वह प्रक्रिया है जिसमें दो परमाणु नाभिक एक साथ जुडकर किसी भारी तत्व का निर्माण करते हैं. यह तब संभव है जब दोनों नाभिकों को एक दूसरे के इतना पास ले आया जाए कि नाभिकों को जोड़े रखने वाला शक्तिशाली बल नाभिकों में मौजूद घनात्मक कणों यानि प्रोटोन्स को एक दूसरे से दूर रखने वाले विद्युत चुम्बकीय बल से ज्यादा हो जाए. यह होने के लिए हमें अत्यधिक मात्रा में तामपान और दबाव की आवश्यकता होगी. जैसा कि आणविक बादल या फिर किसी सितारे के केंद्र में पाया जाता है. ऐसे वातावरण में हाइड्रोजन के नाभिक (जिन्हें हम प्रोटोन भी कहते हैं) आपस में जुडकर हीलियम के नाभिक बनाने लग जाते हैं. इस प्रक्रिया में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा विसर्जित होती है जोकि ऊष्मा और प्रकाश के रूप में होती है.
सभी सितारे समान पैदा नहीं होते
थॉमस जेफ़रसन ने संयुक्त राज्य अमेरिका के आज़ादी के घोषणापत्र में लिखा है कि “All men are created equal”. लेकिन यह बात सितारों पर लागू नहीं होती. सभी सितारे समान पैदा नहीं होते. मॉलिक्यूलर क्लाउड का द्रव्यमान यह तय करता है कि उससे जो सितारा बनेगा उसका आकार और तापमान क्या होगा. आणविक बादल से सितारा बनने की प्रक्रिया कुछ स्टेजों से होकर गुजरती है जिनकी चर्चा हम अभी करने वाले हैं.
सबसे पहले तो बादल में मौजूद गैस अपने गुरुत्वाकर्षण बल के अधीन होकर इसके केंद्र में संकुचित होने लगती है. यह प्रक्रिया जैसे जैसे तेज होती है, बादल में मौजूद गैसों के घूमने की गति भी तीव्र से तीव्रतर होती जाती है. अब तेजी से घुमती हुई ये गैसें एक समतल डिस्क का आकार ग्रहण कर लेती हैं जिसे प्रोटोप्लेनेटरी डिस्क कहा जाता है. अब जैसे जैसे गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव बढ़ता जाता है तो इस डिस्क में पदार्थ के झुण्ड एक जगह एकत्र होना शुरू कर देते हैं. इन झुंडों को प्रोटोस्टार कहते हैं. यानि सितारे की आरंभिक अवस्था में पहुंचे हुए पिंड. लेकिन ये प्रोटोस्टार अभी इतने गर्म नहीं होते कि इनमें नाभिकीय संलयन शुरू होकर खुद का ऊष्मा और प्रकाश पैदा होना शुरू हो जाए. लेकिन इसके बावजूद ये अत्यधिक चमकीले होते हैं.
जब सितारों में प्रकाश बन ही नहीं रहा तो ये चमकीले कैसे हो गए?
वह इसलिए क्योंकि अत्यधिक गर्मी और दबाव के कारण पदार्थ के जो कण आपस में टकरा रहे हैं वे ऊर्जा पैदा कर रहे हैं. उसी ऊर्जा से इसकी चमक और रौशनी बन रही है. जैसे जैसे यह प्रक्रिया यानि गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में पदार्थ के संकुचन की प्रक्रिया आगे बढ़ती है और ज्यादा से ज्यादा पदार्थ एकत्र होता है तो इसका तापमान अंततः इतना हो जाता है कि उसके केंद्र में नाभिकीय संलयन शुरू हो जाए. अब हमारा प्रोटोस्टार एक सच्चा सितारा बन जाता है.
लेकिन प्रोटोस्टार से सच्चे सितारे में यह बदलाव हमेशा इतना आसान नहीं होता. कभी कभी प्रोटोस्टार में ऊर्जा के अत्यधिक प्रचंड विस्फोट पैदा होते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन पिंडों की सतह पर से जब आसपास का पदार्थ टकराता है तो यह टकराव बहुत भयंकर होता है. इन सितारों को T Tauri सितारे कहा जाता है. ये सितारे हमारे सूर्य से 100 या यहाँ तक कि हजार गुणा ज्यादा चमकदार हो सकते हैं.
मॉलिक्यूलर क्लाउड से सितारा बनने की प्रक्रिया पूरी होने के लिए कुछ शर्तेंं आवश्यक
पहली शर्त है कि हमारा यह बादल पर्याप्त रूप से इतना बड़ा होना चाहिए ताकि इसकी ग्रेविटी गैसों और धूल के कणों द्वारा एक दूसरे पर को बाहर धकेलने वाले दबाव से ज्यादा हो सके. इसके लिए इसका द्रव्यमान बृहस्पति या जुपिटर ग्रह के द्रव्यमान से कम से कम 80 गुणा ज्यादा होना चाहिए. या फिर हमारे सूर्य के द्रव्यमान का कम से कम 0.08 गुणा हो.
दूसरी शर्त है कि यह इसका शुरुआती तापमान इतना कम हो कि गैस और धूल के कण संघनित होकर एक केंद्र का निर्माण कर लें. इसके लिए इस बादल का तापमान 10 कैल्विन से कम होना चाहिए. सेल्सियस में यह होगा -263 डिग्री सेल्सियस. काफ़ी ठंडा है न? अगर इससे भी 10 डिग्री और ठंडा हो जाए तो यह पहुँच जाता है absolute zero यानि परम शून्य तापमान पर. यह तो आपको पता ही होगा कि परम शून्य तापमान से कम तापमान नहीं हो सकता.
बहरहाल किसी मॉलिक्यूलर क्लाउड में जब ये शर्तें पूरी हो जाती हैं तो गुरुत्वाकर्षण बल अपना काम करने लग जाता है और गैस और धूल के कण इसके केंद्र की तरफ खिंचने लग जाते हैं. जब ऐसा होने लगता है तो बादल सिकुड़ने लगता है और इसका घनत्व ज्यादा होने लग जाता है. इससे केंद्र का तापमान बढ़ने लग जाता है. यहाँ से हमारे सितारे के जन्म की प्रोटोस्टार स्टेज शुरू होती है. इस स्टेज में इसके केंद्र का तापमान ज्यादा तो है लेकिन इतना नहीं कि यह नाभिकीय संलयन को जारी रख सके. लेकिन जैसे जैसे प्रोटोस्टार अपने अंदर खिंचता जाता है, इसके केंद्र का तापमान और दबाव बढ़ता जाता है और अंततः यह इतना हो जाता है कि यहाँ नाभिकीय संलयन प्रक्रिया शुरू हो जाती है. अब शुरू होती है हमारी T Tauri स्टेज. अब इसके केंद्र में हाइड्रोजन के परमाणु यानि प्रोटोन आपस में जुडकर हीलियम के परमाणुओं का निर्माण कर रहे हैं. यह प्रक्रिया है Nucleosynthesis.
खैर…
T Tauri के बाद प्रोटोस्टार अब पूर्ण सितारा बन जाता है और अब शुरू होती है Main Sequence Stage. अब सितारा अपने केंद्र में नाभिकीय संलयन प्रक्रिया कर रहा है और भारी मात्रा में ऊर्जा का निर्माण कर रहा है. ये सितारे यूनिवर्स में सबसे आम पाये जाने वाले सितारे हैं. ये सबसे ज्यादा स्टेबल होते हैं और लम्बी आयु लिए होते हैं. ये सितारे संतुलन की अवस्था में रहते हैं.
आप पूछना चाहेंगे कि संतुलन किस तरह का?
होता यूँ है कि सितारे के केंद्र में बनने वाली प्रचंड ऊर्जा इसके अंदर के पदार्थ को बाहर धकेलती और इसकी प्रचंड ग्रेविटी इसको अंदर खींचती है. ये दोनों बल एक दूसरे को संतुलन में रखते हैं और सितारा अपना अस्तित्व कायम करके रखता है.
ये सितारे बहुत से आकारों के हो सकते हैं, छोटे और कम गर्म लाल बौने से लेकर अत्यधिक बड़े और गर्म नीले दैत्य तक. इन्हीं के बीच में आते हैं हमारे सूर्य जैसे कम मध्यम आकार और तापमान वाले पीले सितारे. इन सितारों का आकार इनके द्रव्यमान पर निर्भर करता है, जितना ज्यादा द्रव्यमान होगा उतना ही बड़ा सितारा भी होगा. और उसका तापमान भी उतना ही अधिक होगा. सितारे का रंग उसके तापमान पर निर्भर करता है. कम गर्म सितारे लाल होते हैं और ज्यादा गर्म नीले. मध्यम गर्म पीले.
ऐसे नहीं थोड़ा विस्तार से बताओ. आप सोच रहे होंगे. है न?
चलिए इसके बारे में विस्तार से तो नहीं लेकिन थोड़ी संक्षिप्त चर्चा तो कर ही लेते हैं.
छोटे सितारे, जिनका द्रव्यमान हमारे सूर्य का आधा होता है, उनके केंद्र का तापमान और दबाव कम होता है. इसका अर्थ यह हुआ कि उनकी हाइड्रोजन रूपी ईंधन को खर्च करने की दर कम होती है. इन सितारों को लाल बौना या फिर Red Dwarf कहा जाता है. ये मेन सीक्वेन्स स्टेज में खरबों साल तक रहेंगे. ये हमारे यूनिवर्स में सबसे कॉमन सितारे हैं.
हमारे सूर्य के आधे से लेकर 8 गुणा तक होता है, ये लाल बौने से बड़े होते हैं. ज्यादा गर्म होते हैं और ज्यादा चमकदार होते हैं. ये कुछ बिलियन साल के बाद अपना ईंधन खत्म कर देते हैं और मेन सीक्वेन्स स्टेज के अंत की शुरुआत हो जाती है.
सबसे बड़े सितारे वे होते हैं जो सूर्य के द्रव्यमान से 8 गुणा से ज्यादा द्रव्यमान रखते हैं. इनके केंद्र का तापमान और बढ़ावा अत्यंत प्रचंड होता है, इसलिए ये अपना ईंधन बहुत तेजी से खत्म कर देते हैं और इनकी आयु सबसे कम होती है. लेकिन ये यूनिवर्स के क्रमिक विकास को बहुत प्रभावित करते हैं क्योंकि यही वे सितारे हैं जिनमें सुपरनोवा विस्फोट होते हैं और जो भारी तत्वों के निर्माण का कारण बनते हैं. इन्हीं की वजह से आगे नये सितारों और सौर मण्डलों का जन्म होता है.
नेब्यूला क्या है
एक बात और. सुपरनोवा के बाद भी उत्सुर्जित गैसों और धूल से एक बहुत बड़ा बादल बनता है जिसको नेब्यूला कहा जाता है. यह नेब्यूला भी मॉलिक्युलर क्लाउड की तरह ही होता है और इससे भी नए सितारे व सौर मंडल का निर्माण होता है. उन्हीं तमाम स्टेजों से गुजर कर. यानि सितारे के विनाश के बाद उसी से एक नए सितारे और सौर मंडल का सृजन.
एनीवेज.. यह है सितारे के जन्म की गाथा. लेकिन यह अभी खत्म नहीं हुई है. जिस तरह सितारे के जन्म को समझना महत्वपूर्ण है उसी तरह सितारे के अंत को समझे बिना हम यूनिवर्स को भी नहीं समझ सकते. वैसे एक बात से तो आप पूर्णतः सहमत होंगे, सीखने व समझने की यह प्रवृति होना भी हमारे इंसान होने के लिए उतनी ही जरूरी है जितनी यूनिवर्स के लिए सितारों का जन्म होना.
वैसे यह एक द्वन्द्वात्मक बात है. एक बहुत बड़ा फैला हुआ आणविक बादल जब सिकुड़ने लगता है तो सितारे को जन्म देता है. फैलाव और संकुचन का यह द्वन्द्व हमारे और हमारी पूरी कायनात के वजूद का कारण है.