महात्मा गांधी सिर्फ आन्दोलनबाज नहीं थे, बैरिस्टर थे और भारतीयों को नई जीवनशैली दी

महात्मा गांधी केवल आन्दोलनबाज नहीं थे। बेकार, बेरोजगार, हारे पिटे भारतीयों को उन्होंने नई जीवनशैली दी थी।

जब गांधी ने कोचरब में 1915 में 25 लोगों के साथ पहला आश्रम बनाया तो यह भी ध्यान में रखा कि यहां सूत मिलता है और चरखा व कपड़ा बुनने का काम यहाँ आसानी से सीखा और लोगों को सिखाया जा सकता है। वह बैरिस्टर के रूप में अफ्रीका में वकालत और तमाम आंदोलन करके भारत आए थे।
उन्होंने रोजगार और अपनी अधिकतम जरूरतें एक छोटे से क्लस्टर में पूरा कर लेने का मॉडल विकसित किया था। उस दौर में कपड़े न होना आम समस्या होती थी और कपड़े हासिल करने में भारतीयों की एनर्जी और धन दोनों ही बहुत ज्यादा लग जाता था। चरखा से सूत काटने वाली तकनीक उन्होंने घर घर पहुंचाकर एक हद तक कपड़े की समस्या हल कर दी थी। जब अंग्रेज मिलों से पैसे कमा रहे थे और कपड़े बनाने के भारतीय तरीके पिट रहे थे तो उन्होंने मिलों से सस्ते कपड़े का विकल्प जनता को दे दिया।
मुझे याद है कि मेरी नानी के यहां 3 चरखे थे। उसके अलावा छोटी वाली तकली भी थी। मेरे जन्म के बाद तो शायद चरखे चलने बन्द हो गए थे। अम्मा बताती थीं कि मेरी नानी और उनकी 2 देवरानिया चरखे चलाती थीं। उससे बनाए धागे को दुकान पर पहुंचाया जाता था, उसके बदले कपड़े मिल जाते थे। ज्यादा सूत काटने पर धागे के बदले कैश भी मिल जाता था।
शायद यही वजह थी जब गांधी ने नमक सत्याग्रह किया था तो 25,000 महिलाओं ने गिरफ्तारी दी थी। गिरफ्तारी, जिसका रिकार्ड था और उसे दर्ज किया गया। मुझे याद नहीं कि इतनी महिलाओं ने इतनी गिरफ्तारी किस आंदोलन में दी है! जबकि गांधी को चरखा चलाए/चलवाए बहुत साल नहीं बीते थे।
कपड़े का अलग दर्शन है। तब भी था और अब भी है। इलीट क्लास का पहनावा अलग होता है और आम इंसान का अलग। गांधी जब भारत आए तो इलीट ड्रेस छोड़ दिया।
मुझे लगता है कि उसे उन्होंने 2 तरह से इस्तेमाल किया। पहला तो यह कि आम इंसानों में वह सहज दिखने लगे जैसे उनके आदमी हैं। इसका असर इतना है कि आज भी सरदार वल्लभ भाई पटेल को लोग कोई गंवार गरीब गुरबा गांधी का चेला मानते हैं, जबकि पटेल के पिता 1857 की लड़ाई में विद्रोह कर चुके थे और वल्लभभाई पटेल व उनके बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल दोनों ने उस दौर में लंदन में पढ़ाई की थी, जो मेरे जैसे आम चिरकुट इंसान के लिए इक्कीसवीं सदी में भी सम्भव नहीं है। कोई स्कॉलरशिप दे दे, या फंडिंग कर दे तो वह अलग मसला है। डॉ राजेन्द्र प्रसाद को आज भी चिरकुट आम इंसान माना जाता है जो उस दौर में बिहार और बंगाल के सबसे महंगे और अमीर वकील थे।
दूसरा लाभ गांधी ने यह उठाया था कि जब भी कोई ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिकन पत्रकार या नेता गांधी के नङ्गे रहने पर पूछता था तो वह सीधे बोलते थे कि ब्रिटिश शासन ने भारतीयों को नङ्गा कर रखा है, कपड़ा तक छीन लिया। सरदार पटेल की बेटी मणिबहन अंत समय तक धागा बुनती थीं और उसी के बदले मिला कपड़ा सरदार पटेल पहनते थे। जब वह गृहमंत्री थे तो उनके सहयोगी महावीर त्यागी ने कहा कि आपका कुर्ता फट गया है तो पटेल ने कहा था कि मणि काफी दिन तक बीमार रही जिसके चलते चरखा नहीं चल पाया। यह महाबीर त्यागी ने अपनी किताब में लिखा है और 1950 के आसपास छपी वह किताब अभी दिल्ली की दयाल सिंह लाइब्रेरी में 3 साल।पहले तक मौजूद थी और मैंने पूरी पढ़ी है। वही पटेल, जिनको उस दौर के कम्युनिस्ट पूंजीपतियों और राजे रजवाड़ों का आदमी कहते थे और जवाब में पटेल ने कहा था कि किस नेता के पास कहाँ से पैसे आ रहे हैं, सबकी लिस्ट मेरे पास है उसके बाद आरोप लगाने वाले तमाम शांत हुए।
अभी भी सवाल विकल्प का ही है। क्या मौजूदा व्यवस्था, शासक/शासन का कोई विकल्प है, जो जनता बेहतर मान ले? जनता तो थकी हारी, पिटी, हताश, बेरोजगार बैठी ही है। हर घर मे पति पत्नी में महाभारत मची है। जनता का यही मानना है कि मौजूदा शासन का कोई सूर्यास्त नहीं है, इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है!
#भवतु_सब्ब_मंगलम

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