महिलाओं को डायन बताकर  जिंदा जला देने की घटनाएं

भारत में महिलाओं को डायन बताकर पीटने और जिंदा जला देने की घटनाएं अक्सर सुनने में आ जाती हैं. किसी महिला को भीड़ डायन बताकर पीटने लगती है. उसे बेइज्जत किया जाता है. खासकर दूर दराज के इलाकों में ये घटनाएं अक्सर सुर्खियां बन जाती हैं. क्रांति कुमार बता रहे हैं कि उसकी वजहें क्या थीं…

महिलाओं को डायन बताकर ज़िंदा जलाने की पांच प्रमुख वजह यह थी.

1) संपत्ति पर कब्जा करने के लिए.

2) अवैध संबंध से इनकार करने पर.

3) गैर धर्म से होने की स्थिति में.

4) पति के दूसरी शादी करने की स्थिति में.

5) बाढ़, अकाल और बीमारी की वजह से

1) पिता अपनी बेटी को अपनी संपत्ति या गद्दी का उत्तराधिकारी नहीं बनाना चाहता. जादू टोने टोटके का आरोप लगाकर या अन्य षड्यंत्र रच कर महिलाओं को ज़िंदा जलाया गया है ताकि विशेषाधिकार बेटों के पास बना रहे और महिलाएं वंचित रहें.

2) गांव में जो सबसे सुंदर और गरीब लड़की होती थी, अगर उस पर किसी पादरी की नजर पड़ जाती, तो उसे ईश्वरीय आदेश बताकर नन बना दिया जाता. इसके बाद ननों का यौन शोषण शुरू होता था. अगर कोई नन गर्भवती हो जाती थी तो उसे कुएं में फेंक दिया जाता था. अक्सर गरीब घरों की लड़कियां नन बनती थीं, कुलीन घरों की लड़कियां नन नहीं बनती थीं.

साहूकार, सामंत या इलाके का अन्य कुलीन व्यक्ति की बुरी नजर अक्सर गरीब घर की महिलाओं या कुंवारी कन्याओं पर पड़ जाती थी. उन महिलाओं को हासिल करने में नाकाम रहने पर कुलीन वर्ग और पादरी उस पर ईशनिंदा के आरोप लगाकर उन्हें ज़िंदा जला देते थे. ऐसी घटना से डर कर कई गरीब महिलाएं अपने शरीर का समर्पण सामंतों, पादरियों को कर देती थीं.

3) रोमन कैथोलिक चर्च ने अपना रूढ़िवादी प्रभाव बरकरार रखने के लिए प्रोटेस्टेंट इसाई महिलाओं को ईशनिंदा या डायन का आरोप के तहत ज़िंदा जलाया, व्यापक रूप से इसके उल्लेख मिलते हैं.

4) पतियों ने दूसरी पत्नी रखने के लिए ऐसा किया. पहली पत्नी से छुटकारा पाने के लिए उसे डायन बताकर ज़िंदा जला देते थे.

5) गरीबी, बाढ़, अकाल और बीमारी नहीं ठीक होने पर लोग इसका इल्ज़ाम अक्सर अपने पड़ोसियों या गांव की किसी अधेड़ उम्र की महिला पर लगा देते थे. हर दुख दर्द या आपदा का ठीकरा उसके सिर फोड़कर उसे डायन बताकर कर जिंदा जला देते थे.

आग के आविष्कार के बाद हम इंसानों ने अपने अंधकार जीवन में उजाला किया, लेकिन उसी आग से हमने अपने ही लोगों का नरसंहार कर उन्हें हमेशा के लिए अंधकार में ढकेल दिया.

यहां से प्रचलन में आया होलिका दहन

यह होलिका दहन नही यूरोप के डायन का दहन है जिसे अंग्रेज़ी में विच कहा जाता है. समाज में विच अमूमन महिलाओं को ही बनाया गया है.

जर्मनी की ईसाई नन संत वालपुरगा ने अपने जादू टोना विचारों से सातवीं शताब्दी में ईसाई धर्म को डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे और फिनलैंड तक फैलाने का काम किया था.

नन वालपुरगा ने आम लोगों को विश्वास दिलाया कि ईसाई बनने पर रैबीज, कीट, काली खांसी जैसी बीमारी ठीक होगी. साथ ही विच यानी डायन भी आसपास नहीं भटकेगी.

चर्च ने खुश होकर वालपुरगा को संत का दर्जा दिया. उसके मरने के बाद लोग रैबीज, कीट, खाली खांसी जैसी बीमारियों से ठीक होने के लिए और डायन से बचाव के लिए नन वालपुरगा की पूजा करने लगे.

यूरोप में लाखों महिलाओं को डायन बताकर जिंदा जला दिया गया. उसी तरह, जैसे आज कल भारत में होलिका दहन होती है. यूरोप में बाकायदा डायन को दंड देने के लिए दंड संहिता बनी थी.  विच ऐक्ट बना. इसके आधार पर कानूनी प्रक्रिया के तहत महिलाओं को ज़िंदा जलाया गया. डायन जलाना तब यूरोपीय लोगों के लिए मेला देखने जैसा था.

लोग जलती हुई महिलाओं को देखकर लुफ्त उठाते थे. जैसे भारत में होलिका दहन पर लोग खुशियां मनाते हैं, नाचते गाते हैं और दूसरे दिन रंग खेलकर साबित करते हैं कि जो होता आया है वही होगा. चाहे सही हो या गलत, वही होता रहेगा.

यूरोप विकसित है. अंधविश्वास नहीं के बराबर है. लेकिन थोड़े बहुत अंधविश्वासी लोग मौजूद हैं. डेनमार्क, जर्मनी, चेक रिपब्लिक, स्वीडन, फिनलैंड और स्लोवेनिया में वालपुरगा की आराधना में 30 अप्रैल को सूखी लकड़ियों को सजाकर उसके ऊपर डायन का पुतला लगाकर जलाते हैं और कामना करते है संत वालपुरगा बीमारी और डायन से रक्षा करेंगी.

होलिका (महिला) को डायन बताकर यूरोप में भी दहन किया जाता है, और यहां भी. राम यहां भी हैं और एक राम मिस्र की कहानियों में भी हैं. कृष्ण और मूसा की कहानी में कितनी समानता है. अयोध्या थाईलैंड में भी हैं. एक अयोध्या, भारत में भी है.

5,00,000 साल पहले आग का आविष्कार करते हुए होमोसेपियंस ने सोचा भी नहीं होगा कि आने वाले समय में वो महिलाओं को डायन बताकर ज़िंदा जलाएंगे.

 

 

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