मनुष्य क्या पाने के लिए व्याकुल है भाग रहा है उसे खुद पता नहीं होता

मनुष्य क्या पाने के लिए व्याकुल है भाग रहा है उसे खुद पता नहीं होता

सत्येन्द्र पीएस 

आजकल मन में अजीब अजीब ख्याल आते हैं। मैं जहां नौकरी करता हूँ, ऑफिस के पीछे बड़ा सा कब्रिस्तान है। पहले वह बाहर से नहीं दिखता था, अभी सरकार ने पेड़ काटो सफाई करो अभियान चलाया हुआ है। इस अभियान के तहत मेरे मोहल्ले के पार्क के पेड़ काट डाले गए हैं। कब्रिस्तान के भी पेड़ काट डाले गए। पहले पेड़ों,फूलों, डालियों से कब्रिस्तान ढका रहता था, अब बाहर से ही साफ साफ दिखता है। ऑफिस से बाहर निकलने की भी जरूरत नहीं होती। टॉयलेट या कैंटीन में जाने पर भी साफ साफ कब्रें नज़र आती हैं। कई बार सोचा कि देखें, कौन कौन लोग यहां दफन हैं, लेकिन जा नहीं पाया!

शाहजहां के जमाने का कब्रिस्तान है तो स्वाभाविक है कि इसमें मुगल काल के उन तमाम सेनाध्यक्षों के शव दबे होंगे जिन्होंने तमिलनाडु से लेकर अफगानिस्तान तक शासन संभाला होगा और जितना कार्यक्षेत्र स्वतंत्र भारत के सेनाध्यक्षों ने नहीं संभाला होगा। सुनते हैं कि इसी कब्रिस्तान में फ़िल्म सितारे शाहरुख खान की माता जी भी दफन हैं जो खुद भी डिस्ट्रिक्ट या एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज थीं।

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मुगल शासक भी विचित्र थे। इतने बड़े बड़े मकबरे बनवाये हैं। अकबर का मकबरा, हुमायूं का मकबरा, एत्मादुद्दौला का मकबरा, मुमताज महल का मकबरा। इन मकबरों के पीछे भी शायद यह दर्शन रहा हो कि हम चाहे जितना प्रतापी बन जाएं, लेकिन आखिरी शरणस्थली यही है और शायद मृत्यु की अनुभूति उन्हें हमेशा जनकल्याणकारी काम करने के लिए प्रेरित करती हो!

कब्रों से मेरा पुराना प्रेम रहा है। हुमायूं का मकबरा उनकी पत्नी हाजी बेगम ने बनवाया था। बिल क्लिंटन यह मकबरा घूमने आए तो नामी हो गया। ताजमहल शाहजहां की पत्नी का मकबरा है। अकबर ने जीते जी अपना मकबरा बनवा डाला था, जो महल से भी भव्य और विशाल है। आगरा में ही एत्माउद्दौला का मकबरा है, जिसकी नक्काशी विश्व की सर्वश्रेष्ठ नक्काशी में से एक है, जिसे नूरजहां ने अपने पिता की याद में बनवाया था! और भी ढेर सारी कब्रें मैंने देखी हैं।

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अगर सचमुच किसी को मृत्यनुभूति हो जाए तो वह जीवन के, शरीर की नश्वरता को फील कर लेगा। शायद फिर उसे किसी के प्रति हिंसा का भाव नहीं रह जाएगा। बुद्धिज्म में जो ध्यान होते हैं वह शरीर के अंग फील करना या सांसों को फील करना शुरुआती अभ्यास है। बाद के क्रम में शरीर की नश्वरता के साथ शरीर के एक एक करके अंगों को अलग अलग फील करवाया जाता है किआपका फेफड़ा कैसे चल रहा है और लिवर किडनी कैसे चल रही है और उसमें क्या बदलाव हो रहा है।

कई मित्र मांसाहार को लेकर बड़ा कन्फ्यूज रहते हैं कि बुद्धिज्म में मांसाहार करते हैं या नहीं। एक बुद्धिस्ट मोंक को अंडे खाते देखकर मेरे बेटे ने यह सवाल किया कि इन लोगों को अंडे अलाऊ होते हैं क्या? दलाई लामा के म्यूजियम के बगल में 2 शानदार कैंटीन हैं। उसमें अमूमन बुद्धिस्ट लोग ही खाना खाने जाते हैं जो वहां काम करते हैं। लेकिन अगर आप तिब्बतन सिम्पल रेसिपी ट्राई करना चाहते हैं तो वहां जरूर खाएं, सस्ता हाइजेनिक और असल तिब्बतन। दोपहर को खाना मिलता है वहां। उस कैंटीन में भी मांसाहारी खाना परोसा जाता है। 150 रुपये में मटन भात चांपिये।

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बुद्ध धर्म की शिक्षाओं में अहिंसा अहम है। गूगल करेंगे तो मिल जाएगा। ध्यान के पहले प्रतिज्ञा टाइप होती है कि किसी जीव की हत्या न करेंगे। इसी तरह शराब पीने को लेकर भी है कि नहीं पियेंगे। लेकिन लोग शराब भी पीते हैं, मांस भी खाते हैं।

इसके बारे में बुद्धिज्म के जाने माने विद्वान श्रीधर राणा रिनपोछे ने कहा कि जिन भौगोलिक क्षेत्रों में ठंड बहुत पड़ती है और शराब सामान्य खानपान का हिस्सा है, वहां पीते ही हैं। नशा से आशय यह है कि आप ऐसा पियें कि आपका मस्तिष्क विकृत हो जाए, अपने अनमोल शरीर को नष्ट करें, समाज को डिस्टर्ब करें वह गड़बड़ है। और अगर यह सब न पिएं तो अच्छा ही है क्योंकि लत पड़े और दारूबाजी बढ़ती जाए तो वह मनुष्य के लिए नुकसानदेह है। इसलिए कोई भी नशा नहीं करना चाहिए जो आपके शरीर और मस्तिष्क को क्षति पहुंचाए।

मुझे लगता है कि मांसाहार का भी कुछ ऐसा ही मसला है। लेकिन वह करुणा भीतर से आनी चाहिए कि आप मांस न खाएं क्योंकि उसमें किसी चलते फिरते प्राणी को मारना पड़ता है। कोई जोर जबरदस्ती नहीं है कि जो मांसाहारी हैं उनसे घृणा करनी है और उनकी हत्या या मॉब लिंचिंग कर देनी है क्योंकि वह मांस खाते हैं!

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मेरे बेटे के मन मे आया कि मांस नहीं खाना है, उसने छोड़ दिया, जबकि उसकी 11 साल उम्र है। मेरा भी कई साल से खाने का मन नही करता था तो मैंने भी छोड़ दिया। दारू भी करीब छोड़ दी। बुद्धिज्म में इसी टाइप छोड़ना होता है। ऐसा नहीं कि आपका मन लपलपाता रहे और आलू कबाब, मटर कबाब, वेज बिरियानी खाएं क्योंकि अगर मांस खा लिए तो धर्म नष्ट हो जाएगा। यह अंदर से आवाज आनी चाहिए। यह करुणा अंदर से होनी चाहिए, तभी छोड़ने का मतलब है।

पता नहीं कहाँ से कहाँ पहुँच गया। मूल मतलब यह है कि मस्त रहें, व्यस्त रहें। अपनी खुशी के लिए काम करें। ज्यादा हाय हाय करने और पगलाने से कुछ होता जाता नहीं है। कब्र ही अंतिम शरणस्थली है। जो अभी भारत के शहंशाह हैं, वह 10 साल से हैं और शाशन क्षेत्र भी बहुत कम है। तमिलनाडु से लेकर अफगानिस्तान तक शासन करने वालों और दो तीन दशक तक निष्कंटक राज करने वालों की कब्रें दिल्ली, आगरा, महाराष्ट्र से लेकर लाहौर तक बिखरी पड़ी हैं। और अगर कई हजार साल पीछे जाएं तो इस धरती का एक इंच नहीँ मिलेगा जहां बड़े नामी गिरामी लोग दफनाए फूंके न गए हों।

 

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