मणिपुर में महिलाओं को नंगा करने

अटल बिहारी ने जीवन भर मिसेज कौल के साथ अविवाहित रहकर संबंध निभाया, वहीं मणिपुर में महिलाओं को नंगा करने वाला समाज भी मौजूद है

द्रौपदी के चीरहरण से लेकर मणिपुर में महिलाओं को नंगा घुमाने तक की घटनाओं तक महिलाओं को नंगा करने की व्यापक श्रृंखला है. समाज एक तरफ स्त्रियों के यौनांगों को ढके रहने की वकालत करता है तो दूसरी तरफ उसे दंडित करने के लिए उसे नंगा भी करता है.

पुष्य मित्र के फेसबुक वाल से
इंसानों को छोड़ दें तो दुनिया का हर जीव नंगा ही रहता है. उन्हें नंगा देखकर न हमारे मन में कोई कामुकता या जुगुप्सा पैदा होती है और न ही कोई कुत्ता, बैल, बकरा या शेर अपनी ही प्रजाति की किसी मादा को नग्न देखते ही उत्तेजित हो जाता है.
इंसान भी पैदा नंगा ही होता है. चाहे वह नर हो या मादा. अगर आपको किसी अलौकिक शक्ति पर भरोसा है, तो वह भी किसी को कपड़े पहनाकर धरती पर नहीं भेजता. इंसानों को अपने यौनांगों को ढक कर रखने की खब्त है, इसलिए किसी के यौनांग देखते ही उत्तेजित हो जाने की प्रवृत्ति भी. और पुरुषों में यह प्रवृत्ति भी बहुत पुरानी है कि अगर किसी स्त्री पर अपना गुस्सा निकालना है, उसके साथ हिंसा करना है, उसे अपमानित करना है तो वे उन्हें नंगा करते हैं, उनके यौनांगों पर हमला करते हैं. अगर आपकी आस्था को चोट न पहुंचे तो द्रौपदी के चीरहरण का दृश्य याद कर लीजिये.
वह पूरा प्रकरण यह जाहिर कर देता है कि आज से हजारों साल पहले जब यह घोर यथार्थवादी महाकाव्य रचा गया था, तब भी पुरुष स्त्री को अपमानित करने के लिए उसे नंगा कर रहा था और स्त्री अपनी लाज बचाने के लिए अपने अराध्य को पुकार रही थी.
आप स्त्री को थप्पड़ लगा दें. उसकी पिटाई कर दें. उसे बुरी-बुरी गालियां दें. वह बहुत परेशान नहीं होती. पति के थप्पड़ सहने की तो वह आदी ही होती है. मगर आप उसे नंगा कर दें. उसके यौनांगों पर हमले करें, उसे लगने लगता है कि उसका जीवन खत्म हो गया. वह जिस ट्रामा में पहुंच जाती है, उससे उसका उबरना मुश्किल ही नहीं कई दफा असंभव हो जाता है. एक बार सार्वजनिक रूप से नंगी हो जाने के बाद लंबी अवधि तक वह समाज का सामना करने में खुद को अक्षम पाती है. रोज थोड़ा-थोड़ा मरती है. इनमें से कई तो खुदकुशी तक कर लेती है.
लेकिन अगर आप किसी पुरुष को नंगा कर दें, तो क्या उसके साथ भी ऐसा ही होता है? नहीं. उसकी शर्मिंदगी बहुत अल्पकालिक होती है. पुरुषों के लिए नंगा होना, अंडरवियर में घूमना, सड़क किनारे खड़े खड़े मूत्र विसर्जन करना, लंगोट में रहना बहुत सहज है. कोई स्त्री किसी पुरुष को अंडरवियर में देखकर उस पर हमले कर दे, यह सिर्फ विज्ञापनों में होता है, असल जीवन में नहीं. शर्ट उतार कर सिक्स पैक दिखाना पुरुषत्व की सबसे उच्च प्रतिष्ठा मानी जाती है.
अगर सलमान खान सिक्स पैक दिखाते हैं तो उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है, पर अगर उर्फी जावेद अपने अंगों को दिखाती है तो उसकी आलोचना होती है, भर्त्सना होती है. यानी कपड़े तो स्त्री और पुरुष दोनों पहनते हैं, मगर दोनों के लिए कपड़ों के मायने अलग-अलग हैं. समाज ने कपड़ों को स्त्रियों के लिए अनिवार्य बना दिया है और स्त्रियां भी इसे अपने जीवन का सबसे अनिवार्य तत्व मान बैठी हैं.
मगर समाज की सोच इतनी सहज भी नहीं है. समाज एक तरफ स्त्रियों के यौनांगों को ढके रहने की वकालत करता है तो दूसरी तरफ उसे दंडित करने के लिए उसे नंगा भी करता है. चाहे मणिपुर की घटना हो, बेगुसराय का मामला हो या महाभारत हो. यह व्यवहार एक जैसा है. एक जैसी परंपरा.
महाभारत में दुर्योधन और दुशासन अपने पिता पर की गयी टिप्पणी का बदला लेने के लिए द्रौपदी को नंगा करते हैं, मणिपुर में मैतेई अपने दुश्मन समाज को दंडित करने के लिए उस समाज की बेकसूर, अनजान स्त्री को बेवजह नंगा कर उसके यौनांगों पर हमला करती है. तो बेगुसराय में किसी एकांत में अपनी मर्जी से किसी पुरुष के साथ संभोग कर रही युवती को उसके स्वतंत्र यौन व्यवहार का दंड देने समाज के जो पुरुष पहुंचते हैं, उसे सबसे जरूरी काम यही लगता है कि इस स्त्री को नंगा कर दिया जाये.
मतलब यह कि इस समाज में एक तरफ स्त्री का नंगा होना अपराध तो दूसरी तरफ उसे नंगा करना उसी अपराध का दंड है. मगर दुर्भाग्य से समाज के इस अजीबोगरीब व्यवहार की हम नंगी आंखों से विवेचना नहीं कर पाते.
मणिपुर के मामले पर बहुत चर्चा हो चुकी, थोड़ी बातचीत बेगुसराय के प्रकरण पर भी होनी चाहिए. हमें लोगों के उस दिमाग की पड़ताल करनी चाहिए जो दो बालिग लोगों को अपनी इच्छा से संभोग करते हुए देखकर भड़क उठता है और लोगों को दंडित करने का फैसला कर बैठता है. वह यौन व्यवहारों का नियमन अपने तरीके से करता है. वह भूल जाता है कि महाभारत में ही कुंती ने यौन संबंधों के लिए अलग-अलग देवताओं का आह्वान किया था.
लोहिया जी ने कहा था कि दो बालिग लोग अपनी मर्जी से बंद कमरे में जो कुछ करते हैं वह अपराध नहीं है. अटल बिहारी वाजपेयी ने जीवन भर अविवाहित रहते हुए मिसेज कौल के साथ प्रेम संबंध निभाया, यौन संबंध भी बने होंगे. वह उस कानून को भी भूल जाता है जिसके मुताबिक दो बालिग लोगों का आपस में यौन संबंध बनाना अपराध नहीं है. वह अपने व्यवहार से उस स्त्री को बेवजह ऐसा दंड दे देता है, जो ताउम्र उसके माथे पर चिपका रहने वाला है. उसके साथ-साथ उन तमाम औरतों को भी भयभीत करना चाहता है, जो अपनी मर्जी का जीवन जी लेना चाहती हैं.
नंगा होना अपराध नहीं है. नंगा होना शर्म और अपमान की बात भी नहीं है. इस दुनिया का हर जीव सहज रूप से नंगा ही है. मगर जो समाज एक तरफ किसी स्त्री के नग्न होने को अपराध मानता है और दूसरी तरफ उसे नंगा करके दंडित करने की कोशिश करता है. वह खुद नंगई और लंपटई का सबसे बड़ा नमूना है. उसे कभी तो आईने में अपने आप को देखना चाहिए.
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