सत्येन्द्र पीएस बता रहे हैं कि हम किसी अदृश्य सत्ता द्वारा संचालित हैं. हमें नहीं पता होता है कि आगे हमारे साथ क्या होने वाला है. भारतीय दर्शन में यह जानने की कवायद की जाती रही है कि यह घटनाएं दुर्घटनाएं क्यों हो रही हैं.
कल एक मित्र बता रहे थे कि चींटियां जब किसी दाने को जमा करती हैं तो उसे तोड़ डालती हैं. उनका मकसद होता है कि वह बीज उगने न पाए, जो वे जमा कर रही हैं. उन्हें यह भी पता होता है कि इसे कितने पार्ट में तोड़ना है. धनिये के बीज को 4 पार्ट में तोड़ती हैं, क्योंकि वह 2 पार्ट में तोड़ने पर भी उग आता है. इसी तरह चींटियों की क्रॉस करने के लिए ब्रिज बनाने की उनकी तकनीक अद्भुत है. उन्हें होने वाली बारिश का बेहतर ज्ञान होता है. चींटियों में जो नपुंसक होते हैं, सारा श्रम उन्हीं को करना होता है. जो वंश बढ़ा सकते हैं, वह केवल खाते हैं. मेहनत नहीं करते. हम जब पैदल चल रहे होते हैं तो किसी भी चींटी को कुचल देते हैं. हमें नहीं पता होता है कि इसमें कौन सी चींटी अंडे देने वाली है. किस चींटी की छमता अंडे पैदा करने की है. कितनी चीटियां श्रमिक हैं और केवल श्रम उनके हिस्से में आया है.
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यह सब वैज्ञानिक शोध की बाते हैं कि चीटियां कितनी विकसित हैं. उन्होंने कितना शोध किया है. हकीकत तो यही है कि हम ज्यादातर मनुष्य चीटियों के शोध, उनकी जीवन शैली, उनकी प्रशासनिक व्यवस्था से अनभिज्ञ हैं. हम ऐसे ही उनको कुचल देते हैं. हमको नहीं पता कि उनके वैज्ञानिक को हमने कुचल दिया, उनके प्रधानमंत्री को कुचल दिया, उनके राजा को कुचल दिया या उनके रानी को. हम ध्यान भी नहीं देते कि चींटी को कुचला कि नहीं.
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ज्यादा संभव हो कि हमसे विशाल कोई हो और हमें अहसास ही न हो कि वह हमारे साथ खेल कर रहा है. संभव है कि वह हमें खेल रहा हो खिलौनों की तरह. उसको पता भी हो सकता है और नहीं भी पता हो सकता है कि हममें से किसको उसने कुचल दिया, किसको राजा की कुर्सी पर बिठा दिया. किसको सड़क पर ला दिया. किसको सड़क पर घंटों घिसटने के बाद जिंदा कर दिया. उसको संभवतः यह भी पता न हो कि गोपीनाथ मुंडे केंद्र सरकार के मंत्री हैं, जिनके साथ वह ये प्रयोग करने जा रहा है कि स्पीड ब्रेकर पर गाड़ी झटके से रुकने पर गला तोड़कर मार देना है, वह मंत्री है. अपने को चींटी और खेल करने वाले को मनुष्य मानकर परिकल्पना करें.
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केनोपनिषद में ब्रह्म की परिकल्पना की गई है कि ब्रह्म क्या है. ऋषि बताते हैं कि विश्व की जो आधारभूत संचालक शक्ति है, वही ब्रह्म है. स्रोत का वही स्रोत है. मन का वही मन है. वाणी की वही वाणी है. प्राण का वही प्राण है चक्षु का वही चक्षु है. यह जानने वाले ज्ञानी लोग इंद्रियों के विषयों का साथ छोड़ देते हैं और मृत्यु के बाद इस लोक से छुटकारा पा जाते हैं. चीजों का संचालन जहां से हो रहा है, वहां आंख नहीं पहुंचती. वहां वाणी नहीं पहुंचती, वहां मन नहीं पहुंचता, वह विदित यानी जिसे हम जानते हैं और अविदित यानी जिसे हम नहीं जानते हैं, से अलग है. वाणी जिसे प्रकट नहीं कर सकती, बल्कि वाणी जिससे प्रकट होती है, वह ब्रह्म है. जो मन से मनन नहीं करता बल्कि जिसके द्वारा मन मनन करता है, वह ब्रह्म है. जो आंख से नहीं देखता, जिसके द्वारा आंख देखती है वह ब्रह्म है.
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हम तमाम चीजें नहीं जानते कि वह कहां से संचालित हो रही हैं. आपके पास हर भौतिक सुख सुविधा होती है और आपके साथ वह कोई खेल कर देता है. मनुष्य अपने जीवन में चाहे जितना उछल कूद कर ले, उसके जीवन में उसके मुताबिक जो भी बहुत अच्छा या बहुत बुरा होता है, उसमें उसका योगदान बिल्कुल ही नहीं होता. आप खुद अपने जीवन के बारे में कल्पना करें. आपके जीवन में जो 5 चीजें अच्छी या 5 चीजें बुरी हुई हैं, उसके बारे में आपको पहले से क्या पता था…. क्या आपके सोचे और आपकी मेहनत के मुताबिक हुआ या उससे अलग ही जिंदगी ने गुल खिला दिया है.