ये कैसा बाल अधिकार संरक्षण आयोग है, जिसकी चिंता बच्चों की रक्षा से ज्यादा राहुल गांधी को दोषी ठहराने में है?

वंचितों पीड़ितों की रक्षा करने के लिए बने आयोग राजनीतिक टूल हो गए हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को बच्चों के हित से कहीं ज्यादा चिंता राहुल गांधी की आलोचना करने और उन्हें सजा दिला देने में है।

दिल्ली में 8 साल की बच्ची का रेप हुआ। वह मर गई। राहुल गांधी ने उसके मां बाप के साथ फोटो खिंचाई। उसको ट्विटर पर डाल दिया।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के मुताबिक राहुल गांधी ने बहुत जघन्य अपराध किया है। राहुल गांधी को सजा दी जानी चाहिए।
बाल अधिकार आयोग को बच्ची के साथ रेप उतना जघन्य नहीं लगता। वह शायद संवैधानिक और वैदिक कार्य है। दिल्ली की सड़क पर जहां भी निकल जाइये, चौराहे पर छोटे छोटे बच्चे भीख मांगते नज़र आते हैं। कुछ तो 10 साल की बच्चियां दिखती हैं जिनकी गोद मे 4 साल का बच्चा होता है। वह कार का सीसा ठोककर कई तरह से गिड़गिड़ाने का मुंह बनाती हैं।
ये दिल्ली में भीख मांग रही बच्चियां पता नहीं कितनी बार रेप का शिकार होती होंगी। कितनी मर जाती होंगी। शायद किसी भलेमानस ने बाद अधिकार आयोग की कल्पना इसीलिए की होगी कि इन बच्चों को भी मनुष्य समझा जाए, बाल अधिकार आयोग इसका कुछ रास्ता निकाले!
लेकिन सरकार ने बाल अधिकार आयोग को क्या से क्या बना दिया। वह भी चुनावी मशीन हो गया। उसको रेप पीड़ित बच्ची की चिंता नहीं है। मणिपुर में पचासों हजार लोग कैंप में रह रहे हैं वही महिलाओं को बच्चे पैदा हो जा रहे हैं, उनकी भी चिंता नहीं है। सैकड़ों मैतेई जान बचाकर पैदल ही बाल बच्चों के साथ पड़ोसी राज्यो में भाग रहे हैं उनके अधिकार की भी चिंता नहीं है।
बाल अधिकार आयोग की चिंता यह है कि राहुल गांधी ने मर चुकी रेप पीड़िता के मां बाप के साथ ट्विटर पर फोटो डालकर गम्भीर अपराध कर दिया है। जबकि इससे बलात्कारी को सजा मिलने के चॉन्स बढ़ गए होंगे। पुलिस सक्रिय हो गई होगी कि जांच में लापरवाही पर सस्पेंड हो सकते हैं। अपराधी डर गया होगा कि विक्टिम के माँ बाप को धमकाने गए तो पुलिस लट्ठ कर देगी। भले ही राजनीतिक लाभ के लिए राहुल उसके साथ फोटो खिंचाए हों, लेकिन उससे ज्यादा लाभ उस पीड़ित परिवार को अपने आप मिल जाता है।
ऐसा तमाम केसेज में देखा गया है। गांव गिरांव में चाहे जितना कोई दबंग हो, पीड़ित व्यक्ति के यहां अगर किसी बड़े नेता का काफिला पहुँच जाए तो पीड़ित को सबसे तात्कालिक राहत तो यह मिलती है कि उसके साथ अपराध करने वालों में खौफ बैठता है और वह पीड़ित को धमका नहीं पाते कि पुलिस के पास गए तो और लतियाये जाओगे।
खैर… जनता को यही व्यवस्था पसन्द है तो उसमें क्या किया जा सकता है। लोकतंत्र है!

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