Opposition Alliance for 2024 General Election

Opposition Alliance for 2024 General Election की बात चल रही है, वहीं दिल्ली और पंजाब में सत्तासीन आम आदमी पार्टी इस एकता से बाहर होती नजर आ रही है. अरविंद केजरीवाल की कोई वैचारिक विश्वसनीयता न होना उन्हें संभावित अलायंस से बाहर कर रहा है.

2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विरोधी दलों का अस्तित्व दांव पर है. Opposition Alliance for 2024 General Election की कवायद चल रही है. हर विपक्षी दल यह घोषणा कर रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार लोकतंत्र के लिए खतरा है. विपक्ष द्वारा यहां तक कहा जा रहा है कि अगर 2024 में नरेंद्र मोदी की सरकार अगर तीसरी बार सत्ता में आती है तो संवैधानिक बदलाव के साथ चुनाव प्रणाली भी खतरे में पड़ जाएगी.

ऐसे में 23 जून 2023 को नीतीश कुमार की पहल पर विपक्षी दलों की हुई बैठक अहम है. हालांकि यह पुष्ट नहीं हो पाया कि इस बैठक में कितने दल शामिल हुए. ऐसा कहा जा रहा है कि एक दर्जन से अधिक विपक्षी दलों के 30 शीर्ष नेता इसमें शामिल हुए. बैठक में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने रंग में भंग डालने की कोशिश की. आम आदमी पार्टी (आप) ने विपक्षी एकजुटता की कवायद पर यह कहकर प्रश्नचिह्न लगाने की कवायद की कि दिल्ली से संबंधित केंद्र के अध्यादेश पर कांग्रेस के अपना रुख स्पष्ट करने तक वह उसकी मौजूदगी वाली किसी भी विपक्षी बैठक में शामिल नहीं होगी. आप ने कहा कि कांग्रेस को यह तय करना होगा कि वह दिल्ली के लोगों के साथ है या फिर मोदी सरकार के साथ खड़ी है. Opposition Alliance for 2024 General Election के रंग में केजरीवाल ने भंग डाल दी.

क्या है केजरीवाल की राजनीति

अरविंद केजरीवाल ने अंग्रेजी की कहावत स्पिट ऐंड रन यानी थूको और भाग चलो की रणनीति से राजनीति शुरू की थी. नई दिल्ली के जंतर मंतर पर धरने के साथ राजनीति शुरू करने वाले अरविंद केजरीवाल उस समय सभी दलों के ऊपर थूकते थे. वह लोकपाल विधेयक लाकर भ्रष्टाचार खत्म करने के हवा हवाई दावे करते थे. उस दौर में मायावती जैसी सख्त नेता को भी अपने मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप में पद से हटाना पड़ा था. बिहार में नीतीश कुमार की एक मंत्री तो मंत्री पद छोड़कर ही क्रांति करने निकल पड़ी थीं. मंच से ही कांग्रेस के साथ विपक्ष के सभी दलों और नेताओं की सूची निकाली जा रही थी कि कौन कितना भ्रष्ट है. अरविंद केजरीवाल सूची पढ़ते थे और जनता तालियां पीटती थी.

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अब लोकपाल का मसला गायब हो चुका है

अरविंद केजरीवाल के सत्ता में आने के बाद से अब लोकपाल का मसला गायब हो चुका है. भ्रष्टाचार अब कोई मसला नहीं रहा. केजरीवाल के दो दो खासमखास मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में सड़ रहे हैं. हवाला से लेकर शराब घोटाला तक के आरोप केजरीवाल के मंत्रियों पर लगे हैं. केजरीवाल के मंत्री सत्येन्द्र जैन पर क्या आरोप है? जैन पर आरोप हवाला से पैसे की हेराफेरी करने को लेकर है. वहीं शिक्षा मॉडल का ढिंढोरा पीटकर प्रचारित मनीष सिसोदिया शराब घोटाले में जेल की सलाखों के पीछे हैं.

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व्याकुल केजरीवाल को कुछ सूझ नहीं रहा है

अपने मंत्रियों के जेल चले जाने से व्याकुल अरविंद केजरीवाल के सामने अंधेरा है. हालांकि जनता की याद्दाश्त कमजोर होती है और वह भूल ही चुकी है कि केजरीवाल भ्रष्टाचार के विरोध में ही सत्ता में आए और आज उनके दो मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में सड़ रहे हैं. लेकिन केजरीवाल की व्याकुलता ने अब उन्हें उन नेताओं के करीब जाने को विवश किया है, जिसे वह 2011-12 के दौरान चोर और घोटालेबाज बताया करते थे.

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केजरीवाल की विश्वसनीयता नहीं

कांग्रेस सरकार को 2012 में देशव्यापी बदनाम करने में केजरीवाल की अहम भूमिका रही है. जंतर मंतर पर चली उनकी हुल्लड़बाजी से कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ. आरोप तो यह भी लगे कि झंडेवालान स्थित केशव भवन से अरविंद केजरीवाल के आंदोलन को समर्थन मिल रहा था और भाजपा नेता अरुण जेटली इस आंदोलन के लिए धन और जन बल मुहैया करा रहे थे. ऐसे में कांग्रेस पार्टी कभी भी केजरीवाल और उनके दल को विश्वसनीय नहीं मान सकती.

विपक्ष ने नहीं दिया केजरीवाल को भाव

पटना में केजरीवाल ने हुल्लड़ मचाने की कोशिश की. बैठक से निकल गए. संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस में शामिल नहीं हुए. कांग्रेस के भाजपा के साथ मिले होने का आरोप लगाया. लेकिन विपक्षी दलों में से किसी ने केजरीवाल के बयानों को भाव नहीं दिया. मीडिया भले ही केजरीवाल के बयानों को ले उड़ी, जो स्वाभाविक भी था. लेकिन नीतीश कुमार सहित किसी भी नेता ने केजरीवाल को गंभीरता से नहीं लिया है.

स्वाभाविक है कि कांग्रेस अभी आम आदमी पार्टी के साथ कंफर्टेबल नहीं है. वह ममता बनर्जी सहित अन्य दलों के साथ दबने को तैयार है, लेकिन दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के वोटबैंक खाकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है. विपक्षी दलों को भी शायद 2011-12 का घटनाक्रम याद आ चुका है और कोई भी दल अब केजरीवाल को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं है.

ऐसे में अगर कोई विपक्षी एकता 2024 के चुनाव के लिए बनती है तो अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी अलग थलग पड़ते नजर आ रहे हैं. उनके पास बहुजन समाज पार्टी, एमआईएम जैसे दलों के साथ गठजोड़ करने का विकल्प बचता है, जो भाजपा के मजबूत होने के ऑक्सीजन पर ही जिंदा हैं.

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