रुपहले पर्दे पर उतरी दो फिल्में Pathan & Gandhi Godse – Ek Yudh film दर्शकों की अच्छी खासी भीड़ खींच रही हैं. एक के बाद एक फ्लॉप फिल्में दे रहे बॉलीवुड को इन फिल्मों ने संजीवनी दे दी है
Pathan film कोई अद्भुत नहीं. Pathan & Gandhi Godse – Ek Yudh film एक साथ सिनेमाघरों में उतरी हैं. पठान फिल्म मारधाड़, बेसिर पैर की मसाला फिल्म है. कथित हिंदूवादियों के विरोध के बाद एक बड़ा तबका कौतूहलवश फिल्म देखने जा रहा है. न सिर्फ मेट्रो शहरों में, बल्कि गोरखपुर जैसे शहरों में भी इसे दर्शकों का कुतूहल प्रेम मिल रहा है. साथ ही गांधी गोडसे-एक युद्ध को भी दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है. इसी कुतूहल प्रेम में फिल्म देखकर लौटे गोरखपुर के एक युवा विवेक सिंह सैंथवार की पठान फिल्म पर एक टिप्पणी…
पहले से तय था कि पूरे परिवार साथ 26 जनवरी को थियेटर जाना है। लगभग 2 साल बाद फिल्म देखने की योजना बनी. शुरू से एक दम पूरा समर्थन था “पठान” फिल्म के साथ, क्योंकि तमाम लोग बिना वजह योजनाबद्ध तरीके से इस फिल्म का विरोध कर रहे थे. और वे बिना वजह “बेशरम रंग जिंदगी का” बोल के गाने मे 2 सेकंड के एक सीन में कास्ट्यूम के रंग को बहाना बना कर एक खास पालिटिकल नैरेटिव तैयार कर रहे थे. उसका जवाब तो देना ही था.
गांधी गोडसे और पठान ने दिया सकारात्मक संदेश

भारत जोड़ो यात्रा से राहुल ललकार रहे हैं. उधर शाहरुख ने और अमिताभ ने एक खूबसूरत सकारात्मक संदेश दिया. लेकिन जो संदेश अमिताभ बच्चन ने मंच से दिया निश्चित ही वो “गांधी और गोडसे” के बारे मे ही कहा था. ये फिल्म बिल्कुल उसी संदेश के एकाडिंग काम कर रही है. उस समय तो मुझे पता भी नही था, इस नाम की कोई फिल्म आ रही है. 4 दिन पहले इसका ट्रेलर देखा तो मैने तय किया कि मै ये फिल्म जरुर देखूंगा. लोगों ने कहा कि ये फिल्म भी कश्मीर फाइल्स की तरह कोई भाजपा की एजेंडा मूवी है. गोडसे को जस्टीफाई किया गया है. मेरा कैलकुलेटेड प्रिडिक्शन था कि ये वैसी मूवी नहीं है. कुछ लोगो को मैंने कहा कि ये मूवी वाट्सअप यूनिवर्सिटी के सारे ज्ञान को साफ कर देगी. तो कोई मानने को तैयार नहीं थां क्योंकि मै जानता हूं कि कोई कितना भी बड़ा गोडसे हो, गांधी के सामने बौना ही दिखेगा. किसी का वर्जन हो, चाहे कैसे भी फिल्माया जाए, बस इतिहास को ईमानदारी से दिखाया जाए.
आधे लोग पठान में, आधे गांधी-गोडसे में
अब मेरे पास दो मूवी थी देखने को. तो क्या किया जाए? बुक माई शो पर चेक किया तो पठान के लिए हर सिनेमा हॉल आलमोस्ट फुल चल रही थी, और रिपोर्ट मे भी पठान के बॉक्स ऑफिस पर कमाल करने के बाद मेरी वैचारिकता की ड्यूटी खत्म हो गई थी. ऐसे मे डिस्कस करने के बाद मैंने और मेरे भाई ने गांधी-गोडसे देखने का मन बनाया. मेरी वाइफ और बहन का मन “पठान” के लिए था। हम लोगो टाईमिंग मिलाने की कोशिश की PVR के 6.45 मे “पठान” लगी थी और 7.15 पर “गांधी-गोडसे”. 6.40 पर सिनेमा हॉल पहुंचकर 2 टिकट “पठान” की और 2 “गांधी-गोडसे” का टिकट खरीदा. “पठान” का टिकट “गांधी-गोडसे” का दोगुना था. उसके बाद हम लोग अपने अपने थियेटर में चले गए. शुरू मे हमको लगा कि इस फिल्म के दर्शक नहीं है. पर फिल्म शुरू होते-होते हाउसफुल हो गया. मुझे अहसास हुआ कि कुछ भक्त लोग भी गोडसे को देखने आए हैं, और कुछ हम जैसे लोग गोडसे को गांधी के सामने देखने मे इनट्रेस्टेड थे.
बेहतर लगा गांधी गोडसे संवाद

फिल्म शुरू हुई. एक-एक सीन रियलिटी को छू रहा था. पूरी फिल्म मे एक डायलॉग गांधी का है, तो दूसरा गोडसे का. गांधी के हर एक ऐक्ट पर गोडसे का नजरिया क्या है, वो बाकायदा फिल्माया गया है. एक-एक पक्ष को छुआ गया है. हर सवाल जो गोडसे के थे, वो गांधी डायरेक्ट पूछता है. हर वो आरोप जो गांधी पर लगे, उसका जवाब गांधी स्वयं देते है. मेरे अगल-बगल पीछे-आगे सब लोग गांधी के जबाब से बिल्कुल संतुष्ट नजर आए. केवल एक सीन मे जहां गोडसे कहता है कि “एक दिन अखंड भारत मे भगवा लहराएगा” तो आगे बैठे कुछ नौजवान हूटिंग करने लगे. तो इसे भक्तो की संख्या का अंदाजा हुआ. मैने 15 मिनट की फिल्म मे ही प्रिडिक्ट कर दिया था कि इस फिल्म मे गांधी को गोडसे गोली नहीं मारेगा, उसका हृदय परिवर्तित होगा. यही इस फिल्म का अंत भी है. मुझे पता है विरोधी इसे पूरा एजेंडा बताएंगे. इस फिल्म को देखने के बाद वे राजनीति करना तो नहीं छोड़ देगे, ऐसे में कुछ तो सवाल उठाएंगे ही. इसीलिए इस फिल्म के शुरू में ही इसे एक काल्पनिक फिल्म कह दिया गया है.
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तर्क में दम हो तो आता है बदलाव
पर काश कोई इतनी पहल कर पाता कि किसी को दोषी मानने से पहले उससे उसके विचारधारा का कारण तो पूछ लेता. तो शायद ये विवाद ही नहीं रह जाता. मैंने बड़े बड़े लोगों को सही जवाब पर पिघलते देखा है. जो लोग मुझे जानते हैं, मैं हर विरोधी से बात करने का पक्षधर रहा हूँ. अपना पक्ष कहने मे विश्वास रखता हूं. उसका वर्जन सुनना चाहता हूं. और सही के साथ खडा रहना चाहता हूं. मैं अपनी क्षमता अनुसार भाजपा की नजर से भी दुनिया को देख चुका हूं.
सत्य के सामने नफरत ने टेके घुटने

इस फिल्म को देखकर न जाने क्यों, मेरी आखों में खुशी के आंसू थे. जबकि कोई मार्मिक सीन नहीं था. मैं सत्य को नफरत के सामने घुटने टेकता और हृदय परिवर्तित होता देख बहुत खुश था. मै चाहता हूं कि हर गांधीवादी गोडसेवादी से नफरत करने के बजाए उनके वाट्सअप यूनिवर्सिटी से दूरी बनवाने में मदद करे. केवल राजनीतिक लालच में उनको जेहाद के फैक्ट्री में, उनको साम्प्रदायिक कट्टरपंथी बनाया जा रहा है. निश्चित ही अगर वे सच मे किसी गांधी से निजी मुलाकात करेंगे, तो कट्टरता कम हो जाएगी। मैं नहीं कहता कि ये फिल्म देखकर आप कांग्रेसी हो जाएंगे, पर कुछ परिस्थितियों और गांधी और गोडसे के विचार समझने में आपको आसानी जरूर होगी. विरोधियों से मैं तो कहता हूं कि भूल जाइए पुराने विवादित गांधी को. इस काल्पनिक गांधी को देखिए जो अपने हिस्से की सफाई दिए बगैर ही मार दिया गया. उसकी नजर से देखिए हिन्दुस्तान कितना खूबसूरत दिखता है.
इसलिए राजनीतिक लोग तो ये फिल्म जरूर देखें. यह देखें कि क्या इस फिल्म का काल्पनिक गांधी आपको कन्विंस कर पा रहा है. अगर नहीं, तो कोई बात नहीं. आपके विचार आपके पास ही रहेंगे. कल से फिर से वाट्सअप यूनिवर्सिटी का ज्ञान तो है ही.
इस देश के हर व्यक्ति को “गांधी गोडसे एक युद्ध” जरूर देखना चाहिए.
निकलते समय पठान के समर्थन में उसके साथ एक फोटो खिंचवाया. हम दोनों ने शाहरुख से मांफी मांगी. साथ ही संडे को वापस आकर “पठान” देखने का वादा किया. एक पोस्टर के साथ फोटो खिंचवाने के लिए 5 मिनट इंतजार करना पड़ा. पूरे फोटोशूट ग्रुप अलग अलग पोज मे शाहरुख के पोस्टर के साथ फोटो खिचवाए जा रहे थे. पठान फिल्म देखकर वाइफ ने बताया कि ज्यादातर मुसलमान थे, थियेटर में. मेरी पत्नी और बहन ने पहली बार अकेले अलग दूर-दूर सीट पर बैठकर पूरी मूवी देखी. किसी को कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई. उनके मुताबिक पूरी फिल्म जबरदस्त एक्शन वाली है. और शाहरुख, सलमान, जान अब्राहम का रोल जबरदस्त है. झूमे जो पठान के गाने पर लोग अपनी सीट से खड़े होकर डांस कर रहे थे. जबरदस्त दीवानगी. कहानी पूरी एक था टाइगर जैसी है. लेकिन ये शाहरुख का वर्जन है. वो सलमान का वर्जन था. जिसको शाहरुख को जबरदस्त एक्शन करते देखना हो, वो इस फिल्म को जरूर देखें.
आज बॉलीवुड ने भक्तों को धो दिया है. गांधी गोडसे के वैचारिक युद्ध में गांधी के जवाब से गोडसे पिघल गया. थियेटर में बैठे भक्त क्या सोच रहे होंगे? वो तो वो ही जानें, पर दूसरे कमरे मे पठान के समर्थक झूम रहे हैं.