फिजिकल रिलेशन

जिन महिलाओं का लिबिडो लेवल हाई रहता है, वे फिजिकल रिलेशन में ज्यादा संतुष्ट रहती हैं

सेक्सुअल ड्राइव्स यानी संबंध बनाने की चाहत की एनर्जी को लिविडो कहा जाता है, फिजिकल रिलेशन में संतुष्टि में इसकी अहम भूमिका

विश्वजीत सिंह

आज शिवरात्रि है. सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने पोस्ट लिखा है कि कितनी अजीब है हमारी संस्कृति जहां लिंग ( योनि) की पूजा की जाती है. मैंने अजन्ता, एलोरा में भी सेक्सुअल चित्रों को देखा है. मुझे नहीं पता कि इस पूजा और चित्रों के पीछे क्या उद्देश्य एवं कारण हैं, किन्तु यह पता है कि सेक्स समस्त प्राणी की नेचुरल, फिजिकल, हॉर्मोनल जरूरत होती है. इस पर बात एवं बहस की जानी चाहिए.

एक ऑनलाइन सर्वे में 72 फीसदी महिलाओं ने अपनी शादीशुदा जिंदगी में ‘सेक्स लाइफ’ से असंतुष्टि की बात मानी.

रिसर्चगेट पर मौजूद एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में तलाक के 16 फीसदी मामलों में पति या पत्नी के किसी और से संबंध बनाने और 14 फीसदी मामलों में साथी के प्रति क्रूरता बरतने एवं 6 फीसदी मामलों की वजह नपुंसकता पाई गई.

2016 में प्रकाशित ‘जर्नल ऑफ सेक्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन महिलाओं का लिबिडो लेवल हाई रहता है, वे फिजिकल रिलेशन में ज्यादा संतुष्टि महसूस करती हैं और उनकी ‘एक्टिव सेक्स लाइफ’ भी बेहतर होती है.

आखिर क्या है लिबिडो?

साइकोएनालिसिस की बुनियाद रखने वाले सिगमंड फ्रायड ने करीब 100 साल पहले बताया कि हर इंसान में जन्म से ही 2 इन्स्टिंक्ट (instinct यानी मूल प्रवृत्ति) होती हैं- लाइफ इन्स्टिंक्ट और डेथ इन्स्टिंक्ट. लाइफ इन्स्टिंक्ट में सेक्सुअल ड्राइव्स यानी संबंध बनाने की चाहत होती हैं, जिसकी एनर्जी को उन्होंने नाम दिया ‘लिबिडो’. यही एनर्जी जीवन का आधार है. इसी से संसार रचता और बसता है.

लिबिडो को भारत में कहा गया है काम

इसी लिबिडो को हमारे यहां ‘काम’ कहा गया है, जो 4 पुरुषार्थों में से एक है. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष. कहा जाता है कि शंकराचार्य को भी मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती से शास्त्रार्थ जीतने के लिए इसी ‘काम’ का ज्ञान लेना पड़ा था.

यौन उत्तेजना कैसे होती है

दरअसल, लिबिडो ही व्यक्ति की ओवरऑल सेक्सुअल ड्राइव है. इसमें प्रेम है, रोमांस है, हॉर्मोंस का केमिकल लोचा है और फिजिकल फिटनेस के संग मेंटल हेल्थ भी. इन सबके असर के चलते ही किसी का लिबिडो लेवल हाई रहता है, तो किसी का लो. डोपामाइन जहां सेक्सुअल ड्राइव बढ़ाता है, वहीं सेरोटोनिन इस पर कंट्रोल रखता है.

यौनेच्छा लोगों में अलग-अलग

फिजिकल संबंध बनाने की चाहत हर किसी में हमेशा एक जैसी ही बनी रहे, यह जरूरी नहीं है. उम्र, हॉर्मोंस, स्ट्रेस लेवल, साथी के साथ संबंध जैसे कई कारण इस पर असर डालते हैं. एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन और टेस्टोस्टेरॉन को सेक्स हॉर्मोंस भी कहा जाता है. जिनकी वजह से लिबिडो लेबल कम ज्यादा हो सकता है.

किशोरों में ज्यादा होता है लिबिडो

युवाओं में लिबिडो लेवल बुजुर्गों से ज्यादा होता है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक प्यूबर्टी के दौरान किशोरों में टेस्टोस्टेरॉन का प्रोडक्शन 10 गुना ज्यादा होता है. इसलिए टीनेज के दौरान लड़कों में फिजिकल रिलेशन बनाने की चाहत ज्यादा दिखती है.

युवतियों की तुलना में महिलाओं में लिबिडो ज्यादा

लेकिन, महिलाओं में इसके विपरीत होता है. ‘यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस एट ऑस्टिन’ के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की एक स्टडी के मुताबिक 18 से 26 साल की युवतियों की तुलना में 27 से 45 साल की महिलाएं सेक्शुअल एक्टिविटीज और फैंटेसी के बारे में ज्यादा सोचती हैं. इसलिए महिलाओं की ‘एक्टिव सेक्स लाइफ’ भी युवतियों से ज्यादा होती है.

कैसे बढ़ता है लिबिडो

एक्सरसाइज और वेट लॉस , खानपान, रोमांटिक रिलेशनशिप से भी लिबिडो का स्तर बढ़ता है। जो सेक्शुअल डिजायर बढ़ाने में मदद करती हैं.

 

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