आप विश्व में जो भी चीज देखते हैं वह इंटरडिपेंडेंट हैं। हेतु और प्रत्यय से बने हैं, उनमें कार्य कारण सम्बन्ध है। उदाहरण के लिए आप एक मकान देखते हैं। उसकी सूक्ष्मता में जाएं। पहले आपको जमीन, क्षत, पिलर्स, दीवारें, प्लास्टर, डिजाइन आदि दिखता है। इन सबको मिलाकर जो चीज तैयार हुई, उसे मकान कहते हैं। थोड़ा और सूक्ष्म रूप में जाएं तो इसमें मिट्टी से बनी ईंटें, पत्थर से बना सीमेंट, लौह अयस्क से बना सरिया भी फील होगा और थोड़ा और सोचते जाएं तो इसमें मॉनव श्रम, मॉनव परिकल्पनाएं भी जुड़ जाती हैं। यह सब मिलाकर एक मकान दिखता है जिसे साधारण शब्द में आसानी से हम मकान कह देते हैं।
यानी कोई भी चीज, जो हम देखते हैं वह इंटरडिपेंडेंट है। यह एक प्रोसेस से बनी चीजें हैं जिसे हम एक शब्द में समेटकर उसकी आकृति, उसका इल्यूजन अपने मन मे अंकित कर लेते हैं। यह प्रतीत्यसमुत्पाद का बाई प्रोडक्ट है जो निरन्तर चल रहा है, निरन्तर बदल रहा है।
अगर हम मनुष्य के मस्तिष्क की बात करें तो यह कोई एक इन्टिटी नहीं है बल्कि विभिन्न्न पलों की गतिविधियों की निरंतरता है। जब कन्टीन्यूएशन की बात करते हैं तो उसमें भूत, वर्तमान और भविष्य आता है। इस निरंतरता को भी आइए थोड़ी सूक्ष्मता से सोचते हैं।
अगर हम वर्तमान की बात करें तो वर्तमान सदी, वर्तमान दशक, वर्तमान साल, वर्तमान महीना और वर्तमान दिन, वर्तमान घण्टे, वर्तमान मिनट और वर्तमान सेकंड आता है। इसमें किसे वर्तमान कहेंगे? एक सेकेंड पहले जो हो चुका, वह पास्ट हो चुकस है, जो सेकंड चल रहा है वह प्रजेंट है और एक सेकंड आगे वाला फ्यूचर है। और जब हम सदी में जाते हैं तो प्रजेंट का पास्ट और फ्यूचर बहुत लंबा हो जाता है। इतना लंबा किसेकेंड के अनगिनत प्रजेंट पास्ट और फ्यूचर एक सदी में समाहित हो जाते हैं, सेकेंड के इतने बदलाव सदी में समाहित हो जाते हैं कि उसकी गणना ही मुश्किल हो जाएगी!
सेकंड में गणना देखें तो प्रजेंट यानी वर्तमान कहां है? बहुत मुश्किल हो जाता है वर्तमान को ढूंढना कि किस वर्तमान को देखें, कौन सा वर्तमान जियें!
इस तरह से मोटे पर देखें तो मस्तिष्क की निरंतरता दिखती है कि यह प्रजेंट, पास्ट, फ्यूचर है। लेकिन जैसे ही इसकी सूक्ष्मता में जाते है तो हम पाते हैं कि शून्यता है, एम्प्टीनेस है, खालीपन है। एक इल्यूजन, एक संजाल साफ दिखता है कि हम किस संजाल में हैं।
एक नजर इधर भीः अक्सर आसपास के वातावरण से प्रभावित होकर सोचते हैं
अगर हम विश्लेषण करें तो पाते हैं कि कुछ भी ऐसा नहीं है जिसका स्वतंत्र अस्तित्व है। केवल नाम या पद दिया गया है। बुद्धिज्म में उन धारणाओं को समझने की कोशिश होती है कि हम समझ पाएं कि स्वतंत्र अस्तित्व कुछ नहीं है, सभी एक दूसरे पर निर्भर हैं।
अगर किसी व्यक्ति को गुस्सा आता है तो आप पाते हैं कि उस व्यक्ति में जिसके प्रति गुस्सा होता है उसे बहुत नकारात्मक महसूस करते है जिसके कारण उसे क्रोध पैदा हुआ है। लेकिन वह नकारात्मकता 90% मामलों में उस व्यक्ति की मानसिक दशा के कारण होती है। बुद्धिस्ट फिलॉसफी में यही कहा गया है कि वस्तु जिस तरह दिख रही है, सम्भव है कि वह वैसी न हो। वैसी हो भी सकती है, नहीं भी हो सकती है, कुछ अंश हो सकती है और कुछ अंश नहीं हो सकती है या इन दोनों से इतर हो सकती है, जैसा आप सोचते व अनुभव करते हैं।
जो चीजें जैसी दिखती हैं, वैसा उनका अस्तित्व नहीं है। चीजें तेजी से बदल रही हैं। उनमें निरंतरता है। किसी चीज का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। चीजें के दूसरे पर निर्भर हैं। कोई चीज मौजूद है तो उसकी अन्य वजहें हैं जो आप अपने मस्तिष्क से देख सकते हैं, क्रोध, लोभ, लगाव, प्रेम जो कुछ भी है, यह आपके मस्तिष्क से उपजी चीजें हैं जो आपको प्रभावित करती हैं। जो आप देखते हैं वह एक इल्यूजन है, किसी वजह से हैं और हमेशा एक एम्प्टीनेस एक शून्यता लिए हुए हैं।
यही शून्यवाद है। इसी का ध्यान किया जाता है।
वज्रयान के आचार्य श्रीधर राणा रिनपोछे कहते हैं कि शंकर के शून्य से बुद्धिज्म की शून्यता अलग है। शंकर के शून्य का मतलब कुछ भी नहीं, शून्य मतलब रिक्त, खोखला, कुछ भी न होना और इसी शून्य से जगत की उतपत्ति हुई। वहीं बुद्ध धर्म के प्रतीत्यसमुत्पाद के मुताबिक चीजें हेतु व प्रत्यय का परिणाम हैं शून्यता और प्रतीत्यसमुत्पाद हथेली के ऊपर और नीचे के हिस्से हैं! शून्यता का अर्थ है निःस्वाभाव। स्व मतलब अपना भाव मतलब अस्तित्व। और निःस्वाभाव का मतलब शून्यता।
तो एम्प्टीनेस यानी शून्यता का ध्यान करें। क्लियर होगा कि चीजें जैसी दिख रही हैं वैसी नहीं हैं। उनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। हम जब किसी चीज को स्वतंत्र अस्तित्व में देखते हैं तो क्रोध या प्रेम आता है। इसी स्वतंत्र अस्तित्व के न होने को अनुभव कर लेना, स्वतंत्र अस्तित्व विहीनता ही शून्यता है!
बहुत आसान शब्दों में दुःख दूर करने का तरीका बताया। समझ में न आए तो सुत जाएं। इतना आसां नहीं लहू रोना! इतना ही आसान होता तो हर कोई अपना दुःख आसानी से दूर कर लेता
