Rahul Gandhi

अगर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ कोई गठजोड़ बनता है और उसे सफलता मिलती है तो Rahul Gandhi ही किंगमेकर होंगे. इसमें कहीं संदेह नहीं किया जा सकता है कि उस गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ही होगी. ऐसे में या तो कांग्रेस का ही कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बनेगा, या कांग्रेस जिसे चाहेगी, वह व्यक्ति प्रधानमंत्री होगा. कोई और विकल्प बनने की संभावना कम ही बचती है.

पटना में 23 जून 2023 को हुई बैठक के बाद केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्षी दलों की अगली बैठक जुलाई में शिमला में होने जा रही है. शिमला में कांग्रेस की सरकार है. उसके अलावा रायपुर, जयपुर और बेंगलूरु में भी कांग्रेस की पूर्ण बहुमत वाली सरकारें हैं. इसके बावजूद यह आशंका जताई जा रही है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि अगर कांग्रेस कोई गठजोड़ बनाती है तो उसके अस्तित्व को खतरा हो सकता है. हालांकि यह आशंका निर्मूल नजर आती है.

कम सीट पर लड़ पाएगी कांग्रेस

अगर भाजपा के खिलाफ देशव्यापी गठजोड़ बनता है और उसके खिलाफ देश भर में हर लोकसभा क्षेत्र में एक कैंडीडेट खड़ा किया जाता है तो स्वाभाविक है कि कांग्रेस कम लोकसभा सीटें लड़ पाएगी. इसमें 80 लोकसभा  वाले उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे कई बड़े राज्यों में उसके लिए संभावनाएं कम होती नजर आ रही हैं. अगर पार्टी अपने कैंडीडेट ही नहीं उतार पाएगी, जो वह सत्ता में कैसे आएगी. यह सवाल कांग्रेस समर्थकों को सता रहा है. ऐसे में कांग्रेस पर यह स्वाभाविक दबाव है कि वह ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों पर लड़े.

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कम सीट पर लड़ने से फायदे की संभावना

कांग्रेस का पिछले 2 लोकसभा चुनावों यानी 2014 और 2019 में Rahul Gandhi के नेतृ्त्व में बेड़ा  गर्क हो चुका है. वह अपने ऐतिहासिक निचले स्तर पर है. जिन राज्यों में कांग्रेस सत्ता में भी है, वहां उसके नेताओं में एक दूसरे का गला काट लेने तक प्रतिस्पर्धा चल रही है. छत्तीसगढ़, राजस्थान की स्थिति सबके सामने है और मध्य प्रदेश में तो जीती हुई बाजी कांग्रेस गंवा चुकी है. कर्नाटक में भी पार्टी ने जिस तरह मुख्यमंत्री चुनने में नाटक किया है, ऐसा नहीं लगता कि वहां का ताकतवर वोक्कालिका समुदाय कांग्रेस को वोट देने वाला है, जिसके नेता डीके शिवकुमार हैं.

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ माहौल ही नहीं बन पाया. ऐसे में जिन राज्यों में कांग्रेस मुख्य विपक्ष है, भाजपा के करीब बराबर प्रतिशत में वोट पाती है, वहां भी 2019 में लोकसभा में शून्य सीटें रहीं.

कांग्रेस के लिए 2024 की स्थिति भी 2019 के लोकसभा चुनाव से अलग नहीं है. अगर कांग्रेस अंदरूनी गलाकाट कार्यों में लगी रहती है तो वह 2024 में भी एक बार फिर 50 लोकसभा सीटों के आसपास सिमट जाएगी. वहीं अगर एक संयुक्त विपक्ष बनता है, कुछ स्थानीय और कुछ राष्ट्रीय मसलों को लेकर भाजपा के खिलाफ एक माहौल बनता है तो इसका लाभ स्वाभाविक रूप से कांग्रेस को मिलेगा.

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कांग्रेस कितनी सीटें जीतने पर किंगमेकर बन जाएगी

2024 लोकसभा चुनाव में अगर सभी विपक्षी राजनीतिक दल एक साथ आते हैं तो कांग्रेस के पास 200 सीट से ज्यादा पर लड़ने का विकल्प नहीं बचता है. हालांकि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में उसे सीटें कम मिलेंगी, लेकिन जिन राज्यों में उसे किसी से सीटें शेयर नहीं करनी है, उनकी संख्या भी कम नहीं है. गुजरात, असम, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में उसे किसी के साथ सीट साझा नहीं करनी है. इन राज्यों में उसके नेताओं में चल रहे आपसी सिरफुटौव्वल के बावजूद कांग्रेस को मनोवैज्ञानिक फायदा होगा. इसके अलावा वह उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में जिन सीटों पर जीतने की संभावना देख रही हो, वहां हार्ड बार्गेनिंग कर सकती है.

इसमें ध्यान रखना होगा कि केवल अपने लोगों को सेट करने के लिए सीटें न मांगी जाए. उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में संभल, आजमगढ़ जैसी सीट को कांग्रेस इसलिए सपा से न मांगे कि उसका कोई एक आदमी सपा के वोट बैंक से चुनाव जीतकर सांसद बन जाएगा. उसे अमेठी, रायबरेली, सुल्तानपुर, अलीगढ़ जैसी सीटों पर केंद्रित होना होगा, जहां उसके पास अपने अच्छे कैंडीडेट हैं और थोड़ा बहुत संगठन जिंदा है. और समाजवादी पार्टी भी 2019 नहीं दोहराना चाहेगी, जब बसपा ने उससे वे सीटें झटक ली थीं जहां सपा की जीत की संभावना थी और सपा के हिस्से शहरी सीटें आई थीं, जहां कभी भी सपा का अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा था.

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अगर इन राज्यों में कांग्रेस 100 से 125 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती है तो स्वाभाविक रूप से या तो वह सत्ता में रहेगी, या उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाया जा सकेगा, जिसे कांग्रेस का खुला समर्थन होगा.

ऐसे में कांग्रेस के लिए खोने को ज्यादा कुछ नहीं है. भाजपा के सत्ता में हटने के बाद से वह अपने संगठन को मजबूत करते हुए अगले चुनाव में मनमर्जी गठबंधन या बगैर किसी गठबंधन के अपनी किस्मत आजमा सकती है. लेकिन अभी की हालत में कांग्रेस के पास इससे बेहतर कोई विकल्प नहीं है कि वह चुनाव पूर्व व्यापक गठजोड़ तैयार करे और राज्य की जरूरतों के मुताबिक स्थानीय मसलों के साथ कुछ साझा राष्ट्रीय मसलों पर चुनाव लड़े. कांग्रेस को हर हाल में व्यापक गठबंधन में जाना ही होगा, तभी भारतीय जनता पार्टी से मुकाबले के अवसर बनते हैं.

 

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