राहुल गांधी केवल बकलोली छोड़ दें तो जनता को देशबेचवा भाजपा से मुक्ति मिल जाएगी

राहुल गांधी एक राजनेता की तरह नहीं, एनजीओ चलाने वाले एक ग्रुप के मुखिया की तरह व्यवहार कर रहे हैं. अगर वह बेहतर नेताओं का चयन करें और अपने छत्रपों पर राजनीति छोड़ दें, तो देश को मौजूदा सरकार से मुक्ति मिल सकती है. सत्येन्द्र पीएस की सोशल मीडिया वॉल से लेख…

राहुल गांधी बकलोल हैं. करीब 20 साल से सांसद हैं. किसानों की समस्या समझने के लिए उनको धान रोपना पड़े, बेरोजगारों की समस्या समझने के लिए सांसदी छोड़नी पड़े, ट्रक चालकों की समस्या समझने के लिए ट्रक चालक के साथ घूमना पड़े, गिग वर्कर की समस्या समझने के लिए फ़ूड डिलीवरी करने वाले के स्कूटर पर घूमना पड़े तो और क्या कहना बचा है? इनकी समस्याओं पर हजारों पेज की रिपोर्ट्स बन चुकी हैं अखबार वालों ने लाखों कहानियां लिखी हैं. इनके साथ घूमकर इनकी समस्या हल हो जाएगी क्या?

यह एनजीओ चलाने वालों का काम होता है. अखबार चैनल के लिए स्टोरी मैनेज करना होता है तो एनजीओ वालों से यह सब करवाया जाता है. बनारस में यह आमतौर पर होता है, हर शहर में होता है. कभी सिनेमा हॉल पर पुतला जलाने वालों को बुला लिया, कभी वाटर का सेट पलटने वालों को, कभी बुद्धि शुद्धि हवन और यज्ञ करा लिया, कभी 5 लोगों को जुटाकर होली का भांग पिसवा लिया, फाग गवा लिया. कभी वेलेंटाइन का विरोध करवा लिया. यह सब स्टोरी मैनेजमेंट होता है. इससे कोई बदलाव नहीं आता.

विधानसभा चुनाव में ऐसे ही कुछ लखनऊ में कोई ड्रेस पहनाकर लोगों को घुमाया गया और कांग्रेस के एनजीओ ब्रांड नेताओ ने सोशल मीडिया पर क्रांति मचा दी कि लाखों लोग उमड़ पड़े! अरे भाई… एनजीओ के लिए वह लाखों की भीड़ होती है. कोई कांग्रेस नेता डिग्री कॉलेज चला रहा हो तो वह उस तरह की भीड़ मैनेज कर देगा 4/5 हजार लड़के लड़कियों की.

कम्युनिस्ट तो ज्योति बसु, सोमनाथ चटर्जी, इंद्रजीत गुप्ता वग़ैरा की पीढ़ी के बाद मर गए. विरासत में छोड़ गए जेएनयू के एनजीओ छाप नारेबाज. और जब केरल बंगाल में भी कम्युनिज्म मर गया तो ये जीने खाने वाले लोग अब राहुल गांधी प्रियंका गांधी के माई बाप बने बैठे हैं. और जो लड़के एनएसयूआई से जुड़कर मरी हुई कांग्रेस के साथ जिंदगी खपाते रहे, जमीनी स्तर पर संघर्ष करते रहे, उनको इन एनजीओबाज क्रांतिकारियों ने रिजेक्टेड माल बना दिया. राहुल और प्रियंका को वह बंदर बंदरिया बनाकर नचा रहे हैं.

और अब क्रांति मची है कि राहुल गांधी की कोर्ट से सांसदी मिल गई! जिस आदमी के सामने पीएम बनने की थाली कम से कम 7 साल तक परोसकर रखी रही, उसकी सांसदी वापस आने को ये एनजीओ बाज कांग्रेसी बहुत बड़ी क्रांति बता रहे हैं!
अब आप कहेंगे कि मैं नाउम्मीद हूँ तो ऐसा भी नहीं है. बिहार में जाति जनगणना शुरू हो गई, नीतीश ने दंगे पर काबू पा लिया. ममता बनर्जी भी हुल्लड़ करके बंगाल बचा लेंगी. नवीन पटनायक जिंदा रहते तो ओडिशा में किसी को घुसने नहीं देंगे. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु में नूह और मणिपुर में दंगे से इन राज्यों पर कोई असर नहीं पड़ने जा रहा है.

असल जंग होनी है बिहार में. वहीं से यूपी की भी दिशा तय होनी है. अगर नीतीश ने कोई जुगाड़ करके यूपी के ओबीसी को कोई सहारा दे दिया तो भाजपा का बेड़ा गर्क हो जाएगा. उसके अलावा कमलनाथ बेहतर कर रहे हैं, कर्नाटक वाले भी हो सकता है कि डीके शिवकुमार को दिया घाव भूल जाएं. राजस्थान में कांग्रेस का बेड़ा गर्क है. लेकिन सम्भव है कि माहौल बने तो स्थिति सम्भले. कुल मिलाकर कांग्रेस के छत्रपों को ही कुछ करना है. और यूपी छोड़कर कांग्रेस भाजपा की सीधी लड़ाई है वहीं भाजपा जीत रही है. ऐसे में नीतीश को यूपी और बिहार संभालना है और कांग्रेस के छत्रपों को अपना अपना राज्य. राहुल गांधी इतना ही कर सकते हैं कि पंजाब जैसे जीते हुए राज्य में अपनी काबिलियत और राजनीतिक कौशल दिखाकर उसे किसी दूसरे को न सौंप दें. इतने में खेल हो जाएगा.

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