राहुल गांधी अगर कोर्ट का फैसला हाथ में लेकर चुनावी रैलियों में घूमें तो क्या होगा

राहुल गांधी अगर कोर्ट का फैसला हाथ में लेकर चुनावी रैलियों में घूमें तो क्या होगा?

सत्येन्द्र पीएस

गुजरात की निचली अदालत ने राहुल गांधी को ऐसा फैसला पकड़ा दिया है कि उसमें पूरी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) फंस गई है. पहले राहुल गांधी को 2 साल की सजा का फैसला आया, उसके बाद उनकी संसद की सदस्यता चली गई. आनन फानन में सरकार ने आवास खाली करने का फरमान सुना दिया. अब भाजपा के सामने मुसीबत यह है कि राहुल गांधी अगर निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय से रद्द नहीं कराते हैं, तो यह बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है. यह मसला अब तक अपराजेय दिख रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले की हड्डी है.

क्या होगा भाजपा के राहुल बनाम मोदी मुद्दे का?

अगर राहुल गांधी न्यायालय के फैसले के पर्चे को लेकर हर जनसभा में जाएं और यह कहें कि वह 6 साल चुनाव नहीं लड़ सकते. 2024 से 2029 के आगे भी वह 2031 तक चुनाव लड़ने के पात्र नहीं हैं. ऐसे में नरेंद्र मोदी से उनका कोई मुकाबला ही नहीं है. वह किसी प्रधानमंत्री या मंत्री पद की रेस में नहीं हैं. वह राजनीति और उद्योग के अपवित्र गठजोड़ के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जिसमें जनता का पैसा लूटकर एक कारोबारी को फायदा पहुंचाया गया है. ऐसे में भाजपा 2024 का चुनाव राहुल बनाम मोदी नहीं करा पाएगी, जो उसके पिछले 2 लोकसभा चुनाव में ब्रह्मास्त्र रहा है.

नाभि में मौजूद अमृत पर तीर

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में अपने एक सूत्र के हवाले से कहा, ‘अदाणी केवल फ्रंट है. अदाणी ग्रुप में सारा पैसा मोदी जी का लगा है. अदाणी केवल मोदी जी के पैसे का मैनेजर है, उसे केवल 10-15 प्रतिशत कमीशन मिलता है. अगर जेपीसी की जांच हो गई तो अदाणी नहीं, मोदी जी डूबेंगे.’ जिस तरह से अदाणी समूह में धन लगाने वाली कंपनियों को छिपाया जा रहा है और यह सार्वजनिक नहीं होने पा रहा है कि फर्जी कंपनियां बनाकर किन लोगों का पैसा लगाया गया है, जैसा कि हिंडनबर्ग ने संकेत दिया था, नरेंद्र मोदी पर संदेह बढ़ता जा रहा है. अदाणी समूह के शेयर इतने नीचे आ चुके हैं कि वह बहुत ज्यादा ‘राजनीतिक चंदा’ देने की स्थिति में नहीं रहेगा और कम से कम 2024 के लोकसभा चुनाव में नेता बेतहाशा धन नहीं बहा पाएंगे. इसके अलावा जीत के बाद भी विधायकों को खरीदने की खबरें आती रहती हैं. ऐसे में चुनाव के दौरान ही नहीं, चुनाव के बाद भी नेताओं की मुश्किल बढ़ने वाली है.

भाजपा की गलती

राहुल गांधी को 2 साल की सजा दिलाने में भाजपा का हाथ है, जनता के सामने इसका पहला सबूत यह कि पार्टी के विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. यह मुकदमा कर्नाटक की रैली से जुड़ा है, जिसमें राहुल गांधी ने 3 मोदियों का जिक्र करते हुए कहा कि सारे चोर मोदी ही क्यों हैं.

सूरत कोर्ट ने जैसे ही फैसला सुनाया, भाजपा उत्साह में आ गई. पार्टी के नेता कहने लगे कि राहुल गांधी को सोच समझकर बोलना चाहिए था. उतना तक तो ठीक था.

लोकसभा सचिवालय हरकत में आया और उसने राहुल गांधी की सदस्यता खत्म करने का नोटीफिकेशन जारी कर दिया और राहुल की संसद की सदस्यता चली गई.

मामला इतने पर ही नहीं रुका. सदस्यता जाते ही उत्साही लोगों ने राहुल गांधी को सांसद आवास खाली करने का नोटिस भेज दिया, जबकि सामान्य तौर पर भी अगर कोई व्यक्ति सांसद नहीं रहता है तो उसे 6 महीने तक रहने दिया जाता है.

इससे जनता के बीच यह संदेश गया है कि भाजपा ने ही राहुल गांधी की सदस्यता खत्म कराई है. अब भाजपा यह भी नहीं कह सकती कि वह लोवर कोर्ट का फैसला है, उसमें भाजपा का कोई हाथ नहीं है. इसकी वजह यह है कि लोवर कोर्ट के फैसले के बाद भी राहुल गांधी को लेकर उत्साही तरीके से त्वरित कार्रवाई की गई है.

क्या है मानहानि कानून?

भारत में मानहानि कानून 1837 में लॉर्ड मैकाले के समय लाया गया, जब भारतीय दंड संहिता के मूल मसौदा आया. मानहानि को अपराध बनाने के पीछे ब्रिटिश राज के हित, राज्य की सुरक्षा और पब्लिक ऑर्डर जुड़े हुए थे. उसके बाद 1860 के इंडियन पेनल कोड में सेक्शन 499 और 500 का प्रावधान किया गया था. 499 के तहत मानहानि को पारिभाषित किया गया है. आईपीसी का सेक्शन 500 के तहत मानहानि मामलों में अधिकतम 2 साल की सजा का प्रावधान है. उस दौर में भी भारतीयों ने इन सेक्शंस पर सवाल उठाए थे कि अगर कोई भारतीय अंग्रेजों के खिलाफ कुछ भी कह देगा तो उसे मानहानि में घसीट लिया जाएगा. लेकिन उसके बाद से यह बदस्तूर बरकरार है.

क्या अब तक किसी को सजा मिली है?

डिफेमेशन के बारे में किसी को अधिकतम 2 साल सजा दी गई हो, ऐसा कोई मामला संज्ञान में नहीं आता है. इसके पहले सुब्रमण्यन स्वामी का मामला 2014 में आया. सुब्रमण्यम स्वामी ने जयललिता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और जयललिता ने उनके खिलाफ मानहानि का केस दर्ज किया था. इसके अलावा अखबारों के कुछ मामले हैं. कुछ मामलों में न्यायालयों ने आरोपी पर अर्थदंड लगाए हैं.

मानहानि मामले में राहुल गांधी के सामने क्या हैं विकल्प?

राहुल गांधी के पास पहला विकल्प यह है कि वह मानहानि के इस मामले को उच्च या उच्चतम न्यायालय से खारिज करवा लें. यह करना उनके लिए पॉलिटिकस सुसाइड जैसा होगा. कांग्रेस ऐसा बार बार करती रही है, इसलिए इस कदम से इनकार नहीं किया जा सकता है.

दूसरा विकल्प यह है कि राहुल गांधी इस मामले को खारिज करने के लिए न्यायालय में न ले जाएं, बल्कि गिरफ्तारी से बचाव के लिए न्यायालय में अग्रिम जमानत की अर्जी लगा दें.

तीसरा विकल्प यह है कि वह कोई अपील न करें और गिरफ्तारी देकर जेल चले जाएं. चुनाव में शेष काम कांग्रेस के अन्य नेताओं पर छोड़ दें.

कांग्रेस के राजनीति के हिसाब से दूसरा और तीसरा विकल्प ज्यादा फ्रूटफुल है.

बिगड़ने लगी है नरेंद्र मोदी के महामानव होने की छवि?

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार आशीष झा का कहना है कि अब गांव गिरांव में अदाणी चर्चा का विषय हैं. लोग यह कहते पाए जा रहे हैं कि जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा अदाणी समूह में लगा दिया गया. साथ ही स्थानीय लोग यह भी नहीं जानते कि वह सजा लोवर कोर्ट ने सुनाई है. सिर्फ इतनी सी चर्चा है कि न्यायालय ने राहुल गांधी को सजा सुना दी, क्योंकि उन्होंने संसद में अदाणी समूह में जनता के पैसे लगाने और उस डुबा देने का मसला उठाया.

क्या होने जा रही है भाजपा की मुश्किल?

अगर राहुल गांधी इस सजा के खिलाफ अपील नहीं करते हैं तो भाजपा दुश्मन रहित हो जाएगी. उसे दिखाने के लिए कोई चेहरा नहीं बचेगा कि फलां व्यक्ति के मुकाबले मोदी अच्छे हैं. साथ ही अदाणी के खिलाफ बोलने वालों के खिलाफ सरकार की त्वरित कार्रवाई से यह संदेश गया है कि कहीं न कहीं नरेंद्र मोदी इस मामले में शामिल हैं और वह अदाणी समूह को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में जनता किसी महामानव के खिलाफ किसी दूसरे महामानव की तलाश नहीं करेगी, बल्कि मौजूदा सरकार को हटाने के लिए वोट कर सकती है. लगातार 10 साल से सत्ता में रही भाजपा पर यह वार बहुत ही मजबूत हो सकता है, बशर्ते कांग्रेस अंतिम क्षण में अपने पांव पर खुद कुल्हाड़ी न मार ले.

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

 

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