वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का मानना है कि यह केवल मनीष सिसोदिया का मामला नहीं, बल्कि देश भर में तमाम नेताओं से लेकर आम नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है, जो सत्तासीन दल को खतरा लगते हैं
उर्मिलेश
ये मामला सिर्फ Manish Sisodia, Pawan Khera या Sanjay Raut या किसी अन्य नेता का नहीं है..मैं निजी तौर पर न कभी “आप”(AAP )का समर्थक रहा और न कांग्रेस का और न ही ही किसी अन्य विपक्षी दल का. एक पत्रकार के तौर पर कमोबेश, सभी दलों की आलोचना की है. शायद इसीलिए कोई भी बड़ा दल या उसका बडा नेता अपन को पसंद नहीं करता! यह मुझे अच्छा भी लगता है.
पर अपने देश के अलग-अलग ढंग और भिन्न-भिन्न सोच के विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियों से कुछ बडे सवाल तो जरूर उठते हैं. सबसे बड़ा सवाल है कि बीते आठ सालों के दौरान भ्रष्टाचार दूर करने या किसी कानून के उल्लंघन के नाम पर जो भी गिरफ्तारियां हुई हैं, CBI-ED-IT के जितने छापे पडते हैं, उसकी जद में सिर्फ विपक्षी नेता, असहमत लोग, आलोचक या फिर दलित-ओबीसी-अल्पसंख्यक समुदाय के ही लोग क्यों होते हैं?
सन् 2014-15 से आज तक के छापों और गिरफ्तारियों की सूची देख लीजिये. शाहरूख खान का तो निर्दोष बेटा भी इसकी जद में आ गया था..उद्धव ठाकरे के रिश्तेदारों पर छापे ही नहीं पडे, उनकी तो सरकार ही चली गयी. पार्टी भी विभाजित हो गयी! आजम खान तो बर्बाद ही कर दिये गये!
अगर केंद्रीय सत्ता-पक्ष के विरोधी किसी नेता(जो किसी राज्य में सत्ता में ही क्यों न हो!) के खिलाफ कोई मामला दिखता है तो ये कैसे हो सकता है कि किसी मुख्य सत्ता पक्ष के किसी नेता पर कभी कोई मामला ही नहीं दिखे? विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी से पहले उन पर लग रहे आरोपों की पहले निष्पक्ष और पारदर्शी जांच क्यों नहीं होती? सीधे गिरफ्तारी क्यों? शाहरूख खान के बेटे का मामला उदाहरण है. उसका निर्दोष होना अब साबित हो चुका है. पर उसे जेल में रहना पड़ा. ऐसे अनेक मामले हैं.
इसलिए आज असल मामला है-केंद्रीय एजेंसियों का शासक पार्टी के उपकरण में तब्दील हो जाना! उनका भारी दुरुपयोग होना! एक दौर में कांग्रेस ने भी इनका दुरुपयोग किया था. पर इस कदर नहीं! आज दुरुपयोग का चरम है. समस्या को दलगत नजरिये से नहीं, व्यापक नजरिये से देखने और इस पर गौर करने की जरूरत है.