पेट में आग हो तभी खाना पचता है और तभी वह शरीर में लगता है

खाना खाने का मन तभी करता है जब भूख लगी हो। अगर भूख न हो तो सारे व्यंजन बेकार होते हैं। खाना का असल स्वाद तब आता है जब पेट में आग लगी हो। और पेट में आग हो तभी खाना पचता है और शरीर में लगता है, बता रहे हैं आयुर्वेद के डॉक्टर प्रदीप चौधरी…
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सुंदरता को बनाए रखने के लिए भोजन विधि कितना महत्वपूर्ण है,इस पर बात हो चुकी है,
आज बात करते हैं पाचन की।

पाचन की बात सोचते ही पहला ख़्याल अग्नि का आता है।
आज अग्नि के बारे में बात करते हैं।
अग्नि आयुर्वेद का एक अनुपम सिद्धांत है।
अगर हम ध्यान से देखें तो अग्नि ,जो हम नहीं हैं (भोजन,पानी,दृश्य,आवाज़,फ़ीलिंग, इन्फ़र्मेशन) को जो हम हैं ( शरीर, इमोशन, इंटेलिजेन्स) में परिवर्तित करता है।

इसलिए अग्नि का महत्व केवल भोजन पचाने तक ही सीमित नहीं है।

यह अग्नि ही है जो हमारी आंतरिक सुंदरता, इंटेलीजेंट को ठीक रखता है।
अग्नि ही शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकालता है, पाचनतंत्र को साफ़ रखताहै, जिसके फल स्वरूप हमें चमकदार त्वचा और ओजपूर्ण व्यक्तित्व मिलता है।

इसलिए अग्नि को सम रखना ज़रूरी है।
अग्नि कम होगी तो पाचन अच्छा नहीं होगा ,शरीर स्लो हो जाएगा, थाइरॉड जैसे रोग होंगे, जबकि अग्नि तेज होने पर पोषक तत्व ही फुँक जाएँगे।

मंदअग्नि के कुछ लक्षण-

गैस( एसिडीटी नहीं), अधिक डकार ( बर्पिंग) , धीरे पाचन, मानसिक थकान, चलने का मन ना करना, बदबुदार या ना पसीना आना,क़ब्ज़ चेहरे पर चमक ना होना।

तीक्ष्ण अग्नि के कुछ लक्षण-

तेज तेज डकार आना,चिड़चिड़ापन, ग़ुस्सा, डायरिया, अधिक पसीना, ऐसिडीटी , अतिउत्साह, अत्यधिक बोलना, ये सब अग्नि बढ़ने के कुछ लक्षण हैं।

अग्नि बढ़ाने के तरीक़े-
उपवास,
कम भोजन
नींबू पानी
सोंठ का पानी ( एक चुटकी सोंठ को एक पानी में डालकर उबाल लें , 1/4 बेचने पर उसे पिए ,भोजन से पहले,
शहद + चुटकी भर त्रिकटु ( सोंठ+पिप्पलि+कालीमिर्च) भोजन से पहले।
खाने के साथ 30ml अभयारिस्ट +30ml गुनगुना पानी का पैक भी लेते रहें, बहुत लाभकारी है।

इसके अलावा चबाकर खायें तथा भोजन से पूर्व जीभ को मुँह के अंदर क्लॉकवाइज़ तथा उल्टा घुमायें, लार की मात्रा बढ़ेगी, कार्बोहाइड्रेट के पाचन में सहायता होगी।
ऐसा माना जाता है जब दाहिनी नासिका चल रही हो तो पाचन बेहतर होता है, अगर ना चल रही और नाक बंद हो तो, योग के एक तरीक़े को प्रयोग कर सकते हैं।

अपने बायें हाथ की मुट्ठी को दाहिने काँख (आर्म पिट) के नीचे दबायें तथा दाहिने हाथ की बड़ी उँगली से बायें नथुने को बंद कर दें,
कुछ मिनट ऐसा करें तो दाहिनी नाड़ी चलने लगेगी, यह तरीक़ा अग्नि नहीं बढ़ाता पर पाचन में सहायक है।

अग्नि घटाने के नियम-
पित्त कम करने वाले भोजन का सेवन करें (गर्म मसाले, अधिक चटकमटक का प्रयोग ना करें),
समय समय पर विरेचन करते रहें।

अपने ग़ुस्से और इमोशन को सही जगह खर्च करें, मन की बात को कह लें।
बराबर मात्रा में जीरा+ धनिया + सौंफ की चाय पियें।

इस तरह से हम अपने अग्नि को ठीक रखकर खुद को स्वस्थ रख सकते हैं।

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