सीरिया.. संघर्ष का अंत नहीं.. गृहयुद्ध और सांप्रदायिक हिंसा का नया अध्याय जारी है। अरब दुनिया के एक समृद्ध देश में अमेरिकी हस्तक्षेप के कारण आतंकियों की भरमार हो गई है, जिसे संभलना वहां की सरकार को भारी पड़ रहा है। द ग्लोब ऑनलाइन की एक विशेष टिप्पणी…
सीरिया, जो कभी अरब दुनिया का एक महत्वपूर्ण देश था, आज भी संघर्ष और अस्थिरता का केंद्र बना हुआ है। एक दशक से भी अधिक समय से चल रहे गृहयुद्ध ने इस देश को तबाह कर दिया है। लाखों लोग मारे गए हैं और करोड़ों विस्थापित हुए हैं। अब जबकि सीरिया के नए प्राधिकारी देश को फिर से बनाने की कोशिश कर रहे हैं, दक्षिणी इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा की नई लहर ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया है।
सीरिया में संघर्ष की जड़ें: क्यों शुरू हुआ यह गृहयुद्ध?
सीरिया में संघर्ष की शुरुआत 2011 में हुई, जिसे “अरब स्प्रिंग” का हिस्सा माना जाता है। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन, जो राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार के खिलाफ लोकतंत्र और राजनीतिक सुधारों की मांग कर रहे थे, को सरकार ने क्रूरता से दबा दिया। इसके जवाब में, विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया और जल्द ही यह एक पूर्ण गृहयुद्ध में बदल गया।
संघर्ष के मुख्य कारण इस प्रकार हैं:
• राजनीतिक दमन: असद परिवार ने चार दशकों से अधिक समय तक सीरिया पर लोहे के मुट्ठी से शासन किया। जनता लंबे समय से राजनीतिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के हनन से तंग आ चुकी थी।
• सांप्रदायिक विभाजन: सीरिया की आबादी में कई धार्मिक और जातीय समूह हैं। असद सरकार, जो मुख्य रूप से शिया मुसलमानों के अलावी संप्रदाय से आती है, पर लंबे समय से सुन्नी बहुसंख्यक आबादी को हाशिए पर रखने का आरोप लगता रहा है। इस सांप्रदायिक विभाजन ने गृहयुद्ध के दौरान एक बड़ा भूमिका निभाई, जिससे अलग-अलग समूह हथियार उठाने लगे।
• विदेशी हस्तक्षेप: यह संघर्ष केवल आंतरिक नहीं रहा। रूस और ईरान ने असद सरकार का समर्थन किया, जबकि अमेरिका, तुर्की और खाड़ी देशों ने विपक्ष और कुछ विद्रोही समूहों को समर्थन दिया। इस विदेशी हस्तक्षेप ने युद्ध को लंबा खींचा और इसे एक छद्म-युद्ध (proxy war) में बदल दिया।
• इस्लामिक स्टेट (ISIS) का उदय: गृहयुद्ध का फायदा उठाकर, ISIS जैसे चरमपंथी समूहों ने सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया, जिससे स्थिति और भी खराब हो गई।
दक्षिणी सीरिया में सांप्रदायिक हिंसा: एक नई चुनौती
हालांकि, गृहयुद्ध का मुख्य चरण अब समाप्त हो चुका है और असद सरकार ने देश के अधिकांश हिस्से पर फिर से नियंत्रण स्थापित कर लिया है, लेकिन शांति अभी भी दूर है। देश के दक्षिणी इलाके, खासकर स्वेदा प्रांत, में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा एक नई और खतरनाक चुनौती बनकर सामने आई है।
जुलाई की शुरुआत में स्वेदा प्रांत में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों विस्थापित हुए। इस हिंसा में, अलग-अलग सांप्रदायिक समूहों के बीच हमले हुए, जिससे लंबे समय से सुलग रही दुश्मनी फिर से भड़क उठी। यह संघर्ष ऐसे समय में हुआ है जब देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है और लोगों के पास जीने के लिए मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। इस तरह की सांप्रदायिक हिंसा का मुख्य कारण क्षेत्र में मौजूद तनाव, संसाधनों की कमी और विभिन्न समूहों के बीच अविश्वास है।
जांच समिति का गठन: क्या यह समाधान है?
सरकारी समाचार एजेंसी ‘सना’ के अनुसार, सीरिया के नए प्राधिकारियों ने इस हिंसा की जांच के लिए एक समिति गठित की है। यह समिति हमलों की जांच करेगी और दोषियों को न्याय के कटघरे में लाने का काम करेगी। इसे तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी है।
हालांकि, यह देखना बाकी है कि क्या यह समिति निष्पक्ष रूप से काम कर पाएगी और क्या यह वास्तव में क्षेत्र में शांति बहाल करने में सफल होगी। अतीत में भी ऐसी जांचों पर सवाल उठते रहे हैं। लोगों का मानना है कि जब तक सरकार सभी समुदायों को समान अधिकार और सुरक्षा नहीं देगी, तब तक ऐसी सांप्रदायिक हिंसा को रोकना मुश्किल होगा।
वर्तमान स्थिति और भविष्य की चुनौतियाँ
आज सीरिया कई टुकड़ों में बंटा हुआ है। देश के कुछ हिस्सों पर तुर्की और अमेरिका समर्थित कुर्द बलों का नियंत्रण है, जबकि बाकी हिस्सों पर असद सरकार का। देश का पुनर्निर्माण एक बहुत बड़ी चुनौती है। लाखों विस्थापित लोग वापस नहीं लौट पाए हैं, और जो लौट रहे हैं, उन्हें गरीबी, बेरोजगारी और बुनियादी ढांचे की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
सीरिया के भविष्य के लिए यह आवश्यक है कि सभी समुदाय मिलकर काम करें और देश में एक समावेशी और स्थिर राजनीतिक व्यवस्था स्थापित हो। लेकिन जब तक सांप्रदायिक हिंसा और बाहरी हस्तक्षेप जारी रहेगा, तब तक सीरिया में स्थायी शांति की उम्मीद करना मुश्किल है। देश अभी भी एक चौराहे पर खड़ा है, और यह तय करना बाकी है कि इसका “दूसरा अध्याय” कैसा होगा।