हम जब आसपास के वातावरण से प्रभावित होकर सोचते हैं तो अपना बुद्धि विवेक गिरवीं रख देते हैं। फिर हम प्रभावित व्यक्ति/वातावरण के मुताबिक बह जाते हैं. सही गलत का फैसला नहीं कर पाते, बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस….
हमारे मस्तिष्क का दायरा बहुत छोटा है। जीवन के रहस्यों को हम न के बराबर जानते हैं। हम अपने बारे में नहीं जानते हैं कि कब क्या रिएक्ट कर दें। सामने वाले के दिमाग में क्या चल रहा है, वह क्या रिएक्ट करने वाला है, यह जान पाना तो और भी कठिन होता जाता है।
कुछ कुछ पूर्व के अनुभवों या किसी व्यक्ति के पहले के चाल चरित्र से समझा जा सकता है कि सम्बंधित व्यक्ति किस तरह का रिएक्शन दे सकता है। वह कितना शांत या कितनान विचलित है।
हम चाहे जितना दावा कर लें लेकिन हमारी वैज्ञानिक प्रगति शून्य के करीब ही लगती है। ईश्वर चर्चा में इसीलिए डॉक्टर के बारे में कहा था कि वह ईश्वर को सबसे नजदीक सेदेखते हैं क्योंकि वह अपनी लाचारी रोज देख पाते है। पेशेंट तो वैज्ञानिक सोच वाला होता है कि डॉक्टर साहब हमारे परिजन को बचा लेंगे लेकिन डाक्टर साहब अगर हृदयवान हैं तो जानते हैं कि सब प्रभु की लीला है। हम निमित्त मात्र हैं, हमारे ज्ञान की सीमा है।
उद्धव ठाकरे की पार्टी ही गायब हो गई। एक समय में मैंने इनके बेटे के बारे में एक आर्टिकल लिखा था कि आदित्य ठाकरे में बाला साहब ठाकरे की शक्ति, विवेक बुद्धि है। आदित्य ठाकरे बेचारे आज कहना विलुप्त हैं, अता पता ही नहीं है।
एक बार हंसी मजाक में लिखा था कि जेएनयू में पहुँच जाते हैं तो अक्सर डर लगता है कि कहीं पेड़ पर से किसी साम्यवादी क्रांति का बड़ा फल सर पर न गिर जाए और हम निपट जाएं!वहां पढ़ने वालों ही नहीं, दरो दीवार पर मार्क्स लेनिन, चे ग्वेरा दर्ज रहा करते थे।
ऐसेही अगर दलित टाइप यू ट्यूब चैनल देखें तो वहां की क्रांति देखकर लगेगा कि 2024 में यूपी में भाजपा का सूपड़ा साफ होने वाला है। सपा बसपा में गठजोड़ हो जाएगा और बस। क्रांति का फल भाजपा के सर पर गिरेगा, भाजपा तत्काल मर जाएगी।
यह आसपास के वातावरण का असर होता है, जिसमें हम स्वतंत्र रूप से सोचना बंद कर देते हैं। अपना दिमाग दूसरे को गिरवीं हो जाता हैं। शायद उद्धव ठाकरे के बेटे की प्रशस्ति पत्र भी मैंने दिमाग गिरवीं रखकर ही लिखा होगा
#भवतु_सब्ब_मंगलम