सोने में निवेश आपको बर्बाद भी कर सकता है... संभलकर रहें

सोने में निवेश आपको बर्बाद भी कर सकता है… संभलकर रहें

सोना कोई सुरक्षित निवेश नहीं है।कई बार सोने की कीमत इतनी गिरती है कि निवेशक बर्बाद हो जाते हैं और उनको अपना मूलधन निकालने के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता है। विस्तार से बता रहे हैं निवेश विशेषज्ञ प्रभात त्रिपाठी

 

सोने को एक Safe Haven या inflation के खिलाफ एक भरोसेमंद बचाव के रूप में देखने की अवधारणा पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। ऐतिहासिक डेटा की analysis यह बताती है कि सोने की कीमतों में काफी volatility और बड़े drawdowns देखे गए हैं, जो इसकी समाज में बनी लोकप्रिय छवि से मिल नहीं खाते।
Global Financial Markets के लंबे समय के रिकॉर्ड को देखते हुए, 50 वर्षों के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि सोने में कई बार बड़ी गिरावट हुई है। उदाहरण के लिए, 1980 के दशक में इसकी कीमतों में 60 फीसदी तक गिरावट आई, और इसके बाद 27 वर्षों तक यह अपने Peak को वापस पाने में असफल रहा। इसी प्रकार, 2012 में आई 40 फीसदी की गिरावट के बाद, सोने को 2020 तक अपनी पुरानी कीमतों तक लौटने में 8 वर्ष लग गए। इस प्रकार इसकी Long-term stability पर सवाल तो खड़ा होता है।
यदि Real return index को देखा जाए, तो सोने का maximum drawdown लगभग 82 फीसदी रहा है, जो कि अमेरिकी Equities के 64 फीसदी maximum drawdown से भी अधिक है। यह इंगित करता है कि सोना, इक्विटीज की तुलना में कम रिस्क वाला निवेश नहीं है। इसके अतिरिक्त, लंबे समय में equity ने एक upward trend रखा है, जबकि सोने का Real Return Equity की तुलना में ज्यादा volatile रहा है। यह बताता है कि सोना एक अस्थिर और कम लाभकारी निवेश विकल्प हो सकता है। टेक्निकल analysis भी इस तथ्य की पुष्टि करती है कि सोने की कीमतों में लंबी अवधि तक Underwater रहने की प्रवृत्ति रही है। 1970 से 2020 के डेटा को देखने पर पता चलता है कि इसमें कई बार Sharp declines आए हैं, जो इसकी अस्थिरता को सामने लाते हैं। साथ ही, जब इसे Real Return Index के साथ तुलना किया जाता है, तो सोने का Drawdown ज्यादा deep और long term रहने वाला प्रतीत होता है। यह प्रश्न उठता है कि क्या इसे वास्तव में पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन टूल के रूप में प्राथमिकता दी जानी चाहिए, विशेष रूप से जब इसका Weightage पोर्टफोलियो में अधिक हो।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री John Maynard Keynes ने सोने को Barbarous Relic की संज्ञा दी थी, जो इस तथ्य को इंगित करता है कि सोने का मूल्य मुख्य रूप से ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक आधार पर निर्धारित होता है, न कि इसके वास्तविक आर्थिक योगदान के कारण। इसी तरह, Warren Buffett भी सोने को गैर-उत्पादक एसेट मानते हैं, क्योंकि यह कोई direct income नहीं generate करता और आर्थिक विकास में योगदान भी नहीं देता। बफेट के अनुसार, Equities और उत्पादक कंपनियों में निवेश करना ज्यादा फायदेमंद है, क्योंकि वे Dividends और Capital appreciation दोनों देती हैं।
हालांकि, निवेश रणनीतियों में Diversification के दृष्टिकोण से, प्रसिद्ध निवेशक Ray Dalio सोने को एक Diversification Asset मानते हैं, लेकिन यह स्वीकार करते हैं कि यह inflation या economic crisis के दौरान हमेशा प्रभावी नहीं होता। उनका सुझाव है कि इसे पोर्टफोलियो में एक छोटे Allocation के रूप में शामिल किया जा सकता है, परंतु इसे पूरी तरह से Inflation-Hedge या Safe Heaven के रूप में देखने की भूल नहीं करनी चाहिए।
भारत में, सोने की निवेश अपील रुपये की गिरावट अर्थात् Rupee Depreciation के खिलाफ एक बचाव के रूप में रही है। यह भारतीय निवेशकों के लिए आकर्षक होता है, क्योंकि सोने का प्रदर्शन विदेशी मुद्रा Currency risk और स्थानीय demand-supply dynamics पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त, भारत में सोने की लोकप्रियता सांस्कृतिक महत्व यानि कि cultural significance से भी जुड़ी हुई है, जो इसे अन्य Assets  की तुलना में अधिक emotional value देता है। हालांकि, निवेशकों के लिए इसके Risks और Global Performance को समझना बहुत जरूरी है। यदि विदेशी बाजार में रुपया कम कमजोर रहा होता तो भारत में भी आमजन को सोने के ऐसे रिटर्न बिल्कुल भी नजर न आते।
सोने को safe heaven या inflation के खिलाफ एक पूर्ण सुरक्षा कवच मानना एक Myth हो सकता है। तकनीकी और ऐतिहासिक विश्लेषण साफ बताते हैं कि इसकी Volatility, Drawdowns, और रियल रिटर्न इसे Equity की तुलना में Less stable बनाते हैं। हालांकि, यह एक डाइवर्सिफिकेशन टूल के रूप में उपयोगी है, लेकिन पोर्टफोलियो में इसका Weightage सीमित ही होना चाहिए। भारत में सांस्कृतिक व ऐतिहासिक कारणों से सोने की लोकप्रियता बनी हुई है, लेकिन निवेशकों को इसके संभावित रिस्क को, भविष्य में रुपये के अपेक्षाकृत कम या ज्यादा कमजोर होने की संभावनाओं आदि को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित नजरिया अपनाना चाहिए क्योंकि भारत में सोने के दिख रहे रिटर्न का बड़ा हिस्सा रुपये की कमजोरी से उपजा है।
 मैंने मूर्ख समझे जाने के खतरे को उठाते हुए , भीड़ की भेड़ से अलग सोचते समझते हुए यह लिखा है। मुझे पता है कि बहुत से लोगों को मेरी यह बात पहली नजर में पारंपरिक समझदारी के कारण समझ में शायद न आए लेकिन फिर भी उन्हें तथ्यों की रोशनी में दोबारा ठीक से देखने की कोशिश करनी चाहिए।
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