स्वयं को जान लेने से मिलती है आसक्तियों से मुक्ति और यह ज्ञान अंतरतम की गहराइयों में मौजूद

स्वयं को जान लेने से मिलती है आसक्तियों से मुक्ति और यह ज्ञान अंतरतम की गहराइयों में मौजूद

ज़िंदगी में सुख के पीछे भागने से सुख नहीं मिलता. आसक्ति की कोई सीमा नहीं होती. जब आसक्तियों से निरपेक्षता का भाव आता है, तभी जीवन सुखमय होता है. आसक्तियां दुख देती हैं, बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस….

व्यक्ति अपने वर्तमान से दुखी होता है. कोई कम दुखी है, कोई ज्यादा दुखी है. कोई कुछ पल के लिए खुश हो लेता है, लक्ष्य पा लेता है. फिर वह नए लक्ष्य रूपी दुख की ओर बढ़ता है. वह लक्ष्य कभी मिलता है, कभी नहीं मिलता है. अगर व्यक्ति को अपना लक्ष्य मिल जाता है तो एक नई रिक्ति आती है कि अब क्या करें. वह नए लक्ष्य की ओऱ भागता है. ज्यादातर लोगों का जीवन कुछ तुच्छ लक्ष्यों यानी धन, कुछ सुख सुविधाएं, एक सुंदर पत्नी और बाल बच्चों और उसके बाद बाल बच्चों की बेहतर रोजी रोटी की चिंता में खप जाता है. अक्सर वह दुखी होकर कहता है कि बचपन ही ठीक था. वह जगजीत सिंह की गजल में रमने लगता है कि “मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी.” यानी उसने अपनी पूरी उम्र जो कमाया है, उसे निःसार, व्यर्थ लगने लगता है. ऐसे में उपाय क्या है….

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यह प्राचीन काल से विचार में आता है कि क्या मनुष्य इसी के लिए पैदा होता है? क्या यही जीवन का लक्ष्य है कि शादी करें, बच्चे पैदा करें, उन्हें पालें पोसें? क्या यही लक्ष्य है कि बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करें और फिर वह बच्चे पैदा करें? क्या यही जीवन है कि कुछ कार, मकान, सुख सुविधाओं की व्यवस्था हो जाए, उसके बाद बुढ़ापा और मृत्यु हो जाए? और अब पश्चिम के देशों में लोगों का जीवन से मोह भंग हो रहा है. जब सभी भौतिक सुख सुविधाएं जुट गईं. बाल बच्चे हो गए. उनकी कोई चिंता नहीं है. तो आखिरकार उसके बाद क्या? इन्हीं क्या के आगे जब व्यक्ति बढ़ता है तो वह सोचने लगता है कि इतने दुख क्यों हैं? हम इतने दुखी क्यों हैं? क्या यही जीवन है? और ऐसा जीवन है तो क्यों है? क्यों ऐसा जीवन रखें? मरने के बाद क्या होता है?

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कठोपनिषद में यम यानी मृत्यु और नचिकेता के बीच संवाद होता है. उसमें नचिकेता यही सवाल यम से पूछता है कि मृत्यु के बाद क्या? यम उसे लालच देता है कि तू दुनिया के सारे राजपाठ ले ले. सभी सुख सुविधाएं, ऐश्वर्य और मनवांछित सांसारिक सुख ले ले. यह मत पूछ कि मृत्यु के बाद क्या? आखिरकार नचिकेता नहीं मानता है. वह कहता है कि आपने जितना कुछ देने को कहा, उसके बाद भी मृत्यु होनी है. और नचिकेता कहता है कि मृत्यु से बेहतर कौन बता सकता है कि मृत्यु के बाद क्या होगा? और यहीं से मृत्यु और नचिकेता के बीच संवाद शुरू होता है. यम कहता है…

तं दुर्दशं गूढमनुप्रविष्टं गुहाहितं गह्वरेष्ठं पुराणम्

अध्यात्मगोगाधिगमेन देवं मत्वा धीरो हर्षशोकौ जहाति

कठोपनिषद में अध्यात्म को किसी पराभौतिक ज्ञान के रूप में नहीं लिया गया है. बल्कि यह कहा गया है कि यह शरीर और उसके भीतर की आत्मा मिलाकर अध्यात्म है. यम कहता है कि यह गूढ़ रहस्य तुम्हारे अंतरतम में छिपा हुआ है, वह अत्यंत भीतरी भाग में छिपा है. इसे अध्यात्म योग से प्राप्त कर सकते हैं. और जब यह प्राप्त होता है तो मनुष्य हर्ष और शोक से निरपेक्ष हो जाता है. वह द्वंद्वों को छोड़ देता है. अध्यात्म के उसी सूक्ष्म अणु को प्राप्त कर लेना ही लक्ष्य है. उसके बाद आनंद ही आनंद मिलता है.

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बुद्ध धर्म में भी इसी ध्यान की बात की गई है. यह सांसों को महसूस करने से शुरू होता है. उसके बाद शरीर के सभी अंगों पर केंद्रण होता है. बदलावों को महसूस किया जाता है. अपने भीतर हो रहे बदलावों को दृष्टा यानी निरपेक्ष भाव से देखा जाता है. चार आर्य सत्य महसूस किए जाते हैं कि जीवन में दुख है, उस दुख का कारण क्या है और उसे जाना कैसे जा सकता है और उसका निवारण क्या है. दुखों से मुक्ति के लिए व्यक्ति को निरपेक्ष होने की शिक्षा दी जाती है. कहा जाता है कि आसक्ति से मुक्ति पाएं. जितनी ही आसक्ति होगी, उतना ही गहरा दुख होगा.

एक नजर इधर भीः मनुष्य को स्वतंत्रता में खुशी मिलती है धन में नहीं

शॉर्ट में कहें तो मामला यह है कि हाय हाय करने का कोई आदि अंत नहीं है. इसका मतलब यह भी नहीं है कि धन न कमाएं. लेकिन धन को लेकर कभी आसक्त न हों. उससे इतना लगाव न हो कि आपके प्राण पखेरू ही उड़ जाएं. निरपेक्षता किसी भी स्तर पर हो सकती है और लगाव भी किसी भी स्तर पर हो सकता है. किसी साधारण मनुष्य की आसक्ति अपने झोपड़े से इतनी हो सकती है कि सरकार अगर उस पर बुलडोजर चढ़ाने आए तो वह व्यक्ति तेल छिड़क कर अपने को फूंक ले. किसी बहुत अमीर व्यक्ति की अपने महल से इतनी कम आसक्ति हो सकती है कि उसका बाप कहे कि अब जा बेटा, तू जंगल में रह, दिखाई न देना. और वह व्यक्ति जंगल की ओर चल दे. ऐसे व्यक्ति को कोई छोभ, पीड़ा और गुस्सा नहीं होता. निरपेक्षता की यही अवस्था प्राप्त कर लेना दुखों से परे होना है, मुक्ति पाना है.

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