थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद लंबे समय से चल रहा है। चीन की दोहरी भूमिका इस विवाद की आग में घी का काम करता है, जबकि भारत मूकदर्शक है। आइए जानते हैं कि थाईलैंड ने कंबोडिया पर क्यों शुरू किए हवाई हमले… क्या है दोनों देशों के बीच विवाद….
थाईलैंड और कंबोडियाई के सैनिकों के बीच सीमा पर झड़प में कम से कम 14 लोग मारे गए हैं, जिनमें अधिकतर आम नागरिक हैं। दोनों पक्षों ने छोटे हथियारों, तोप और रॉकेट से हमले किए और थाईलैंड ने भी हवाई हमले भी किए।
थाईलैंड के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सुरसंत कोंगसिरी के अनुसार 24 जुलाई 2025 को कम से कम छह इलाकों में झड़प हुई। इससे एक दिन पहले ही सीमा पर एक बारूदी सुरंग विस्फोट में थाईलैंड के पांच सैनिक घायल हो गए थे और थाईलैंड ने कंबोडिया से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था तथा थाईलैंड में कंबोडिया के दूत को निष्कासित कर दिया था।
थाईलैंड में भारतीय दूतावास ने थाईलैंड में रह रहे भारतीय नागरिकों के लिए 25 जुलाई 2025 को एक परामर्श जारी करते हुए उनसे थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर जारी हिंसा के बीच सात प्रांतों की यात्रा करने से बचने की अपील की है।
भारतीय दूतावास ने ‘एक्स’ पर पोस्ट में कहा, ‘‘थाईलैंड-कंबोडिया सीमा के पास की स्थिति को देखते हुए थाईलैंड आने वाले सभी भारतीय यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे ‘टीएटी न्यूजरूम’ समेत थाईलैंड के आधिकारिक सूत्रों से नवीनतम जानकारी प्राप्त करें।’’ उसने थाईलैंड के पर्यटन प्राधिकरण के एक पोस्ट के हवाले से कहा कि जिन स्थानों का उल्लेख किया गया है, वहां यात्रा न करने की सलाह दी जाती है। पर्यटन प्राधिकरण ने कहा कि उबोन रत्चथानी, सुरीन, सिसाकेट, बुरीराम, सा काओ, चन्थाबुरी और ट्राट प्रांतों में कई स्थलों की यात्रा न करने की सलाह दी जाती है।
ओड्डार मींचे प्रांत में कंबोडिया के मुख्य अधिकारी जनरल खोव ली ने शुक्रवार 25 जुलाई 2025 को कहा कि प्राचीन ता मुएन थॉम मंदिर के पास सुबह-सुबह फिर से झड़पें शुरू हो गईं। सीमा के पास ‘एसोसिएटेड प्रेस’ (एपी) के पत्रकारों को सुबह से ही धमाकों की आवाजें सुनाई दीं। अधिकारी ने यह भी कहा कि 24 जुलाई 2025 को हुई झड़प में कम से कम चार आम नागरिक घायल हुए हैं और सीमा से लगे गांवों से 4,000 से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा जिन्हें आश्रय केंद्रों में भेजा गया है। यह कंबोडियाई पक्ष की ओर से किसी के हताहत होने के बारे में दी गई पहली जानकारी है।
संयुक्त राष्ट्र के उप प्रवक्ता फरहान हक के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने दोनों पक्षों से ‘‘अधिकतम संयम बरतने और किसी भी मुद्दे को बातचीत के माध्यम से हल करने’’ का आग्रह किया है।
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद की मुख्य वजह सीमा विवाद है, जिसकी जड़ें औपनिवेशिक काल और प्राचीन मंदिरों के मालिकाना हक को लेकर हैं।
दोनों देशों के बीच औपनिवेशिक सीमाएं विवाद की वजह हैं। विवाद की उत्पत्ति 20वीं शताब्दी की शुरुआत में फ्रांसीसी औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा बनाए गए नक्शों से हुई है। 1907 के एक नक्शे ने एक प्राकृतिक जलविभाजन रेखा के साथ सीमाओं का सीमांकन किया, लेकिन इसमें कई सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थल, जिनमें प्रीह विहार मंदिर भी शामिल है, कंबोडियाई पक्ष में रखे गए, जिसे थाईलैंड विवादित मानता है। थाईलैंड का तर्क है कि ये नक्शे गलत थे और उन्हें पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया था।
11वीं शताब्दी में बना प्रीह विहार मंदिर दोनों देशों के बीच विवाद का मुख्य केंद्र रहा है। 1962 में, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने मंदिर पर संप्रभुता कंबोडिया को दी थी। हालाँकि, मंदिर के आस-पास का क्षेत्र अभी भी विवादित है। इसके अलावा ता मुएन थॉम और ता मुएन थॉम मंदिर अन्य प्राचीन स्थल हैं जो विवादित सीमा क्षेत्रों में स्थित हैं या उनके पास हैं। इन मंदिरों को लेकर भी दोनों देशों के बीच अक्सर झड़पें होती रहती हैं।
दोनों देशों में राष्ट्रवादी भावनाएं अक्सर विवाद को भड़काती हैं। सीमा विवाद का उपयोग घरेलू राजनीति में भी किया जाता है, जिससे तनाव बढ़ जाता है। हाल ही में, थाईलैंड की प्रधान मंत्री पाएतोंगटार्न शिनावात्रा को एक लीक हुई फोन कॉल के बाद निलंबित कर दिया गया था, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कंबोडिया के पूर्व नेता हुन सेन को “अंकल” कहा था और थाई सेना की आलोचना की थी, जिससे थाईलैंड में राष्ट्रवादियों में आक्रोश फैल गया था।
हाल ही में, बारूदी सुरंग विस्फोटों से थाई सैनिकों के घायल होने से तनाव बढ़ गया है। थाईलैंड का आरोप है कि कंबोडिया ने हाल ही में नई बारूदी सुरंगें बिछाई हैं, जबकि कंबोडिया का दावा है कि ये पिछले युद्धों के अवशेष हैं।
इन घटनाओं के बाद, दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजदूतों को निष्कासित कर दिया है और राजनयिक संबंधों को “सबसे निचले स्तर” तक गिरा दिया है, साथ ही सीमा चौकियों को भी बंद कर दिया है।सीमा पर बार-बार सैन्य झड़पें होती रही हैं, जिसमें गोलीबारी, गोलाबारी और यहां तक कि हवाई हमले भी शामिल हैं, जिससे नागरिकों और सैनिकों दोनों को नुकसान हुआ है।
संक्षेप में, थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद मुख्य रूप से औपनिवेशिक काल से चली आ रही अस्पष्ट सीमा रेखाओं और प्राचीन हिंदू मंदिरों के मालिकाना हक को लेकर है, जिसे राष्ट्रवादी भावनाएं और घरेलू राजनीतिक घटनाक्रम समय-समय पर भड़काते रहते हैं।
थाईलैंड-कंबोडिया विवाद में चीन की अहम भूमिका
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच चल रहे सीमा विवाद में चीन की भूमिका काफी जटिल और बहुआयामी है। इसे केवल एक पक्ष का समर्थन करने के बजाय क्षेत्रीय भू-राजनीति में अपने व्यापक हितों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
चीन कंबोडिया का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी और सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है। दोनों देशों के बीच “लौह मित्रता” के संबंध हैं। कंबोडियाई नेतृत्व, विशेष रूप से हुन सेन और अब हुन मानेट, चीन के सबसे भरोसेमंद एशियाई साझेदारों में से एक माने जाते हैं। चीन ने कंबोडिया में महत्वपूर्ण सैन्य सहायता प्रदान की है और रीम नौसैनिक अड्डे के विकास में भी शामिल है, जिसे कई विशेषज्ञ चीन का दूसरा विदेशी सैन्य अड्डा मानते हैं। यह कंबोडिया को क्षेत्रीय विवादों में एक मजबूत स्थिति में रखता है। चीन कंबोडिया के साथ नियमित रूप से सैन्य अभ्यास (जैसे “गोल्डन ड्रैगन”) आयोजित करता है, जो दोनों देशों के बीच सैन्य विश्वास और सहयोग को गहराता है। यह कंबोडिया की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाता है और उसे थाईलैंड के खिलाफ एक मजबूत स्थिति में लाता है।
चीन के थाईलैंड के साथ भी मजबूत आर्थिक संबंध हैं। चीन थाईलैंड का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, और दोनों देशों के बीच व्यापार लगातार बढ़ रहा है। चीन ने थाईलैंड को हथियार भी बेचे हैं। यह इंगित करता है कि चीन थाईलैंड के साथ भी अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है।
चीन ने अतीत में कई अंतरराष्ट्रीय विवादों में मध्यस्थता की पेशकश की है। इस संघर्ष में भी चीन मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है, जिससे वह दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी कूटनीतिक और सामरिक स्थिति को बढ़ा सकता है। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन इस संघर्ष का “प्रायोजक” हो सकता है, क्योंकि यह उसे क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच तनाव चीन के लिए अमेरिका के प्रभाव को कम करने का अवसर हो सकता है। थाईलैंड अमेरिका के साथ बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास करता है और अमेरिकी नौसेना को सुविधाएं प्रदान करता है। अगर यह विवाद बढ़ता है और चीन मध्यस्थता करके या किसी एक पक्ष को मजबूत करके स्थिति को अपने पक्ष में करता है, तो यह दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन के प्रभुत्व को और मजबूत करेगा।
कुछ विश्लेषक इस संघर्ष को चीन और अमेरिका के बीच एक “प्रॉक्सी वॉर” के रूप में भी देखते हैं। थाईलैंड अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी है, जबकि कंबोडिया चीन का मजबूत भागीदार है। ऐसे में, यह संघर्ष परोक्ष रूप से दोनों महाशक्तियों के बीच क्षेत्रीय प्रभाव की प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है।
थाईलैंड और कंबोडिया विवाद में भारत की भूमिका
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच चल रहे सीमा विवाद में भारत की भूमिका मुख्य रूप से शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने और अपने एक्ट ईस्ट पॉलिसी के उद्देश्यों को पूरा करने पर केंद्रित है। भारत सीधे तौर पर इस विवाद में कोई सैन्य या राजनीतिक पक्ष नहीं ले रहा है, लेकिन इसके क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर चिंतित है।
भारत ने ऐतिहासिक रूप से ऐसे क्षेत्रीय विवादों में गैर-पक्षपातपूर्ण रुख अपनाया है। वर्तमान स्थिति में भी भारत की कोशिश है कि वह तटस्थ रहते हुए दोनों देशों के बीच शांति वार्ता को बढ़ावा दे। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान हो क्योंकि यह क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ गहरे आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंध बनाने पर केंद्रित है। थाईलैंड और कंबोडिया दोनों ही आसियान (ASEAN) के सदस्य हैं, और इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार का सैन्य संघर्ष आसियान की एकता और स्थिरता को प्रभावित कर सकता है। भारत, आसियान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने का इच्छुक है, इसलिए वह इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता को प्राथमिकता देता है।
भारत का आसियान देशों के साथ लगभग 130 अरब डॉलर का व्यापार है। थाईलैंड और कंबोडिया दोनों ही भारत के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार हैं। यदि यह संघर्ष बढ़ता है और आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित होती हैं, तो भारतीय निर्यातकों और निवेशकों को नुकसान हो सकता है। कंबोडिया में फार्मा और कृषि क्षेत्र में भारतीय निवेश है, जबकि थाईलैंड को भारत ऑटोमोबाइल पार्ट्स, फार्मास्यूटिकल्स और रसायन का निर्यात करता है। ऐसे में, भारत के आर्थिक हित इस विवाद के शांतिपूर्ण समाधान से जुड़े हुए हैं।
थाईलैंड और कंबोडिया दोनों में बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक रहते हैं, और हर साल लाखों भारतीय पर्यटक थाईलैंड जाते हैं। वर्तमान तनावपूर्ण स्थिति में इन नागरिकों की सुरक्षा भारत सरकार के लिए चिंता का विषय है। भारत सरकार और उसके दूतावास स्थिति पर कड़ी नजर रख रहे हैं ताकि वहां रह रहे भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
2011 में जब इस सीमा विवाद में तनाव बढ़ा था, तो UNHCR के अनुसार लगभग 10,000 कंबोडियाई लोग विस्थापित हुए थे। भारत ऐसी किसी भी मानवीय संकट को टालना चाहेगा जो इस विवाद के बढ़ने पर उत्पन्न हो सकता है।
जबकि चीन कंबोडिया का एक मजबूत सहयोगी है और इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है, भारत इस क्षेत्र में अपने स्वयं के रणनीतिक हितों को बनाए रखना चाहता है। भारत सीधे तौर पर चीन के साथ प्रतिस्पर्धा में नहीं पड़ना चाहता, लेकिन वह क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने में रुचि रखता है। इस विवाद में कोई भी समाधान जो चीन के पक्ष में बहुत अधिक झुकाव रखता है, भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है।
संक्षेप में, भारत थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद में एक शांतिदूत और स्थिरता समर्थक की भूमिका निभाना चाहता है। यह अपने आर्थिक, रणनीतिक और मानवीय हितों को ध्यान में रखते हुए, दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने और शांतिपूर्ण समाधान खोजने का समर्थन करेगा।