पश्चिम बंगाल सरकार ने The Kerala Story, पर प्रतिबंध लगा दिया है. वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह बता रहे हैं कि कहानी में कितना लोचा है.
इस फ़िल्म को राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए बनाया गया है ऐसा आरोप है. देखें कि क्या तथ्य इसकी पुष्टि करते हैं?
१) The Kerala Story के शुरुआती प्रचार में कहा गया कि यह केरल की 32000 युवतियों की कहानी है जो धर्म परिवर्तन करके ISIS में शरीक हो गई थीं. केरल सरकार के तथ्यात्मक और क़ानूनी प्रतिरोध के बाद यह संख्या निर्माता/ निर्देशक द्वारा घटाकर सीधे 3 युवतियों पर सीमित कर दी गई, सरकारी आँकड़ा भी यही है.
2) यूरोप में क़रीब साढ़े चार करोड़ मुसलमान रहते हैं जो उनकी आबादी का क़रीब छह प्रतिशत हैं. भारत में बीस करोड़ से ज़्यादा मुसलमान रहते हैं जो हमारी आबादी का क़रीब साढ़े चौदह प्रतिशत हैं.
3) यूरोप से क़रीब नौ सौ युवतियों ने अपने अपने देशों को छोड़कर ISIS में दाख़िला लिया था जिसकी क़रीब एक तिहाई संख्या धर्म परिवर्तित करके isis में शरीक हुई थी. जबकि केरल/ भारत से कुल तीन युवतियों की इस संबंध में शिनाख्त हुई है.
4) यूरोपीय युनियन या किसी भी युरोपीय देश के किसी भी क़िस्म के रचनाकार ने इसे पूरी मुस्लिम कम्युनिटी या किसी राज्य/ छेत्र/ देश को लांछित करने का मुद्दा नहीं बनाया. किसी राजनेता ने इसे चुनाव में मुद्दा बनाया हो ऐसी मिसाल तो ख़ैर है ही नहीं लेकिन भारत में यही हुआ.
5) यूरोप के कई देशों में इस समय दक्षिणपंथी सरकारें हैं और वे भी तमाम तरह के झूठे ख़तरों पर राजनीतिक रोटी सेंकती हैं लेकिन फिर भी यह गिरावट हमारे स्तर से कोसों ऊपर है.
6) ET की 2019 की एक रपट के अनुसार सिर्फ़ रेलवे पुलिस ने पहले छह महीनों में एक हज़ार से ज़्यादा घर से भागी हुई लड़कियों को बरामद किया था. सालाना क़रीब एक लाख युवतियों/ लड़कियों के बारे में ऐसे मामले देश भर में दर्ज होते ही रहते हैं. अकेले गुजरात से पिछले कुछ सालों में 45 हज़ार युवतियों के ग़ायब होने की खबर सोशल मीडिया पर वायरल है. तरुणाई पार करती लड़कियों में हार्मोन परिवर्तन के चलते विद्रोही स्वभाव पैदा होना स्वाभाविक बायलॉजिकल परिघटना है. लड़कों में भी तरुणाई में उद्दंडता / विद्रोही स्वर इस उम्र में किसी न किसी स्तर पर दर्ज होता ही है तो बीस करोड़ की आबादी में से दो तीन लड़कियों का इस उम्र में isis के बहकावे में आ जाना क्या सचमुच में इतना बड़ा मुद्दा है जैसा कि शोर मचाया गया है?
7) इस फ़िल्म को सोशल मीडिया और मीडिया पर बीजेपी समर्थकों का चीख पुकार कर अभियान चलाकर समर्थन करना और स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा चुनाव में इसको मुद्दा बनाना स्पष्ट करता है कि यह मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा फैलाकर राजनीतिक सफलता प्राप्त करने का एक और प्रयास भर है जिसकी टाइमिंग सीधे कर्नाटक चुनाव से जुड़ी हुई है.