ट्रेड वार शुरू करना आसान होता है… लेकिन इसका अंत कब और कैसे होगा… किसी को पता नहीं होता। चल रहे वैश्विक कारोबारी जंग की बारीकियां बता रहे हैं निवेश गुरु प्रभात त्रिपाठी….
Trade war किसी भी पारंपरिक युद्ध की तरह होता है — इसे शुरू करना आसान होता है, लेकिन इसका अंत कब और कैसे होगा, यह किसी को नहीं पता।
जब कोई देश अपनी domestic industries को protect करने या दूसरे देश की unfair practices को challenge करने के लिए या राजनीतिक दबावों के लिए tariffs और protectionist policies का सहारा लेता है, तो शुरुआत में यह एक rational कदम लग सकता है। लेकिन जैसे ही दूसरे देश retaliate करते हैं, स्थितियां अनिश्चितता की ओर चली जाती हैं, पूरा economic landscape बदलने लगता है।
ट्रंप के पिछले कार्यकाल में US-China trade war इसका स्पष्ट उदाहरण है। शुरुआत $34 billion के Chinese imports पर 25% tariff से हुई, लेकिन कुछ ही समय में यह टैरिफ $550 billion तक पर लग गया। जवाब में China ने भी $185 billion के US exports पर tariffs लगाए। इसका असर global GDP पर पड़ा — IMF की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में यह 0.8% तक घट गयी। इन सब में supply chains disturb हुईं और consumer prices बढ़ गए, मतलब महंगाई बढ़ गई।
इतिहास में भी Smoot-Hawley Tariff Act -1930 ने protectionism को बढ़ावा दिया। Global trade गिरने से The Great Depression और गहरा हो गया। अमेरिका के टैरिफ लगाने के जवाब में यूरोप, कनाडा आदि ने जो जवाबी टैरिफ लगाए, उससे अमेरिका का एक्सपोर्ट लगभग दो तिहाई से भी ज्यादा गिर गया और अमेरिका को कुछ साल बाद टैरिफ वापस लेने पड़े।
इसी तरह US-EU aircraft subsidies dispute भी 2004 में शुरु हुआ। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के products पर tariffs लगाए। अंततः 17 साल बाद post Covid recovery के समय एक temporary truce हुआ, लेकिन core issues फिर भी unresolved ही रहे।
हमारे देश भारत और EU के बीच agricultural exports को लेकर हुआ विवाद भी इसी logic को follow करता है। इस सदी की शुरुआत के समय EU की सख्त health standards आदि के जवाब में भारत ने WTO में शिकायत वगैरह की और counter-measures अपनाए, लेकिन इसके अधूरे समाधान में भी बरसों लग गए और दोनों तरफ के exporters ने नुकसान उठाया तथा जनता को महंगाई की मार पड़ी।
इन सभी उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि trade war शुरू करने के पीछे चाहे कितनी भी strategy बनाई गई हो, प्रभावित पक्षों की प्रतिक्रियाएँ uncontrolled होती है और बात संभाले जाने से आगे निकल जाती हैं नतीजतन इस सबका अंत भी अनिश्चित हो जाता है। एक बार trigger दबा देने के बाद, outcome आपके control में नहीं रहता। ट्रंप सरकार ने जो मोबाइल, कम्प्यूटर आदि को टैरिफ से बाहर किया है वह प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं व प्रभावों को सँभालने के लिए ही किया है मगर जिन्न बोतल से बाहर निकल चुका है और घरेलू राजनीतिक दबाव व geo political pressures क्या रंग लाते हैं देखना बाकी है।
भारतीय अर्थव्यवस्था इस पूरे प्रकरण में अपेक्षाकृत resilient है मगर immune नहीं है सो असर बाकी प्रमुख पक्षों जितना नहीं पड़ेगा मगर पड़ेगा तो।