सत्येन्द्र पीएस
जब साहित्यिक संगोष्ठियों में जाता हूँ तो कुछ हवा ही नहीं लगती कि विद्वतजन कहना क्या चाहते हैं! सच बताऊं तो कुछ समझ में ही नहीं आता है साहित्य वगैरा।
अज्ञेय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बैठा हूँ। अज्ञेय मेरे प्रिय लेखकों में हैं। उनका लिखा हुआ नागार्जुन के लिखे बुद्धिज्म के दर्शन की तरह भयानक घुमावदार है। लेकिन अगर उनको बड़े सरल हृदय से पढ़ा जाए तो पता चलता है कि अपने उपन्यास कम आत्मकथा शेखर एक जीवनी में पूरी दुनिया और दर्शन बड़बड़ा गए हैं। अज्ञेय अपने समय से 50-70 साल आगे थे। मैं प्रेमचंद का भी फैन था और अज्ञेय का। स्टूडेंट लाइफ़ के मेरे जैसे शौकिया पाठक कभी लेखक का जन्मदिन शायद ही देखते हैं। जब प्रेमचंद और अज्ञेय को पढा तो ऐसा फील हुआ कि अज्ञेय ने अभी हाल फिलहाल में लिखा है और प्रेमचंद थर्टीज के हैं! बहुत बाद में जाना कि दोनों करीब एक ही दौर के लेखक हैं।
साहित्यकार लोग उनके बारे में क्या क्या कह गए, सब बाउंस कर गया। उदय प्रकाश औऱ अरविंद मोहन दोनों से अज्ञेय के बारे में चर्चा हुई। दोनों का कहना था कि समय से आगे की बात लिखने के कारण ज्यादातर लोगों को अज्ञेय बाउंस कर जाते हैं और तमाम लोग तो बुड्ढे साहित्यकारों की समीक्षा पढ़ने के बाद अभी भी अज्ञेय को समझ नहीं पाते!
खैर…
उदय प्रकाश इस दौर के सबसे एनर्जेटिक युवा साहित्यकार हैं। जितना पढ़ते है उसका बहुत मामूली लिखते हैं। लोग उन्हें साहित्यकार के रूप में जानते हैं लेकिन क्लासिकल फिल्मी दुनिया में वह उतने ही लोकप्रिय हैं। उनका मानना है कि जब तक कलाकार दुनिया के क्लासिक्स से लेकर आधुनिक हलचलों तक नहीं अवगत होगा, वह कोई कालजयी कृति नहीं दे सकता।
यह बड़ी खुशी की बात है कि उदय प्रकाश हमारे गोरखपुर/कुशीनगर आए। आज मैं कुशीनगर आया तो यहां के बैनर पोस्टर और जाम, कब्जे देखकर फील आया कि यहां के लोग बुद्ध को चबा गए। यह लोग अज्ञेय को भी खा जाएंगे। खाने वालों की पाचनशक्ति बड़ी मजबूत है। लेकिन उदय प्रकाश जैसे कुछ लोग हैं जो कुछ संभाले हुए हैं पठन पाठन! उदय प्रकाश न डॉक्टर हैं, न प्रोफेसर हैं। फिर भी वह हैं और पूरी ठसक से हैं। इसी को कहते हैं उदय प्रकाश होन।