भारतीय संस्कृति में ओम के उच्चारण का व्यापक असर है. हर शुभ जगहों पर आपको ओम् लिखा हुआ मिल जाता है. ओम नमः शिवाय से लेकर ओम भूर्भुवः स्वः तत्स वितुर्वरेण्यं धीमहि धियो योनः प्रचोदयात तक. ओम की व्यापक मौजूदगी है. इसके उच्चारण को सांस से भी जोड़ा जाता है. ओम आवाज गूंजने की बात भी की जाती है. बुद्ध धर्म में भी ओम का व्यापक इस्तेमाल होता है. वज्रयान के तमाम मंत्रों में ओम शब्द का इस्तेमाल हुआ है.OM MANI PADME HUM वज्रयान का महामंत्र है.
बुद्ध धर्म में ओम का क्या अर्थ है?
आइए सबसे पहले ओम का बुद्धिज्म में अर्थ समझते हैं. ओम शब्द का इस्तेमाल बुद्धिज्म में भी खूब किया गया है. बुद्धिज्म की ध्यान प्रणालियों में ओम का व्यापक इस्तेमाल होता है. खासकर वज्रयान में ओम मणि पद्मे हूम मंत्र आम है. इसका उच्चारण किया जाता है. हालांकि इसका अर्थ कम लोग जानते हैं.
बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा के मुताबिक OM MANI PADME HUM (OM MA NI PAD ME HUM) में ओम की बुद्धिस्ट व्याख्या में ओम में 3 लेटर्स छिपे होते हैं अ (aa) ओ (o) म (ma). अ मींस बॉडी, यानी अ मनुष्य के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है. ओ मींस स्पीच यानी यह मनुष्य की वाणी का प्रतिनिधित्व करता है. म मींस माइंड यानी यह मनुष्य के मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है. ओम का मतलब हुआ बॉडी, स्पीच, माइंड इंप्योर लेवल में होना. इसी ओम यानी बॉडी, स्पीच और माइंड को प्योर लेवल में बदलना है.ओम यानी शरीर, मस्तिष्क और वाणी को 3 प्योर पार्ट में बदलने की कामना होती है.
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अब इस ओम यानी अशुद्ध शरीर, वाणी और मस्तिष्क को बदलकर शुद्ध कैसे बनाएं और क्या बनाएं? इस ओम को बदलकर मणि, पद्मे और हूम करना होता है. मणि का मतलब हुआ ज्वेल यानी आभूषण. शरीर को आभूषण बनाना है. शरीर को आभूषण कैसे बनाएंगे… तो इसके लिए करना यह है कि अपने शरीर को अनंत परोपकारिता (INFINITE ALTRUISM) में लगाना है. दूसरों का उपकार करने का सिद्धांत अपनाना है. तभी आप मणि बन पाएंगे.
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पद्मे का आशय WISDOM से है. मतलब आपकी भाषा, आपका कहना बुद्धिमत्तापूर्ण हो. मौन रहें, दूसरे को सुनें और कम बोलें. आप जो बोलते हैं, उसमें पद्मे यानी विजडम होना चाहिए. इस वाणी को शुद्ध करके पद्म बनाना है.
ALTRUISM और WISDOM जुड़ जाते हैं, उसे हूम कहते हैं. यानी आपके भीतर परोपकारिता और बुद्धिमत्ता का योग होगा. आपका मस्तिष्क कुछ ऐसा होगा. इस तरह से ओम यानी अपने अशुद्ध शरीर, अशुद्ध वाणी और अशुद्ध मस्तिष्ट को शुद्ध यानी मणि, पद्मे और हूम में बदलना होता है. यह 3 इंप्योर को प्योर में बदलने की प्रक्रिया है.
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हिंदू धर्म में ओम का क्या अर्थ है?
आइए अब हम हिंदुइज्म में ओम की बात करें. मांडूक्योपनिषद का पहला श्लोक ही ओम की व्याख्या को लेकर है. इसमें में कहा गया है…
ओमित्येतवक्षरमिदं, सर्वं तस्योपव्याख्यानं भूतं भवद् भविष्यदिति
सर्ममोकार एव यच्चान्यत्त्रिकालातीतं तदप्योकार एव.
ओम एक छोटा सा अक्षर है, परंतु निखिल संसार इसी एक अक्षर की व्याख्या है. भूत, वर्तमान और भविष्य यह सब ओंकार का ही विस्तार है. जो भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों कालों में नहीं समाता. जो त्रिकालातीत है, वह भी ओंकार का ही प्रसार है.