सिद्धारमैया कौन हैं

सिद्धारमैया कौन हैं, सिद्धारमैया किस जाति (Siddaramaiah’ caste) के हैं, सिद्धारमैया को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के रूप में क्यों चुना, यह ऐसे सवाल हैं, जो इस समय पूछे जा रहे हैं. इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के संकटमोचक माने जाने वाले डीके शिवकुमार की उपेक्षा कर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया.

 

समाजवादी नेता के रूप में करीब 25 साल तक कांग्रेस के खात्मे की कवायद करने वाले सिद्धारमैया को कांग्रेस ने दूसरी बार कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाया है. वह भी अपने ऐसे नेता की उपेक्षा कर उन्हें राज का ताज सौंपा है, जिसे कांग्रेस का संकटमोचक माना जाता रहा है.

सिद्धारमैया कौन हैं (Who is Siddaramaiah)

सिद्धारमैया का जन्म 12 अगस्त 1948 को मैसुरू जिले के गांव सिद्धारमनहुंडी में हुआ. सिद्धारमैया ने मैसुरू विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली. बाद में यहीं से कानून की डिग्री हासिल की. सिद्धारमैया का विवाह पार्वती से हुआ है. उनके पुत्र डॉ. यतींद्र 2018-2023 विधानसभा में वरुणा से विधायक थे. 2023 में सिद्धरमैया ने वरुणा सीट से चुनाव जीता है. उनके बड़े बेटे राकेश की 2016 में मृत्यु हो गई, जिन्हें कभी उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था.

सिद्धारमैया किस जाति के हैं (Siddaramaiyah caste)

सिद्धारमैया कुरुबा गौड़ा कम्युनिटी के हैं. कुरबा हिंदू जाति है, जो कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पाई जाती है. कुरुबा कर्नाटक का तीसरा बड़ा जाति समूह है. कुरबा जाति सामान्यतया पशुपालन का काम करती है. कुरुबा शब्द कुरी से बना है, जिसका अर्थ होता है भेंड़. यह जाति अधिकतर गांवों में रहती है. उत्तर भारत में इसे मुख्य रूप से गड़रिया जाति से जोड़ा जाता है. कुछ उदार लोग कुरुबा को पशुपालक अहिर जाति के समकक्ष मानते हैं.

सिद्धारमैया का राजनीतिक सफर

सिद्धारमैया 1980 के दशक की शुरुआत से 2005 तक कांग्रेस के धुर विरोधी थे. 2005 में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जद(एस) से निकाले जाने के बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. जनता दल सेकुलर छोड़ने के बाद उनसे कांग्रेस या भारतीय जनता पार्टी में जाने के बारे में पूछा जाता था तो उनका कहना था कि भारतीय जनता पार्टी से वैचारिक रूप से उनका छत्तीस का आंकड़ा है. आखिरकार उन्होंने वह हाथ थाम लिया, जिसका वे ढाई दशक तक विरोध करते रहे.

अपने धैर्य, दृढ़ता और स्पष्टवादिता के लिए जाने जाने वाले अनुभवी राजनेता सिद्धारमैया का मुख्यमंत्री बनने का सपना 2013 में पूरा हुआ, जब कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया. 9 बार के विधायक सिद्धारमैया 5 साल बाद फिर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने हैं.

2023 को आखिरी चुनाव बताया है सिद्धारमैया ने

75 साल के कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने पहले ही घोषणा की थी कि 2023 का विधानसभा चुनाव उनका आखिरी चुनाव होगा. उन्होंने अपनी यह महत्वाकांक्षा भी नहीं छिपाई कि वह अपनी सक्रिय सियासी पारी को “ऊंचाई” पर विराम देना चाहते है और मुख्यमंत्री बनना उनका मकसद है.

2013 में मल्लिकार्जुन खरगे बने थे शिकार

मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कांग्रेस के दिग्गजों को किनारे लगाने का श्रेय भी सिद्धारमैया को है. 2013 में उन्होंने एम. मल्लिकार्जुन खरगे  को सिद्धारमैया ने किनारे लगा दिया था, जो मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल थे और केंद्र की मनमोहन सरकार में केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री थे. इस समय खरगे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

एक नजर इधर भीः कर्नाटक में घायल नागिन बने नरेंद्र मोदी ने प्रवीण सूद को सीबीआई प्रमुख (New Central Bureau of Investigation -CBI- Director Praveen Sood) बनाकर दिखाए तेवर

2004 में कांग्रेस सरकार में ही डिप्टी सीएम बने थे सिद्धारमैया

कर्नाटक में 2004 में खंडित जनादेश मिला. उसके बाद कांग्रेस और जनता दल सेकुलर ने गठबंधन सरकार बनाई. उस समय जद (एस) में रहे सिद्धारमैया को उप मुख्यमंत्री बनाया गया जबकि कांग्रेस के एन धरम सिंह मुख्यमंत्री बने. उस समय सिद्धारमैया ने आरोप लगाया कि उनके पास मुख्यमंत्री बनने का अवसर था, लेकिन देवेगौड़ा ने उनकी संभावनाओं पर पानी फेर दिया था.

क्या है अहिंडा, जिसके नेता होने का सिद्धारमैया का दावा

सिद्धारमैया ने खुद को पिछड़े वर्ग के नेता के तौर पर स्थापित करने की कवायद की. उन्होंने अहिंडा सम्मेलन कराया. अहिंडा शब्द कर्नाटक में अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए कन्नड में सक्षिप्त शब्द है. उस समय देवेगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी को पार्टी में उभरते नेता के तौर पर देखा जा रहा था.

एक नजर इधर भीः Sonia Gandhi Vs DK Shivakumar : कर्नाटक में चल रहे नाटक के पीछे सोनिया गांधी का हाथ!

सिद्धारमैया को जनता दल सेकुलर से क्यों निकाला गया

सिद्धारमैया को जद (एस) से बर्खास्त कर दिया गया. वह पार्टी में पहले राज्य इकाई प्रमुख के रूप में कार्य कर चुके थे. पार्टी के आलोचकों का कहना था कि उन्हें इसलिए हटा दिया गया, क्योंकि देवेगौड़ा कुमारस्वामी को पार्टी के नेता के रूप में स्थापित करने को इच्छुक थे.

अधिवक्ता सिद्धरमैया ने उस वक्त कथित रूप से ‘राजनीति से सन्यांस’ और वकालत के पेशे में लौटने का विचार व्यक्त किया था. उन्होंने अपनी पार्टी के गठन की संभावना को खारिज करते हुए कहा था कि वह धनबल नहीं जुटा सकते, इसलिए यह कवायद करने को इच्छुक नहीं हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपने पाले में खींचने की कवायद की. उस समय उन्होंने कहा था कि वह भाजपा की विचारधारा से सहमत नहीं हैं.

सिद्धारमैया कांग्रेस में कब शामिल हुए

सिद्धारमैया 2006 में समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए. ऐसा सोचा भी नहीं जा रहा था कि जिस व्यक्ति ने आजीवन कांग्रेस का विरोध किया, वह दल बल के साथ कांग्रेस में शामिल होगा. ठेठ देसी अंदाज में नजर आने वाले सिद्धरमैया ने मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा को कभी नहीं छुपाया और बार-बार, बिना किसी हिचकिचाहट के इस पर जोर दिया.

एक नजर इधर भीः किन नेताओं के दम पर कांग्रेस में विद्रोह कर रहे हैं सचिन पायलट

1996 में भी मुख्यमंत्री की दौड़ में सिद्धारमैया पिछड़े थे

वह 2004 के अलावा 1996 में भी मुख्यमंत्री की दौड़ में पिछड़ गए थे. जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने, तब सिद्धरमैया को जेएच पटेल ने पछाड़ दिया. पटेल के मंत्रिमंडल में सिद्धारमैया उपमुख्यमंत्री रहे. देवेगौड़ा और पटेल दोनों के अधीन उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया. जनता के बीच व्यापक प्रभाव रखने वाले सिद्धारमैया वित्त मंत्री के तौर पर 13 बार राज्य का बजट पेश कर चुके हैं.

चामुंडेश्वरी से पहली बार जीते सिद्धारमैया

सिद्धरमैया 1983 में लोकदल के टिकट पर चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे. फिर उन्होंने तत्कालीन जनता पार्टी का दामन थाम लिया. रामकृष्ण हेगड़े के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उन्होंने कन्नड़ के आधिकारिक भाषा के तौर पर उपयोग के लिये बनाई गई निगरानी समिति “कन्नड़ कवालु समिति” के पहले अध्यक्ष के रूप में काम किया. बाद में वह रेशम उत्पादन मंत्री बने. 2 साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में वह पुन:निर्वाचित हुए. हेगड़े ने उन्हें पशुपालन एवं पशु चिकित्सा सेवा मंत्री बनाया.

सिद्धरमैया को 1989 और 1999 के विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा. वह 2008 में चुनावों की केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रचार समिति के अध्यक्ष थे. उस चुनाव में कांग्रेस की हार के साथ सिद्धारमैया नेता विपक्ष बने. उन्होंने भ्रष्टाचार व घोटालों, विशेष रूप से अवैध खनन के मुद्दे पर भाजपा सरकार पर करारा प्रहार किया. उन्होंने 2010 में राज्य में अवैध खनन का पर्दाफाश करने के लिए बेंगलुरु से बेल्लारी तक कांग्रेस की 320 किलोमीटर की पदयात्रा का नेतृत्व किया.

पार्टी में कई लोगों का मानना है कि 2013 के विधानसभा चुनावों में स्पष्ट बहुमत से कांग्रेस की जीत की नींव इसी यात्रा ने रखी. सिद्धारमैया ने 2013 से 18 के बीच कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में 5 साल के सफल कार्यकाल का नेतृत्व किया.

सिद्धारमैया के नेतृत्व में 2018 में हारी कांग्रेस

लोकलुभावन “भाग्य” योजनाओं के कारण लोकप्रिय होने के बावजूद  2018 में सिद्धारमैया राज्य का विधानसभा चुनाव हार गए. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि प्रमुख लिंगायत समुदाय को “धार्मिक अल्पसंख्यक” का दर्जा देने के सिद्धरमैया फैसले से विधानसभा चुनावों में पार्टी को नुकसान हुआ. तब न केवल लिंगायत बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस बुरी तरह हारी, बल्कि “अलग लिंगायत धर्म” आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल अधिकतर प्रमुख नेता भी पराजित हो गए.
मुख्यमंत्री पद पर रहते सिद्धरमैया मैसूरु के चामुंडेश्वरी में 2018 के चुनाव में जद (एस) के जीटी देवेगौड़ा से बुरी तरह चुनाव हार गए. उन्होंने चामुंडेश्वरी सीट से 5 बार जीत हासिल की थी और 3 बार हारे हैं.  लेकिन मुख्यमंत्री रहते प्रतिद्वंदी से 40 हजार से ज्यादा वोटों से हार उनकी सबसे शर्मनाक हार थी. हालांकि वह 2018 चुनाव में बगलकोट जिले के बादामी से चुनाव जीतने  में कामयाब रहे थे और 1696 वोट के मामूली अंतर से भाजपा के कैंडीडेट बी श्रीरामुलु को हरा पाए.

2023 के चुनाव को सिद्धारमैया ने अपना आखिरी चुनाव बताया

सिद्धारमैया 2023 के चुनाव को अपना आखिरी चुनाव घोषित करते हुए वरुणा के  गृह निर्वाचन क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरे और जीत हासिल की। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि भले ही यह उनका आखिरी चुनाव हो सकता है, लेकिन वह राजनीति में बने रहेंगे.

नेताओं में लोकप्रिय हैं सिद्धारमैया

विधानसभा के गलियारों में अनुभवी नेता सिद्धरमैया के बारे में तमाम किस्से हैं. लंबे समय तक विधायक रहे सिद्धारमैया तमाम नए पुराने नेताओं के मित्र हैं.  कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक का कहना है कि विधानसभा के बड़े और खासतौर पर छोटे विधायकों से जुड़ने की उनकी क्षमता और उनके व्यापक अनुभव से ही सिद्धरमैया को चुनाव में निर्णायक जीत के बाद पार्टी के नए विधायकों का समर्थन हासिल करने में सफलता मिली.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद पर रहने का रिकॉर्ड

विधानसभा में आने के 40 साल बाद सिद्धारमैया दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं. वह कर्नाटक में 5 साल मुख्यमंत्री रहने वाले दूसरे नेता है. अगर वह इस बार 3 साल मुख्यमंत्री रह लेते हैं तो कर्नाटक में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले व्यक्ति बन जाएंगे.

कैसा होता है सिद्धारमैया का बजट

सिद्धारमैया बजट बनाने की कवायद में 3 सिद्धांतों का सख्ती से पालन करते हैं.

पहला, राजकोषीय घाटा, सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 3 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए.

दूसरा, ऋण-जीएसडीपी अनुपात 25 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए

तीसरा, राजस्व अधिशेष होना चाहिए.

सिद्धारमैया के सामने हैं कई चुनौतियां

चुनाव अभियान में कांग्रेस ने मतदाताओं के लिए 5 गारंटी की घोषणा की है.

  1. घर की प्रत्येक प्रमुख महिला को 2,000 रुपये प्रतिमाह मिलेंगे
  2. स्नातकों को प्रतिमाह 3,000 रुपये और डिप्लोमाधारकों के लिए हर महीने 1,500 रुपये बेरोजगारी भत्ता मिलेगा.
  3. सभी घरों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली मिलेगी
  4. गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों में प्रत्येक व्यक्ति के लिए 10 किलो खाद्यान्न मुफ्त दिया जाएगा.
  5. महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा की सुविधा मिलेगी.

कांग्रेस ने मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही इन उपायों पर अमल करने का वादा किया है. पार्टी ने इन वादों को पूरा करने की कुल लागत करीब 50,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया है.

लोकसभा चुनाव जिताने की चुनौती

कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव को भी लक्ष्य में रख रही है. भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 28 सीटों में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस बार कांग्रेस की कवायद सीटें बढ़ाने पर होंगी.

मतभेदों को काबू पाने की जिम्मेदारी

सिद्धारमैया के पास पार्टी के भीतर मतभेदों का प्रबंधन करने की भी जिम्मेदारी है. पिछले 3 साल से कांग्रेस के दिग्गजों में राज्य में खींचतान है. यह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच शीर्ष पद के लिए घात-प्रतिघात के दौरान भी दिखा.

जाति जनगणना भी है चुनौती

अन्य पिछड़े वर्ग को लुभाने के लिए कांग्रेस ने चुनाव के दौरान जाति जनगणना कराने का भी वादा किया था. एक लीक हुई रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान जनगणना कराई थी लेकिन प्रमुख वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों के दबाव के कारण इसे जारी नहीं किया था. ऐसा माना जाता है कि जनगणना में इन दो दबंग जातियों की संख्या कम आई थी.

 

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *