World womens Day

World womens Day :  बालमन में ही बेटियों पर छाप छोड़ दिया जाता है कि उसे करना क्या है

लड़कियों के मन पर चुटकुलों, कहावतों सहित तमाम तरीकों से मन मस्तिष्क पर प्रहार किया जाता है, जो उनके जेहन में बना रह जाता है, World womens Day पर रश्मि त्रिपाठी का लेख..

बचपन में एक चुटकुला सुना था कि पति पत्नी झगड़ रहे होते हैं, पति कहता है उसकी बेटी डॉक्टर बनेगी.

पत्नी कहती है वो जज बनेगी.

तभी बेटी कहती है, आप लोग इतना परेशान क्यों हैं, मैं तो बड़ी होकर मम्मी बनूंगी!

बचपन में जब इसे सुना तभी बहुत ही बेकार सा चुटकुला लगा था. अब सोचती हूं कि हमने व्यंग्य में बस पत्नी को ही नही चुटकुला बनाया, बेटियों के बालमन पर भी ये छाप छोड़ने की कोशिश की कि उनको करना क्या है?

हमारे यहां लड़कियों को हमेशा पत्नी बनना ही सिखाया गया, और इस पद को अवैतनिक रखा गया, खाने और कपड़े पर. कभी कभी खुश होकर किसी खास मौके पर कुछ और भी ईनाम मिल गया.

हां, सच में हमारे यहां पत्नी होना एक पद है, जो कि पुरुषों के लिए नहीं, औरतों के लिये आरक्षित है.

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मजे की बात है पिता बाकायदा रिश्वत (दहेज) देकर अपनी बेटी को ये पद दिलाकर उसका जीवन सुरक्षित करता है. और कहता है कि अब जो भी हो तुम्हें पूरी लगन और निष्ठा से अपना काम करना है, मरते दम तक.

तुम्हारी कोई छुट्टी नहीं, दिन रात की ड्यूटी है. त्योहारों पर एक्सट्रा वर्क और कोई रिटायरमेंट भी नहीं.

हद तो ये है कि कई औरतों को भी बड़े गर्व से कहते सुना है कि मुझे बस हाऊस वाइफ ही बनना है.

जैसे जिंदगी इसलिए ही मिली हो कि एक पति ढूंढना है मुझे अपने लिए….

Sujata Chokherbali की किताब “दुनिया में औरत” में पढ़ा था कि 1960-80 के दौर में अमेरिका मे स्त्रीवादी आंदोलन में औरते व्यंग्य और कटाक्ष खूब करने लगीं थीं. तब उन्होंने एक स्त्रीवादी पत्रिका भी निकाली Miss, जिसके पहले अंक में ही जूडी ब्रैडी का लिखा हुआ एक व्यंग्यात्मक लेख छपा, “I want a wife” अर्थात मुझे एक पत्नी चाहिए!

उसमें उन्होंने लिखा कि मुझे एक ऐसी पत्नी चाहिए, जो मेरे बच्चों का ध्यान रखे, उन्हे समय पर खाना पीना देकर सुला सके. उन्हें अच्छे संस्कार दे, मेरी भी दैहिक जरूरतों का ख्याल रखे, और अगर मेरे सर में दर्द हो तो अपनी फालतू बकवास से मेरा सिर न खाए.

आगे उन्होंने लिखा कि इस दुनिया में कौन है जिसे अच्छी पत्नी नहीं चाहिए?

हां, वही पत्नी, जिसके होने से घर भूत का डेरा नहीं होता. वही. जो हमारे घर को स्वर्ग बनाती है.

पर दिक्कत ये है कि स्त्रियों को पत्नी नहीं बनना, अब उन्हें पत्नी बनने से आजादी चाहिए.

मैंने अपने जीवन में एक भी ऐसी औरत नही देखी, जो सिर्फ हाऊसवाइफ बनकर खुश हो. अगर उसे घरेलू काम करने में खूब रुचि भी है, पर अगर उसे ये पता चल जाए कि उसके बनाए खाने या अचार पापड़ के बदले उसे पैसे मिल सकते हैं, तो वो अपनी कीमत समझ जाती है. दरअसल बेहद चालाकी से इस समाज ने घर के जरूरी काम स्त्रियों के हवाले कर दिए और वही जरूरी काम जब मर्दों ने किए तो उसे बिजनेस के रूप में…

आग्रह है आप सभी ऐसी औरतों से कि इस सोच से ऊपर उठिए और खुद का मतलब समझिए.

अपनी बेटी के लिए दहेज जुटाना बंद करिए. उसे शिक्षित करिए और उससे कहिए कि वो एक बेहतर इंसान बने पत्नी या गृहिणी नहीं.

 

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